देश के चार धामों में से एक ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर हेरिटेज कॉरिडोर, श्रीमंदिर परियोजना का काम पूरा हो गया है। 17 जनवरी को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 800 करोड़ रुपये से अधिक की इस परियोजना का उद्घाटन कर दिया है। यह परियोजना ओडिशा ब्रिज एंड कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (ओबीसीसी) द्वारा पूरी की गई। उद्घाटन के बाद यह कॉरिडोर आम जनता के लिए खुला रहेगा।
भक्तों को 12वीं शताब्दी के इस मंदिर के दर्शन अब वृहद स्तर पर हो सकेंगे। अब तीर्थयात्रियों के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं भी दी जाएंगी। मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था को भी बढ़ा दिया गया है। पुरी शहर को विश्व धरोहर बनाने की कोशिशें जारी हैं। इसके डेवलेपमेंट के लिए कुल 3,200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
इस कार्यक्रम में भारत और नेपाल के करीब 1,000 मंदिरों को आने का न्योता भेजा गया था। चारो शंकराचार्यों को भी न्योता भेजा गया था। मंदिर प्रशासन ने नेपाल के राजा को भी निमंत्रण भेजा था।
हर दिन 10,000 लोग कर सकेंगे दर्शन
ओडिशा सरकार ने 22 जनवरी से एक महीने की अवधि के लिए राज्य के कई हिस्सों से प्रतिदिन 10,000 लोगों के लिए पुरी के जगन्नाथ मंदिर के दर्शन की व्यवस्था करने की योजना बनाई है।
कई अन्य मंदिरों में भी सुविधा बढ़ाएगी ओडिशा सरकार
जगन्नाथ मंदिर के हेरिटेज कॉरिडोर प्रोजेक्ट के तहत सरकार ने मंदिर के चारों तरफ 75 मीटर के कॉरिडोर का निर्माण किया है। ग्रीन बफर जोन, पैदल पथ, एक रिसेप्शन सेंटर (जिसमें 6,000 भक्त एकसाथ खड़े हो सकते हैं), कल्चरल सेंटर, लाइब्रेरी, जगन्नाथ बल्लभ तीर्थ क्षेत्र का निर्माण किया गया है। साथ ही भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर, संबलपुर के समलेश्वरी मंदिर और बेरहमपुर के तारा तारिणी मंदिर में भी सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी।
यह परियोजना कब शुरू हुई थी? इसकी लागत क्या है?
अक्तूबर 2019 में परियोजना को ओडिशा कैबिनेट से हरी झंडी मिली थी। नवंबर 2019 में इस परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया, जबकि इसका काम पिछले महीने ही पूरा हुआ है। 3200 करोड़ की इस परियोजना को कई भागों में बांटा गया था। अकेले श्री जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर के लिए 800 करोड़ रुपये आबंटित किए गए।
इसके अलावा परियोजना में श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन भवन का पुनर्विकास, 600 लोगों की क्षमता वाला श्री मंदिर स्वागत केंद्र, जगन्नाथ सांस्कृतिक केंद्र, बदडांडा हेरीटेज स्ट्रीट स्केप, समुद्र तट विकास, पुरी झील और मूसा नदी पुनरुद्धार योजना समेत कई काम शामिल हैं।
राज्य सरकार ने पुरी के अंदर यातायात की भीड़ से बचने के उद्देश्य से पर्यटकों को सीधी पहुंच प्रदान करने के लिए 200 करोड़ रुपये की लागत से 2.3 किमी लंबे 4-लेन श्री सेतु (ट्रम्पेट ब्रिज) का निर्माण कराया है। इसके अतिरिक्त, 90 करोड़ रुपये की लागत वाली 630 मीटर लंबी सड़क (श्री डांडा) भी बनाई गई है।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
ओडिशा राज्य के शहर पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दूओं का प्रसिद्ध मंदिर है, यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। पुरी नगर श्री कृष्ण यानी जगन्नाथपुरी की पावन नगरी कहलाती है। वैष्णव सम्प्रदाय का यह मंदिर हिंदुओं की चार धाम यात्रा में गीना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर का हर साल निकलने वाली रथ यात्रा उत्सव संसार में बहुप्रसिद्ध है। पुरी के इस मंदिर में तीन मुख्य देवता विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र व उनकी बहन सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुंदर आकर्षक रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।
इस तरह हुई मंदिर की स्थापना
पुरी का जगन्नाथ मन्दिर तो धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय का अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर भारत के सबसे बड़े स्मारक स्थलों में से एक माना जाता है। कलिंगशैली से बने इस मंदिर में स्थाप्तय कला और शिल्प आश्चर्यजनक प्रयोगों से भरी खुबसुरती की मिसाल है।
श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है। मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र है जो शहर के किसी भी कोनें से देखने पर मध्य में ही नजर आता है। अष्टधातु से निर्मित यह चक्र नीलचक्र भी कहा जाता है।
मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर खड़ा है। इसके अंदर बने आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर का यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली है।
इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गए। मंदिर की मुख्य मढ़ी यानि भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है और दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित है।
यह है मंदिर का इतिहास और इस तरह हुआ निर्माण
गंग वंश में मिले ताम्र पत्रों के मुताबिक वर्तमान मंदिर के निर्माणकार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरु करवाया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल 1078-1148 के दौरान बने थे। इसके बाद ओडिशा राज्य के शासक अनंग भीम ने सन 1197 में इस मंदिर को वर्तमान रुप दिया थी।
मंदिर के निर्माण के बाद इसमें सन 1558 तक पूजा अर्चना होती रही, और अचानक इसी वर्ष अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के ऊपर हमले के बाद पूजा बंद करा दी गई। विग्रहों को चिलिका झील में स्थित एक द्वीप में गुप्त रूप से रखा गया।
इसके बाद रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया और उनके स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के बाद मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुन:स्थापना हुई। मंदिर 400,000 वर्ग फुट में फैला है और चार दीवारी से घिरा हुआ है।