ज्ञानवापी के आगे: हिंदुत्व का रथ अब नहीं रुकने वाला

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के मामले में पाँच याचिकाएँ निरस्त कर दीं हैं। ये याचिकाएँ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने उपस्थापित की थीं, जिनमें 2021 के मस्जिद सर्वेक्षण आदेश का विरोध किया गया था। दिसंबर में इसका आदेश सुरक्षित रखा गया था।

मुस्लिम समुदाय इससे अतिशय दुखी है, पर उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो है वह सत्य ही तो है। क्या यह सत्य नहीं है कि औरंगजेब ने 1669 में काशी के विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी? क्या यह सत्य नहीं है मस्जिद में हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ और त्रिशूल जैसे तत्व हैं, जो किसी मस्जिद के लिए असामान्य हैं? क्या यह सत्य नहीं है कि वहां नंदी की मूर्ति मस्जिद की ओर मुख करके बैठी है, जो आमतौर पर शिवलिंग की ओर होती है? क्या मस्जिद के नीचे की संरचना और कुछ अन्य विशेषताएं, जैसे कि एक फव्वारा रुपी वस्तु प्रमाण नहीं हैं? क्या ये सब एक अतिप्राचीन शिव मंदिर के पूर्व अस्तित्व का संकेत नहीं देते हैं? अवश्य देते हैं, इसलिए भारत के मुसलमानों सत्य से तो ईश्वर अल्लाह सब प्रसन्न होते हैं हैं, तुम भी प्रसन्न हो जाओ.

आज के समकालीन मुस्लिम विद्वान जो विद्वान के नाम पर कलंक है, वे यह दावा करते हैं कि मुसलमानों ने कभी हिंदू मंदिरों को छुआ तक नहीं? परन्तु इस्लामिक इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम शासकों के द्वारा मंदिरों की तोड़फोड़, हिंसा और धर्मांतरण का व्यापक रूप से ग्रंथिकरण किया है।

दूसरी ओर, अरब देश, जो पारंपरिक रूप से इस्लामी हैं, अब दुबई में हिंदू मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों के निर्माण में सहयोग कर रहे हैं। इसकी तुलना भारतीय मुल्लाओं से करें तो वो नया मुल्ला वाली उक्ति ही स्मरण हो आती है।

आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के तद्अपि, कुछ मुल्ला इनका विरोध करते हैं। वास्तव में, मस्जिद के अंदर के हिंदू तत्व सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की जांच की अनुमति दिए जाने के बाद ही प्रकट हुए।

स्कंद पुराण में ज्ञानवापी का वर्णन किया गया है, जिसमें इसके आध्यात्मिक महत्व को प्रकाशित किया गया है। इसके हर आयाम का विस्तार से वर्णन है। आप स्कंद पुराण की एक प्रति उठा सकते हैं और मस्जिद और मंदिर को एक साथ देख सकते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह सब पहले एक मंदिर था।

विचित्र बात यह है कि कुरान विवादित स्थलों पर मस्जिद बनाने से मना करता है, फिर भी इतिहास में इसकी अनदेखी की गई है। सत्य ये है कि, मस्जिदें बनाने के लिए तोड़ी गई हिंदू मंदिरों के अवशेषों का उपयोग करना एक सामान्य प्रथा थी। इसकी सबसे विख्यात मिसाल है दिल्ली की कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, जो कुतुब मीनार के निकट स्थित है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण किया था, और इसमें हिंदू व जैन मंदिरों के अवयवों को शामिल किया गया था।

क्या इस्लामिक ज्ञानी यह तर्क दे सकते हैं कि मंदिरों को ध्वस्त करना इस्लाम की विजय या गौरव का प्रतीक कैसे है? जहांगीर और औरंगजेब जैसे मुगल शासक इन कृत्यों के लिए बदनाम थे। इतिहासकार मानते हैं कि औरंगजेब का अति हिंदू-विरोधी मुगल साम्राज्य के पतन का एक कारण बना। उसने मंदिरों के पुनर्निर्माण को रोकने और अनेकों मंदिरों को नष्ट करने का प्रयास किया, जिसमें नौ प्रमुख मंदिर भी शामिल थे।

काशी का ज्ञानवापी मंदिर भी औरंगजेब के 1669 के उस आदेश का लक्ष्य था, जिसमें गैर-इस्लामिक धार्मिक स्थलों को नष्ट करने का आदेश था। उसने इस मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया, जिसका नाम विशेष रूप से संस्कृत में ‘ज्ञानवापी’ रखा गया। 1664 में औरंगजेब के इस मंदिर को ध्वस्त करने के प्रयासों को नागा साधुओं ने विफल कर दिया था, परंतु 1669 में वह इसमें सफल हुए, जिसमें साधुगण भारी संख्या में वीरगति को प्राप्त हुए ।

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इसके बाद मल्हार राव होल्कर और जयपुर के महाराजा ने मंदिर के पुनर्निर्माण के प्रयास किए, किन्तु वे असफल रहे। अंततः, 1780 में रानी अहिल्या बाई होल्कर ने इसका पुनर्निर्माण किया।

मंदिर विध्वंस की यह प्रवृत्ति दिल्ली के कालका मंदिर तक भी पहुँची, जो देवी काली को समर्पित है। औरंगजेब ने 1667 में इसके विध्वंस का आदेश दिया, क्योंकि यह हिंदुओं का एक प्रमुख समागम स्थल था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद 1707 में इसका पुनर्निर्माण हुआ। ये घटनाएँ धार्मिक संघर्ष के इतिहास और हिंदू संस्कृति की पवित्र स्थलों को संरक्षित करने की दृढ़ता को दर्शाती हैं।

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अयोध्या के राम मंदिर को, जिसे 1660 में औरंगजेब के आदेशानुसार फेदाई खान ने नष्ट किया था, उसके अवशेषों से एक मस्जिद बनाई गई थी। सदियों के बाद, अब उस मूल मंदिर का पुनर्निर्माण हो चुका है, जिसका उद्घाटन जनवरी 2024 में होने जा रहा है। यह घटना विश्व भर के हिंदुओं के लिए एक बहुप्रतीक्षित क्षण है।

मथुरा में औरंगजेब ने 1670 में भगवान् श्री कृष्ण के जन्मस्थान केशव राय मंदिर को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद उसने मंदिर के मलबे का उपयोग करके एक मस्जिद का निर्माण किया।

गुजरात के सोमनाथ मंदिर को 1706 में औरंगजेब ने पूरी तरह से ध्वस्त करने का आग्रह करते हुए इसे नष्ट करने का आदेश दिया।

इन चुनौतियों के बावजूद, हिंदुओं ने अपने पवित्र स्थलों के पुनर्निर्माण में दृढ़ता दिखाई है, विशेष रूप से 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद। इस अवधि में कई हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया।

अब जब भारतीय न्यायलय विवादित धार्मिक स्थलों पर हिंदू दावों के पक्ष में फैसला देंगी, और अवश्य देंगी, तो विलाप होगा। भारतीय मुल्ला, “भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं”, यह आरोप लगाते हुए पीड़ित होने का दावा करेंगे जिससे संभवतः सड़क पर दंगे हो सके। पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों और समुदायों पर आक्रमण होंगे। राजनीतिक रूप से, कांग्रेस जैसे दल और अंतर्राष्ट्रीय समूह भाजपा, मोदी, आरएसएस और हिंदुओं की आलोचना करेंगे।

आप उस विचार को नहीं रोक सकते जिसका समय आ गया है और हिंदुत्व का पुनरुत्थान वह विचार है जिसका समय वास्तव में आ गया है। चूड़ी तोड़िये, कंगन तोड़िये, या तोड़िये करधनी, सनातन अब रुकने वाला नहीं।

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