“कॉफ़ी विद करण” पुनः सुर्खियाँ बटोर रहा है, और सही कारणों के लिए तो बिलकुल भी नहीं। पहले प्रमोशनल सेगमेंट में करण जौहर की दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के साथ बातचीत ने इंटरनेट पर तहलका मचा दिया है। इस सेगमेंट में, दीपिका ने दूसरों के साथ अपने रिश्तों पर खुलकर चर्चा की, और ऐसा लगा जैसे यह व्यभिचार का महिमामंडन है, जिससे रणवीर स्पष्ट रूप से इम्प्रेस्ड नहीं थे।
लेकिन यह दीपिका द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों या इन तीनों द्वारा अपनी बातचीत में पश्चिमी पतन की नकल करने के लिए चैट शो का इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में नहीं है। समस्या है इस विषय पर शो के रचयिताओं और इसे देखने या चर्चा करने वाले दर्शकों, दोनों की ओर से अजब गजब मापदंड होना।
ऐसा क्यों है कि जब दीपिका मानव संबंधों पर अनर्गल प्रलाप हैं, तो कुछ लोग इसे उचित ठहराने , जबकि हार्दिक पंड्या या रणबीर कपूर यही काम करे, तो उन्हें ‘misogynist’, ‘red flag’ आदि से सम्बोधित किया जाता है?
नमस्कार मित्रों, आज हम इन मामलों में स्पष्ट दोहरे मानकों पर चर्चा करेंगे और यह जांचना क्यों आवश्यक है कि क्यों कुछ व्यक्तियों को आलोचना का सामना करना पड़ता है जबकि दूसरों को खुली छूट मिल जाती है।
दीपिका करे तो कूल, बाकी करे तो
“कॉफ़ी विद करण” का आगामी सीज़न काफी विवादों को जन्म दे रहा है, और यह सब एक क्लिप के साथ शुरू हुआ जिसमें दीपिका पादुकोण कैज़ुअल डेटिंग पर अपने विचार साझा कर रही हैं, उनके पति और साथी अभिनेता रणवीर पूरे समय मौजूद थे। उन्होंने इस बात पर खुलकर चर्चा की कि कैसे उन्होंने रणवीर सिंह के साथ रिश्ते में आने से पहले अन्य लोगों को डेट किया था।
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Thats the gameplan
By normalising everything, debauchery is normal. He doesn't have to change for he has changed society.
— Devi Prasad Rao (Modi ka Parivaar) 🇮🇳 (@DeviPrasadRao8) October 27, 2023
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एपिसोड के दौरान दीपिका की स्पष्ट स्वीकारोक्ति जोर-शोर से सामने आई। उन्होंने कहा, “ऐसी कोई ‘प्रतिबद्धता’ नहीं थी। भले ही हमें तकनीकी रूप से अन्य लोगों से मिलने की अनुमति दी गई हो, हम बस एक-दूसरे के पास आते रहेंगे।” उसकी ईमानदारी ने ऑनलाइन प्रतिक्रियाओं की बाढ़ ला दी। कुछ प्रशंसकों ने वास्तविक होने के लिए उनकी सराहना की, जबकि अन्य उनकी खिंचाई करने से पीछे नहीं हटे।
https://twitter.com/Youngndharmic/status/1717951669462347974
तो फिर समस्या कहाँ है? समस्या है ऐसे स्थिति में लोगों की प्रतिक्रिया पर, चाहे वह शो के रचयिता हो या इसे देखने वाली जनता! तनिक अपने ज्ञानचक्षुओं को 2019 की ओर रिवाइन्ड कीजिये, जब क्रिकेटर हार्दिक पंड्या और केएल राहुल मेहमान थे और हार्दिक ने अपने कारनामों का कच्चा चिटठा खोल दिया था।
लेकिन क्या हम सब उस समय इतनी समझ रखते थे और चर्चा के लिए खुले थे? बिलकुल नहीं, उलटे हममें से अधिकांश लोग हार्दिक पर धावा बोल दिए, और कुछ तो उसे भारतीय टीम से निकलवाकर ही माने। तो सौ की सीधी बात – दूध का धुला यहाँ कोई नहीं, पर दीपिका के लिए समर्थन और हार्दिक के लिए घृणा क्यों? राजू भाई के शब्दों में, “ये भेदभाव क्यों?”
Koffee with Karan has always created controversy. I still remember KL Rahul and Hardik Pandya incident.
Ranveer Singh anger is justified. Heal soon, king.
Deepika Padukone #DeepikaPadukone #RanveerSingh #KoffeeWithKaran pic.twitter.com/dEXN5QoeUx
— The LOL Sage (@TheLOLSage) October 27, 2023
ये भेदभाव क्यों?
जब दीपिका अपने पूर्व-प्रतिबद्ध रिश्ते के दिनों के बारे में खुलती हैं, तो कुछ लोग ईमानदारी और सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में उनकी सराहना करते हैं, भले ही इसमें कुछ भी सकारात्मक या प्रोग्रेसिव न हो। परन्तु यही नौटंकी जब हार्दिक ने की, तो उन्होंने खुद को आलोचना और निंदा के घेरे में पाया। ऐसा विरोधाभास कहीं और देखा है आपने?
दीपिका ने यह खुलासा करके साज़िश को और बढ़ा दिया कि वह शुरू में रणवीर के साथ प्रतिबद्ध रिश्ते के लिए उत्सुक नहीं थीं, और वे अन्य लोगों से मिलने में सहज थे, जिससे यह जिज्ञासा जगी कि क्या वे किसी “situationship” में फंस गए थे।
अब संसार के सबसे भोले प्राणियों के लिए, सिचुएशनशिप एक प्रतिबद्ध रिश्ते और दोस्ती से अधिक कुछ के बीच की स्थिति को संदर्भित करता है। इस अवधारणा ने हाल के दिनों में ध्यान आकर्षित किया है और अक्सर इसकी तुलना “खुले रिश्ते” से की जाती है।
लेकिन चलिए यहीं नहीं रुकते। जब आलिया भट्ट ने भारी मेकअप के बिना रणबीर कपूर की पसंद के बारे में खुलासा किया, तो गोपनीयता और सहमति के चैंपियन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने उनके रिश्ते को विषाक्त करार देने का फैसला किया।
वे एक कदम आगे बढ़ गए, उन्होंने उनकी तुलना काल्पनिक चरित्र ‘कबीर सिंह’ से की और रणबीर कपूर को ‘विषाक्त मर्दानगी’ का शुभंकर करार दिया। शायद इन अति नारीवादियों को किसी ने ये नहीं बताया कि बिना सोचे समझे किसी के निजी मामले में टांग अड़ाना सभ्यता का प्रतीक नहीं, और मुझे यकीन है कि उन्हे ऐसी बात पता भी होती, तो वे कोशिश भी नहीं करते!
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जब दीपिका अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करती हैं, तो उनके खुलेपन का जश्न मनाया जाता है। जब हार्दिक भी ऐसा ही करते हैं तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है और यहां तक कि उन्हें क्रिकेट टीम से निलंबित भी कर दिया जाता है। क्यों? यह एक ऐसा प्रश्न है जो उत्तर मांगता है। या तो दोनों की आलोचना कीजिये, या फिर किसी की आलोचना मत कीजिये! ये दोहरे मापदंड किसलिए?
एक व्यक्ति के लिए त्वरित प्रशंसा और दूसरे के लिए तत्काल निंदा क्यों? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि एक लोकप्रिय अभिनेत्री है जबकि दूसरा क्रिकेटर है? या क्या यह लैंगिक पूर्वाग्रह का एक क्लासिक मामला है, जहां समाज एक महिला के खुलासे का जश्न मनाता है, चाहे वह कितना भी घृणित क्यों न हो, और एक पुरुष की निंदा करता है, भले ही वह वास्तव में अपराध का दोषी न हो?
समान स्थितियों पर हमारी प्रतिक्रियाओं में ये असमानताएं एक व्यापक सामाजिक मुद्दे को दर्शाती हैं। अब समय आ गया है कि हम इस दोहरे मापदंड की परतें उतारें और ये स्पष्ट करें कि ऐसी छिछोरपंती किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं!
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