इजरायल-हमास युद्ध में भारत का रुख साफ रहा है। भारत ने पहले दिन से ही इजरायल पर हुए आतंकी हमले की आलोचना कर दी थी। जब इजरायल में घुसकर हमास के आतंकियों ने कत्लेआम मचाया तो पीएम नरेंद्र मोदी दुनिया के उन चुनिंदा नेताओं में से थे जिन्होंने सबसे पहले ट्वीट कर आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजरायल में उनके समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू के बीच बातचीत हुई थी। इसमें नेतन्याहू ने पूरे हालात से पीएम मोदी को अवगत कराया था। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पहली बात में एक और बात जोड़ी थी। उन्होंने कहा था कि भारत किसी भी तरह के आतंकवाद की एक सुर में निंदा करता है। पहले इजरायल के साथ खड़े होने की बात। फिर हमले को आतंकी करार देना। अभी तक के भारत के रुख से साफ है कि उसने पूरे मामले में इजरायल का पक्ष लिया है।
यह सहानुभूति इजरायल की जनता, सरकार और उसके समर्थकों के दिलों को छू गई। भारत के इस रुख से दो खेमे बन गए। एक खेमे का कहना है कि भारत खुलकर इजरायल के सपोर्ट में आ गया है। किसी ने कहा कि फिलिस्तीन को यूं अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था। कुछ मुसलमानों ने अटल बिहारी वाजपेयी का दशकों पुराना वीडियो शेयर करना शुरू कर दिया जिसमें वह फिलिस्तीन के सपोर्ट में बोल रहे थे।
हालांकि विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया बिल्कुल सधी हुई है। इजरायल और फिलिस्तीन संकट पर भारत की विदेश नीति एक तरह से बैलेंस करने की है। भारत किसी का सपोर्ट नहीं कर रहा बल्कि वह गलत को गलत कहने का साहस दिखा रहा है।
इजरायल बनाम फिलिस्तीन में भारत का रुख
इजरायल-फिलिस्तीन विवाद पर भारत का रुख व्यापक रहा है। फिलिस्तीन का समर्थन भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। 1947 में जब फिलिस्तीन मुक्ति संगठन और उसके नेता यासिर अराफात को आतंकवादी कहा जा रहा था, तब भारत ने उसका समर्थन किया और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता देने वाला पहला गैर अरब देश बन गया था।
भारत की फिलिस्तीन नीति आजादी से पहले के दिनों से जुड़ी रही है। महात्मा गांधी ने 1938 में कहा था, फिलिस्तीन का अरबों से वैसा ही संबंध है, जैसा इंग्लैंड का अंग्रेजी से या फ्रांस का फ्रेंच से है। जवाहरलाल नेहरू ने भी फिलिस्तीन मुद्दे को भारतीय उपमहाद्वीप की सांप्रदायिक समस्याओं के समान बताया था।
इजरायल बनने के पक्ष में भी नहीं था भारत
14 मई 1948 को जब इजरायल को आजादी मिली। फिर संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल और फिलिस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पेश हुआ तो भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया था। तब नेहरू फिलिस्तीन के बंटवारे के खिलाफ थे। इसी आधार पर भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के गठन के खिलाफ वोट किया था।
हालांकि फिर भारत ने 17 सितंबर, 1950 को आधिकारिक रूप से इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। ऐसा करने के बाद भी भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध लंबे समय तक नहीं रहे।
भारत ने कभी नहीं किया इजरायल का समर्थन
जिस तरह से भारत ने इस बार इजरायल का खुलकर समर्थन किया है, पहले भारत ने ऐसा कभी नहीं किया। यह निश्चित तौर पर मिडिल ईस्ट को लेकर सरकार की पॉलिसी में बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। 1948 में अरब-इजरायल युद्ध हो या 1956 का स्वेज संकट या फिर 1967 में फिलिस्तीन के साथ जंग, भारत ने किसी का पक्ष नहीं लिया। 2006 में लेबनान युद्ध में भी उसका रुख ऐसा ही रहा।
2014 से भारत और इजरायल के संबंध दोस्ताना होते गए। भारत ने 2015 और 2016 में इजरायल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्ताव पर वोटिंग करने से भी खुद को अलग रखा। 2014 में गाजा संकट के दौरान युद्ध अपराध को लेकर इजरायल को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में घसीटने के पक्ष में यह प्रस्ताव लाया गया था। 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल जाने वाले पहले प्रधानमंत्री थे।
भारत का इजरायल के साथ खड़े होना कितनी बड़ी बात?
इजरायल कह चुका है कि जब प्रधानमंत्री मोदी जैसे नेता समर्थन करते हैं तो उससे देश को ताकत मिलती है। भारत में इजरायल के राजदूत नाओर गिलोन ने कहा था कि इजरायलियों के लिए भारतीय समर्थन दो तरह से महत्वपूर्ण है। पहला, ग्लोबल पॉलिटिक्स में भारत बहुत ज्यादा अहमियत रखता है। दूसरा, भारत ने खुद आतंकवाद के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है।
चीन और पाकिस्तान को जवाब
भारत ने इजरायल से मित्रता बरकरार रखते हुए उसकी तथाकथित विस्तारवादी या गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक पर कब्जे की रणनीति का समर्थन कभी नहीं किया। भारत जानता है कि ऐसा करना से वह अंतरराष्ट्रीय पटल पर कमजोर पड़ सकता है। पाकिस्तान और चीन भी चाहता है कि भारत खासकर गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक पर कब्जा करने के मामले पर इजरायली रुख का खुलकर समर्थन करे, लेकिन भारत इससे दूर रहता आया है।
इसके पीछे कारण यह है कि अगर भारत ने खुलकर इजरायल की तथाकथित कब्जा करने की नीति का समर्थन कर दिया तो पाकिस्तान भी पाक अधिकृत कश्मीर और उधर चीन अक्साई चीन पर कब्जे को वैध करार देने का दावा ठोक सकता है, जो भारत बिल्कुल नहीं चाहेगा। ऐसे में भारत ने इजरायल के साथ दोस्ती और कूटनीति बरकरार रखी और उसी के जरिए चीन और पाकिस्तान को करारा जवाब भी दिया।