लन्दन का प्रसिद्ध प्रकाशन The Economist जो अक्सर भारत के खिलाफ आग उगलता रहता है, उसने फिर से आग उगला है। अपने नवीनतम लेख में The Economist ने प्रधान मंत्री मोदी के सैन्य सुधार के बारे में लिखा और बताया कि कैसे भारत अपने १.४ मिलियन की सेना के साथ चीन की बराबरी करने की होड़ में है। हालांकि लेख का मुख्य मुद्दा यह नहीं था, मुख्य मुद्दा था – भारत के स्वनिर्मित फोर्थ जनरेशन सुपरसोनिक लड़ाकू विमान Tejas की आलोचना करना।
लेख के अनुसार, Tejas में अतिशय संभावनाएं थी परन्तु कुछ कारणों से वह पिछड़ गया। सबसे पहला कारण था जेट में निर्माण में हुई देरी। The Economist के अनुसार विमान के निर्माण और वायु सेना में सम्मिलित होने में दो दशक लग गए। उसके बाद लेख में बताया गया है कि भारतीय पायलट Tejas से तनिक भी संतुष्ट नहीं है।
Tejas को एक भूल बताते हुए, The Economist ने अपने लेख में रक्षा क्षेत्र में भारत के द्वारा झेले जाने वाली परेशानियों की और इशारा किया। लेख में कहा गया कि एक स्वनिर्मित जेट बनाने का आईडिया बुरा नहीं था परन्तु जो Tejas बन कर आया, उसकी गुणवत्ता काफी निम्न कोटि की थी।
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The Economist ने तो बड़े बड़े आरोप लगा दिए अब इन आरोपों का खंडन भी अनिवार्य है तो सबसे पहले हम देखेंगे की २० साल विलम्ब वाले दावे में कितनी सच्चाई है और फिर स्वयं विमान पायलट्स के मुह से सुनेंगे की Tejas की गुणवत्ता निम्न कोटि की है या उच्च कोटि की।
यह सत्य है कि Tejas के निर्माण में २० वर्ष लग गए हैं परन्तु यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार ही है। अब मैगी तो बना नहीं रहे कि दो मिनट में बन जायेगी वैसे मैगी भी दो मिनट में कहाँ ही बन पाती है।
उदाहरण के लिए, Dassault Rafale को ही लेते हैं, जो एक उन्नत ट्विन इंजन फोर्थ जनरेशन लड़ाकू विमान है। भारत की वायु सेना के पास यह विमान आ भी चूका है। Rafale का परिचय अर्थात पहली टेस्ट उड़ान 1986 में ही हुई थी परन्तु यह फ्रेंच वायु सेना को 2001 में जा के मिली।
वैसे ही, अमेरिका का गौरव माने जाने वाले, F-35, लड़ाकू विमान का पहला तकनीकी प्रदर्शन जिसे X-35 के नाम से जाना जाता है, वह साल 2000 में हुआ, और विमान के वायु सेना में सम्मिलित होते होते 2015 आ गया।
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Tejas के मामले में, इसका तकनीकी प्रदर्शन जिसे TD-1 के नाम से जाना जाता है, वह साल 2001 में हुआ और भारतीय वायु सेना को 2016 में इसकी पहली खेप मिली।
अर्थात The Economist की कथा बेबुनियाद है, मनगढ़ंत कहानी है और साथ साथ प्रोपगंडा का एक भीषण डोज़ भी है।
अब आते हैं दूसरे प्रश्न पर – भारतीय पायलट Tejas से तनिक भी संतुष्ट नहीं है? पता नहीं The Economist ने कितने वायुयान चालकों से वार्तालाप की पर मुझे तो पांच मिनट में ही दो महान पायलट्स की टिप्पणी दिख गयी। Tejas लीजेंड कमांडर राजीव जोशी जिन्होंने Tejas के टेस्ट उड़ान में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था, उनके एक पुराने साक्षात्कार में कई जानकारियाँ हैं।
जोशी बताते हैं कि Tejas अत्यंत तीव्र गति से मुड़ सकती है, जिससे हवाई लड़ाई में विशेष सहयोग मिलेगा। Tejas के full authority Auto Low Speed Recovery system के कारण Tejas को बिना किसी चिंता के घंटों उड़ाया जा सकता है। जोशी ने कहा कि पायलट्स के गति की सीमा का उल्लंघन करने पर, इस विमान का आटोमेटिक सिस्टम हरकत में आ जाता है जिससे दुर्घटना की संभावना नहीं रह जाती।
जोशी ने Tejas के acceleration और अचानक से ऊपर की ओर उड़ने की क्षमताओं की भूरि भूरि प्रशंसा की। जोशी बताते हैं कि Tejas का sensor package अत्याधुनिक है जो फाइटर पायलट की बहुत सहायता करता है। अल्फा मनुवर्स अर्थात, high angle of attack पर जोशी Tejas को ए ग्रेड देते हैं।
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तो राजीव जोशी के आकलन से यह स्पष्ट हो जाता है की Tejas अच्छा नहीं बल्कि बहुत ही अच्छा है और The Economist की कथा हास्यास्पद है। लेकिन अभी एक और पायलट हैं जिन्होंने न केवल Tejas, बल्कि कई अत्याधुनिक विमानों को उड़ाया है। दुबई Air Show में एक साक्षात्कार के समय, Squadron “Flying Bullets” के Group कप्तान दिनेश “डैनी” धानखड Tejas Mk-1 fighter jet की पूरी कथा बताते हैं। डैनी के पास मिग 21, मिराज 2000 और Tejas को उड़ाने का ढाई हज़ार घंटे का अनुभव है।
कप्तान धानखड ने Tejas की उन्नत takeoff क्षमताओं के बारे में बताया, कि कैसे विमान मात्र 1500 से 2000 मीटर की दूरी से ही हवा में उड़ जाता है। ज्ञात हो कि इतने छोटे रन अप की तकनीक अभी किसी जेट के पास नहीं है। जोशी की तरह ही कप्तान धानखड ने Tejas की चालन में आसानी और climb performance की प्रशंसा की और बताया की इस एक चीज़ से हार और जीत तय हो सकती है। कप्तान धानखड बताते हैं कि Tejas में एक state-of-the-art fly-by-wire design combined with relaxed static stability लगा है जिससे पायलट एकदम चिंतामुक्त हो युद्ध पर ध्यान दे सकता है।
कप्तान धानखड के अनुसार, Tejas का aerodynamic design और इसका compound delta platform इसे फटाफट घूमने में मदद करता है। तो इन अनुभवी पायलट्स की कथा सुनके समझ आता है कि The Economist द्वारा Tejas की आलोचना के पीछे कुछ और ही कारण है। Tejas भारत के रक्षा उद्योग का प्रमुख उत्पाद है और यह न केवल राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन गया है बल्कि अंतरराष्ट्रीय रक्षा क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है। पहले ही मलेशिया, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, बोत्सवाना, फिलीपींस, अर्जेंटीना और मिस्र सहित कई देशों ने Tejas खरीदने के लिए ऑर्डर्स दिए है। अब तो संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े रक्षा खिलाड़ी भी रुचि दिखा रहे है।
यह समझिये, रक्षा बाज़ार बेहद प्रतिस्पर्धी है और इसमें गला काट प्रतियोगिता है, अक्सर एक एक सौदे पर अरबों डॉलर खर्च होते हैं। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट को प्राप्त करने के लिए निर्माता किसी भी सीमा का उल्लंघन कर सकते हैं। इससे ही डिफेन्स लॉबीज़ का जन्म होता है ये लॉबीज़ न केवल अपने उत्पादों को बढ़ावा देते हैं बल्कि प्रतिस्पर्धियों को बदनाम करने का भी प्रयास करते हैं। मीडिया आउटलेट इस षड़यंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मीडिया में रक्षा प्रौद्योगिकियों के संबंध में जनता की राय और धारणा को प्रभावित करने की शक्ति है। नकारात्मक मीडिया चित्रण से सार्वजनिक असंतोष बढ़ सकता है, भ्रष्टाचार के आरोप लग सकते हैं और यहां तक कि राजनीतिक उथल-पुथल भी हो सकती है, जैसा कि इतिहास ने सिद्ध किया है कि विश्व भर में कई सरकारें रक्षा सौदों के कारण गिरी भी हैं।
Tejas पर The Economist के आलोचनात्मक लेख को ऐसे ही समझा जा सकता है। इसे किसी प्रतिस्पर्धी का प्रोपगंडा माना जा सकता है। रक्षा उद्योग में इस तरह की रणनीति असामान्य नहीं है, जहां किसी प्रतिद्वंद्वी उत्पाद को बदनाम करना उतना ही महत्वपूर्ण हो सकता है जितना कि अपने उत्पाद को बढ़ावा देना। जब भी आप ऐसे लेख देखें तो समझ जाएँ कि किसी के अरबों डॉलर्स दांव पर लगे हैं।
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