वो कहते हैं न , “बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया!” यही बात अब बॉलीवुड के लिए भी चरितार्थ होने जा रही है, जहाँ पर एक आगामी प्रोजेक्ट के बारे में आपको समझ में नहीं आएगा की आप गौरवान्वित हो, हँसे, या फिर रोएं?
असल में दो विपरीत विचारधाराओं के अभिनेता एक साथ एक ही प्रोजेक्ट के लिए सामने आये हैं! निर्देशक की कुर्सी पर होंगे राजकुमार संतोषी, जिन्हे एक दशक से भी अधिक समय से एक प्रॉपर बॉक्स ऑफिस सफलता की प्रतीक्षा है। मुख्य अभिनेता के रूप में होंगे अपने सन्नी पाजी, जो “ग़दर २” की अद्वितीय सफलता से अभिभूत होकर अपने करियर को एक नै उड़ान देने को प्रयासरत होंगे!
परन्तु ये तो हुई एक अभिनेता की बात, दूसरा कौन है? दिल थाम के बैठ जाइये, क्योंकि राजकुमार संतोषी और सन्नी पाजी के इस रीयूनियन के निर्माण का दायित्व किसी और ने नहीं, आमिर खान ने लिया है। तो सभी को हमारा नमस्कार, और आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि क्यों कभी बॉलीवुड को अपने इशारों पर नचाने वाले आमिर खान अब अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए सनी देओल और राजकुमार संतोषी पर आश्रित हैं!
परिवर्तन ही शाश्वत सत्य है!
आमिर खान और राष्ट्रवादी फिल्मों को समर्थन दे रहा? ये तो वही बात हो गई कि करण जौहर रेजांग ला के मोर्चे पर आधारित फिल्म बनाये, जिसमें लीड में आर माधवन हो! परन्तु विश्वास मानिये, ऐसा ही कुछ देखने को मिलने वाला है।
असल में आमिर खान बतौर निर्माता “लाहौर: 1947” के माध्यम से वापसी करने वाले हैं। ये कथित तौर पर विभाजन पे आधारित नाटक “जिन्ने लाहौर नी वेख्या!” पर आधारित है, और इसका निर्देशन राजकुमार संतोषी के हाथों में हैं, जो “घायल”, “दामिनी”, “घातक” जैसी सफल बॉलीवुड फिल्मों और “अंदाज अपना अपना” और “द लीजेंड ऑफ भगत सिंह” जैसी यादगार क्लासिक फिल्मों के लिए विख्यात हैं। इस फिल्म में मुख्य अभिनेता के रूप में कोई और नहीं अपितु अपने दमदार रोल्स के लिए बहुचर्चित सनी देओल होंगे। लगभग 3 दशक बाद राजकुमार और सन्नी पाजी किसी प्रोजेक्ट पर एक साथ काम करेंगे।
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तो फिर समस्या कहाँ है? असल में फिल्म के निर्माता आमिर खान है, जो भारत समर्थक फिल्मों के लिए कम ही जाने जाते हैं। उलटे उन्होंने उन तत्वों को बढ़ावा दिया, जिन्होंने समय समय पर भारत एवं भारतीय संस्कृति पर कीचड उछालने में कोई प्रयास नहीं अधूरा छोड़ा है! विभाजन पर जहाँ आमिर ने भारत विरोधी तत्वों का समर्थन करते हुए “1947:Earth” में हिन्दुओं और सिखों को ही दोषी दिखाया, तो वहीँ सनी देओल ने “ग़दर” जैसी मसाला फिल्म में भी विभाजन का वीभत्स सत्य को चित्रित करने में कोई संकोच नहीं किया!
परन्तु इस निर्णय से इतना तो स्पष्ट है कि आमिर खान ने कहीं न कहीं भारतीय सिनेमा की बदलती गतिशीलता और दर्शकों की बदलती प्राथमिकताओं को पहचान लिया है। इस समय एक बात तो दर्पण की भांति साफ़ और स्पष्ट है: भारत विरोधी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धूल फांक रही हैं। अनुभव सिन्हा, अनुराग कश्यप और हंसल मेहता जैसे फ़िल्मकार, जो अपने एजेण्डावादी फिल्मों के लिए कुख्यात हैं, को सफलता छोड़िये, बजट के अनुरूप कलेक्शन तक नहीं मिल रहा है । दूसरी ओर, “द केरल स्टोरी” और बहुप्रतीक्षित “गदर 2” जैसी फिल्में अपनी निर्भीक देशभक्ति और कई मुद्दों पर अपने साहसिक रुख के कारण धूम मचा रही हैं।
रोचक बात तो ये है कि कुछ ही दिनों पूर्व आमिर खान की पूर्व पत्नी किरण राव, जो आमिर खान प्रोडक्शंस का भी हिस्सा हैं, ने कुछ हफ्ते पूर्वफिल्मों की सफलता के बारे में चिंता व्यक्त की थी, जिसे उन्होंने ‘रिग्रेसिव मेसेजिंग’ करार दिया था।
लेकिन वो क्या है कि शोबिज की दुनिया में, वित्तीय सफलता को अक्सर प्राथमिकता दी जाती है, और यह अप्रत्याशित सहयोग बॉलीवुड की बदलती गतिशीलता का एक प्रमाण हो सकता है जहां एक मजबूत राष्ट्रवादी स्वाद वाली सामग्री को जनता के बीच पसंद किया जा रहा है।
सनी पाजी और आमिर खान के लिए ये “एसिड टेस्ट” से कम नहीं!
अब जहाँ आमिर खान और सनी देओल जैसे विपरीत दृष्टिकोण के कलाकार एक प्रोजेक्ट के लिए साथ आएं, तो ये देखना रोचक होगा कि कहानी किस करवट बैठती है! जैसा कि हम “लाहौर: 1947” की प्रतीक्षा कर रहे हैं, यह देखना एक दिलचस्प संभावना बन जाती है कि इस सिनेमाई प्रयास में किस विचारधारा का प्रभुत्व रहेगा। यह फिल्म सनी देओल को एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और आमिर खान को निरंतर विकसित हो रहे फिल्म उद्योग में प्रासंगिक बने रहने का एक अनोखा अवसर प्रदान करती है।
परन्तु जितना सरल ये सुनने में लग रहा है, वास्तव में भी उतना ही सरल हो, इसकी कोई गारंटी नहीं! ये समझना अति महत्वपूर्ण है कि यह फिल्म दोनों अभिनेताओं के लिए किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं। “लाहौर: 1947” में यदि भारत विरोध का तनिक भी अंश देखने को मिला, तो इससे सनी पाजी और निर्देशक राजकुमार संतोषी की छवि को बट्टा लगेगा ही, परन्तु आमिर खान के लिए स्थिति और अधिक चिंताजनक होगी। पहले ही पिछले उद्यम “लाल सिंह चड्ढा” की असफलता से इनके करियर पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है, और अगर ये प्रोजेक्ट पिटा, तो आमिर न घर के रहेंगे, और न ही घाट के!
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परन्तु यदि वित्तीय लाभ आमिर खान के लिए अधिक महत्वपूर्ण है, तो सनी पाजी के साथ एक दमदार राष्ट्रवादी प्रोजेक्ट करने में आमिर खान को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे भी महोदय “दंगल” और “सीक्रेट सुपरस्टार” [चीनी कलेक्शन के “बूस्टर डोज़” सहित] इस बात को सत्यापित करते हैं, और ऐसे में आमिर खान के लिए “1947” जैसा प्रयोग अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने समान होगा।
बॉलीवुड की प्रतिस्पर्धी दुनिया में, “लाहौर: 1947” आमिर खान और सनी देओल दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह अपने स्वयं के विशिष्ट सिनेमाई व्यक्तित्व के प्रति सच्चे रहते हुए फिल्म प्रेमियों के बदलते स्वाद के साथ तालमेल बिठाने की उनकी क्षमता का परीक्षण है। देखते हैं कि “लाहौर:1947” आमिर खान के लिए गेमचेंजर साबित होती है या नहीं!
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