एजेंडा बढ़ाना है? हो जायेगा!
भारत को नीचा दिखाना है? हो जायेगा!
असामाजिक तत्वों की रक्षा करनी है? हो जायेगा!
जघन्य अपराधों को उचित ठहराना है? हो जायेगा!
पत्रकारिता के जगत में वैसे तटस्थता का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो दिन रात तटस्थ होने का ढोल पीटते हैं, परन्तु पूर्वाग्रह इनके रग रग में समाहित होती है। अगर देश-दुनिया में कोइ भी कार्य इनके अनुकूल न हो, तो कुछ अलग ऐसे भी होते हैं जो अपने ही बयानबाज़ी से अपने राष्ट्र की सुरक्षा दांव पर लगाने से पूर्व एक बार भी नहीं सोचते, और श्रीमान रवीश कुमार इसी बिरादरी का एक महत्वपूर्ण अंग है या मुखिया ही मान लीजिये ।
टूलकिट का प्रसारण, अराजकतावादियों को बचाना, आप बस नाम लीजिये और रवीश कुमार आपकी सेवा में प्रस्तुत! आतंकवाद, दंगे, एवं किसी भी प्रकार की अराजकता पर अपना समर्थन देते हुए इनके चेहरे की रौनक अलग से दिखती है, और ऐसा ही कुछ कार्य इनके निष्पक्ष रिपोर्टिंग जिसका गुणगान करते श्रीमान कभी नहीं थकते, उस निष्पक्ष रिपोर्टिंग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं
इज़राइल और हमास के बीच हालिया संघर्ष के दौरान यह प्रवृत्ति एक बार फिर देखने को मिली, जहां हमास गुट के लिए इन्होने पलक पांवड़े बिछाने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा। तो स्वागत है आपका मित्रों, और आज हम इज़राइल-हमास संघर्ष के दौरान रवीश कुमार के कार्यों के प्रभाव को समझेंगे, और ये जानेंगे कि अपने एजेंडा की पूर्ति हेतु कोई कितना नीचे गिर सकता है।
“इज़राएल पीड़ित कैसे?”
इज़राइल में हमास द्वारा किए गए विनाशकारी हमलों के कुछ ही दिनों बाद, रवीश कुमार ने एक आश्चर्यजनक दावा किया: उनके क्रूर कृत्यों के निर्विवाद सबूतों के बावजूद, हमास को दोष नहीं देना था। उन्होंने फ़िलिस्तीन स्थित इस्लामी आतंकवादी समूह को निंदा से बचा लिया।
“किसके आतंकवाद की निंदा की जानी चाहिए? इस मामले में आतंकवादी कौन है? एक और सवाल है – पीड़ित कौन है?” ऐसा प्रतीत होता है कि वह हमास की ओर से बैटिंग करने को उद्यत थे। उन्होंने शक्तिशाली पश्चिमी देशों से मिल रहे समर्थन का हवाला देते हुए सुझाव दिया कि इजरायल को चल रहे संघर्ष में आतंक का शिकार नहीं ठहराया जा सकता है। मतलब रवीश बाबू के शब्दों में, साड़ी गलती इज़राएल की ही है!
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परन्तु ठहरिये, ये तो अभी प्रारम्भ है, रवीश आगे बांचते हैं, “हमने कई लेखों में एक दिलचस्प नामकरण देखा है – एक को पीड़ित (उर्फ फिलिस्तीन) कहा जा रहा है और दूसरे को पीड़ितों का शिकार (उर्फ इज़राइल) करार दिया गया है … दोनों पर आरोप लगाया गया है आतंकवाद और दोनों पीड़ित हैं…(गाजा में) कब्जे का आरोपी शक्तिशाली इज़राइल भी पीड़ित है।” अगर मौका मिले तो यह आदमी भारत-विभाजन के नरसंहार को भी उचित ठहरा सकता है, या रुकिए, शायद कर भी चुके हैं?
मियां रवीश ने यहाँ तक दावा किया कि हमास इज़राइल जितना ‘शक्तिशाली’ नहीं है। इनके अनुसार, “अब उन लोगों की दुर्दशा की कल्पना करें जो (इज़राइल के सामने) कमज़ोर हैं…अधिकांश देश इज़राइल के साथ हैं, और यह अभी भी ‘पीड़ितों’ का शिकार है। मुट्ठी भर देश भी फ़िलिस्तीन के साथ नहीं हैं” ।
Ravish shamelessly defends Hamas Terrorists
Asks who is Real Terrorist- Hamas or Israel?
Attacks countries supporting Israel of siding with Terrorists."हमास और इज़राइल में किसके आतंकवाद की निंदा होनी चाहिए?”
"बड़े देश शक्तिशाली इज़राइल का समर्थन कर आतंक का साथ दे रहे हैं” pic.twitter.com/F4bauFaBN8
— Ankur Singh (Modi Ka Parivar) (@iAnkurSingh) October 9, 2023
रवीश कुमार ने एक सवाल उठाया: “क्या ये देश (इजरायल का पक्ष लेकर) न्याय कर रहे हैं या आतंकवाद से निपटने के नाम पर (इजरायल के) आतंक को बढ़ा रहे हैं?एक महीने पहले भी नेतन्याहू को इस स्तर का जनसमर्थन नहीं था…क्या हमें ये सवाल छोड़ देना चाहिए कि हमास ने इजराइल की सीमा में घुसपैठ कैसे की? मुझे इस सवाल का जवाब निश्चित है…” इस लॉजिक से 26/11 तो कभी हुआ ही नहीं था, हफ़ीज़ सईद एन्ड कम्पनी को तत्कालीन प्रशासन ने मुंबई का विध्वंस करने के लिए आमंत्रित किया था! थोड़ी शर्म अभी बची है या वो भी NDTV को सौंप आये ये महोदय?
प्रोपगैंडा की चलती फिरती दुकान!
इज़राइल-हमास संघर्ष के दौरान रवीश कुमार का हालिया रुख पत्रकारिता की अखंडता और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल उठा रहा है। हालाँकि, यह पहली बार नहीं है कि वह इस तरह की गतिविधियों में शामिल हुए हैं, और रवीश कुमार प्रोपगैंडा पत्रकारिता के क्षेत्र में नौसिखिया तो बिलकुल नहीं है।
“एक महीना पहले, नेतन्याहू को जनता का समर्थन नहीं था।
सवाल पूछा जाना चाहिए कि हमास अंदर कैसे आ गया, और इसका जवाब इज़राइल के जवाब में मिलेगा”
रवीश घूमा-फिरा के बता रहे हैं कि हमला करवा कर नेतन्याहू अपनी सरकार बचा रहे।
सिर्फ रवीश ऐसी घटिया सोच रख सकता। pic.twitter.com/1oWiFlBb0R
— Ankur Singh (Modi Ka Parivar) (@iAnkurSingh) October 9, 2023
उदाहरण के लिए हिंडनबर्ग विवाद के दौरान रवीश कुमार ने श्री गौतम अडानी से कठिन सवाल पूछने में कथित विफलता के लिए कई प्रसिद्ध पत्रकारों को निशाना बनाया। उनकी आलोचना मुख्य रूप से इंडिया टीवी के पत्रकार रजत शर्मा पर केंद्रित थी, जिन्होंने हाल ही में अडानी का साक्षात्कार लिया था। रजत शर्मा ने वे सभी सवाल उठाए जो वामपंथी मीडिया में चल रहे हैं, जिनमें मोदी सरकार से अनुचित लाभ के आरोप भी शामिल हैं। हालाँकि, रवीश इन सवालों से प्रभावित नहीं हुए और उन्होंने रजत शर्मा की पत्रकारिता की साख पर सवाल उठाया।
परन्तु बोल भी कौन रहा है, वह रवीश कुमार, जिसने पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों में सक्रिय रूप से अराजकतावादियों की सहायता की? स्मरण कराइये कैसे आपने शाहरुख़ पठान को बचाने हेतु एक अनुराग मिश्रा के जीवन को खतरे में डाला था? हो सकता है इनके इन्ही करतबों के पीछे इन्हे मैग्सेसे पुरस्कार मिला होगा, लेकिन उन्होंने तो काफी समय पूर्व पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों को त्याग दिया है, और पीएम मोदी के विरोध के नाम भारत को नीचा दिखाने का एक भी अवसर ये व्यक्ति हाथ से जाने नहीं देता।
परन्तु जो अनुराग मिश्रा के साथ हुआ, वह तो मात्र हिमशैल के सतह समान है! पिछले कुछ वर्षों की हिंसक घटनाओं पर करीब से नज़र डालेंगे, तो आपको उन सभी में एक समान सूत्र दिखाई देगा: रवीश कुमार! इस व्यक्ति ने वास्तव में अग्निपथ भर्ती योजना से जुड़ी हिंसा को उचित ठहराने की कोशिश की है।
2019 के आम चुनावों की अगुवाई में, रवीश कुमार अखिलेश यादव और मायावती के असफल गठबंधन के अनौपचारिक वकील थे। निष्पक्षता का तो इनसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं!
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इसके अलावा, वह हमारे सशस्त्र बलों का मज़ाक उड़ाने से नहीं हिचकिचाते, चाहे वह उरी हमले के बाद हो या गलवान झड़प के बाद। प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करने के नाम पर, वह उन लोगों का अपमान करते हैं जो हमारे देश की रक्षा करते हैं।
हैरान करने वाली बात यह है कि इस सारे नाटक के बाद भी उनमें ‘स्वतंत्र पत्रकारिता’ का झंडा लहराते हुए खुद को एक तटस्थ पत्रकार घोषित करने का साहस रखते है। रवीश का दावा है कि वह “निष्पक्ष पत्रकारिता” के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन क्या आप एक भी उदाहरण याद कर सकते हैं जहां उन्होंने बिना किसी दुर्भावना के वास्तव में तटस्थता का प्रदर्शन किया हो? सिर्फ एक उदाहरण?
ऐसे में, इज़राइल-हमास संघर्ष के दौरान रवीश कुमार का रुख पत्रकारिता की अखंडता और निष्पक्ष रिपोर्टिंग को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा करता है। दोष मढ़ने और एक आतंकवादी संगठन को पीड़ित के रूप में चित्रित करने का उनका प्रयास सच्चाई का वह विरूपण / distortion है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
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