भारत और चीन के बीच तनाव किसी से छिपा नहीं है। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों में अपनी धाक जमाई है। वह धीरे-धीरे श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में घुसपैठ कर रहा है, जिससे भारत के लिए सुरक्षा को लेकर चिंताएं खड़ी हो गई हैं।
हालांकि, भारत ने भी इसका करारा जवाब देना शुरू कर दिया है और ऐसा ही एक करारा जवाब चीन को श्रीलंका में मिला है, जहां भारतीय नौसेना की पनडुब्बी पहुंची है। यह पनडुब्बी बीते शनिवार को श्रीलंका के 76वें स्वतंत्रता दिवस समारोह से पहले यहां पहुंची थी, जो चीन को एक बड़ा संदेश है।
श्रीलंका ने कहा कि INS करंज 67.5 मीटर लंबी है और इसमें कमांडर अरुणाभ के नेतृत्व में 53 लोग सवार हैं। श्रीलंका की मीडिया के मुताबिक आईएनएस करंज 5 फरवरी को प्रस्थान करेगा। यह भारत और श्रीलंका के बीच मजबूत समुद्री संबंधों का प्रतीक है।
आईएनएस करंज ऐसे समय पर श्रीलंका पहुंचा, जब चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना का जासूसी जहाज ‘जियांग यांग होंग 3’ मालदीव की ओर बढ़ रहा था।
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श्रीलंकाई नौसेना को दी गई पनडुब्बी की जानकारी
वहीं, भारतीय नौसेना की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी आईएनएस करंज जब कोलंबो बंदरगाह पर पहुंची, तो उसका श्रीलंकाई नौसेना ने औपचारिक स्वागत किया। कोलंबो में नई दिल्ली के राजदूत संतोष झा ने पनडुब्बी का दौरा किया और कमांडिंग ऑफिसर, कमांडर अरुणाभ और उनके क्रू मेंबर्स के साथ बातचीत की।
इस दौरान श्रीलंकाई नौसेना के लगभग 100 नॉमिनेटेड कर्मियों को पनडुब्बी के बारे में जानकारी दी गई। कमांडिंग ऑफिसर ने बाद में श्रीलंकाई नौसेना के पश्चिमी नौसेना क्षेत्र के कमांडर रियर एडमिरल समन परेरा से मुलाकात की।
क्या है इस पनडुब्बी की खासियत
- आईएनएस करंज स्कॉर्पियन श्रेणी की तीसरी पनडुब्बी है।
- यह एक स्वदेशी पनडुब्बी है, जिसे मेक इन इंडिया के तहत बनाया गया है।
- यह पनडुब्बी अपने लक्ष्य पर सटीक निशाना लगा सकती है।
- पनडुब्बी 67.5 मीटर लंबी और 12.3 मीटर ऊंची है। इसका वजन 1565 टन है।
- पनडुब्बी टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइल से हमला करने और रडार को चकमा देने में सक्षम है।
- पनडुब्बी के पास क्षमता है कि वह पानी के अंदर ही ऑक्सीजन बना सके। इस कारण यह लंबे समय तक पानी में रह सकती है।
- चीन पाकिस्तान हिंद महासागर में अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं। ऐसे में यह भारत के लिए एक बड़ी जरूरत है।
चीन को संदेश देना था भारत का मकसद
भारतीय नौसेना ने श्रीलंका में ऐसे समय में पनडुब्बी को भेजा है, जब श्रीलंका ने रविवार (4 फरवरी) को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाया। भारत के पनडुब्बी भेजने का मकसद हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा मुहैया कराने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। साथ ही ये चीन को भी संदेश देता है कि भले ही वह हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ाता रहे, मगर भारत यहां जवाब देने के लिए तैयार है।
चीन के अधिन हुआ श्रीलंका
चीन किस तरह से अपने कर्ज के जाल में देशों को फंसाता है यह किसी से अब छुपा नहीं है। श्रीलंका को भी चीन ने इसी जाल में फंसा कर बहुत हद तक अपने अधिन कर लिया है। दरअसल, चीनी कंपनियों को भुगतान करने में विफल रहने के बाद से चीन ने 99 वर्षों के लिए श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को अपने कब्जे में लिया है। वहीं, अब मालदीव भी इसी राह पर अग्रसर है।
भारत की चिंता
दरअसल, चीन की बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकर्स और अनुसंधान निगरानी जहाजों को श्रीलंका या मालदीव से अनुमति दिए जाने पर भारत की चिंता इस डर के कारण है कि बीजिंग समुद्री अन्वेषण के नाम पर जासूसी के लिए उनका भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है।
एक चीनी पनडुब्बी आखिरी बार अक्टूबर 2014 में कोलंबो में रुकी थी, इस कदम की भारत ने जमकर आलोचना की थी। भारत ने डॉकिंग को 1987 के समझौते के उल्लंघन के रूप में देखा, जिसमें कहा गया था कि “श्रीलंका में बंदरगाहों को भारत के हितों के प्रतिकूल तरीके से किसी भी देश द्वारा सैन्य उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।”
2017 में, श्रीलंका ने कोलंबो में अपनी एक पनडुब्बी को खड़ा करने के चीन के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए हानिकारक था।
चीन की नई ‘लुक साउथ पॉलिसी’
श्रीलंका ने भले ही चीनी पनडुब्बियों को डॉकिंग करने से मना कर दिया हो, लेकिन बीजिंग को भारत के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में एक और पकड़ मिल गई है। चीन ने बांग्लादेश नौसेना को दो पनडुब्बियां दी हैं और ‘कॉक्स बाजार’ में एक बंदरगाह का निर्माण कर रहा है, जिसका उद्घाटन 2023 में किया गया था।
सैटेलाइट इमेजरी से पता चलता है कि चीन ने नौसेना बेस पर महत्वपूर्ण प्रगति कर ली है, और बेस का आकार इंगित करता है कि पीएलए-नौसेना जल्द ही बेस तक “लॉजिस्टिक पहुंच” हासिल कर लेगी। दूसरे शब्दों में, चीनी पनडुब्बियां नवीनीकरण और सर्विसिंग के लिए बांग्लादेश बंदरगाह पर आएंगी और डॉक करेंगी। विशेषज्ञ इसे चीन की ”पनडुब्बी कूटनीति” बता रहे हैं.
बांग्लादेश में निर्माणाधीन नौसैनिक अड्डे की सैटेलाइट इमेजरी के हालिया विश्लेषण के अनुसार, बंगाल की खाड़ी में पैर जमाने से पीएलए की चीन के तटों से दूर तक काम करने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी और भारत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए नई चुनौतियां पैदा होंगी।
भारत दिखा रहा ताकत
हालांकि, भारत अब दुनिया को अपनी नेवी की ताकत दिखाने लगा है। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के खतरे को देखते हुए जहाजों की सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना हिंद महासागर में तैनात की गई है। यमन के हूती विद्रोहियों ने इजरायल से जुड़े जहाजों पर हमले की धमकी दी थी। भारत ने अपने जहाजों की सुरक्षा के लिए तीन गाइडेड मिसाइल विध्वंसक और टोही विमान भेजे हैं। भारत ने कई जहाजों को हाईजैक से बचाया है। इसका वह दुनिया में प्रचार भी कर रहा है।