भारत की ब्रह्मोस मिसाइल की मांग दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है। इस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का विकास भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है। इसका परिणाम यह है कि अब विभिन्न देश भारत से इस मिसाइल प्रणाली की खरीदारी के लिए उत्सुकता दिखा रहे हैं।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस जो भारत-रूस के संयुक्त उद्यम के रूप में जानी जाती है, अब सऊदी अरब के साथ बिक्री की बातचीत कर रहा है। इसके अलावा, इंडोनेशिया के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो भी इस मिसाइल प्रणाली को अपने रक्षा तंत्र में शामिल करने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं।
भारत सरकार कि ओर से वियतनाम को ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के साथ-साथ अन्य रक्षा सामग्री की भी पेशकश की गई है। यह ब्रह्मोस के लिए एक और सफलता की कहानी है, जो भारत की रक्षा प्रणाली के उत्कृष्टता को प्रमोट कर रही है।
भारत ने रक्षा निर्यात क्षेत्र में अपने प्रयासों को मजबूत बनाने के लिए 2025 तक 35,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है। इसमें ब्रह्मोस मिसाइलों की बिक्री का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। ब्रह्मोस के विकसित होने से यह भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता को मजबूत करेगा, साथ ही उत्पादन क्षेत्र में भी रोजगार की सृजनात्मकता को बढ़ावा मिलेगा।
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ब्रह्मोस मिसाइल की उत्पत्ति
1990 के दशक की शुरुआत में भारत को क्रूज मिसाइलों की आवश्यकता महसूस हुई, जो रणनीतिक निर्देशित मिसाइलें(strategic guided missiles) हैं जो अपने अधिकांश उड़ान पथ पर लगभग स्थिर गति से यात्रा करती हैं और सटीक हमलों को अंजाम देने के लिए जानी जाती हैं। खाड़ी युद्ध में क्रूज मिसाइलों को तैनात किए जाने के बाद, भारत सरकार का मानना था कि देश को क्रूज मिसाइल प्रणाली से लैस करना आवश्यक है।
आखिरकार, फरवरी 1998 में मॉस्को में तत्कालीन रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) प्रमुख डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और तत्कालीन रूसी उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव के बीच एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
1998 के समझौते के परिणामस्वरूप ब्रह्मोस एयरोस्पेस का निर्माण हुआ, जो डीआरडीओ और एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (एनपीओएम) के बीच एक संयुक्त उद्यम था। इसका उद्देश्य सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली का डिजाइन, विकास और निर्माण करना था। 12 जून 2001 को, ब्रह्मोस मिसाइल का पहली बार ओडिशा के चांदीपुर में भूमि-आधारित लॉन्चर से परीक्षण किया गया था। तब से, मिसाइल के विभिन्न संस्करणों को लॉन्च करने के साथ इसे कई बार उन्नत किया गया है। ब्रह्मोस नाम ब्रह्मपुत्र और मोस्कवा नदियों से लिया गया है।
ब्रह्मोस मिसाइल की विशेषताएं
ब्रह्मोस एयरोस्पेस वेबसाइट के अनुसार, ब्रह्मोस एक “दो चरणों वाली मिसाइल है जिसके पहले चरण में ठोस प्रणोदक बूस्टर है” और दूसरे चरण में तरल रैमजेट प्रणाली है। ब्रह्मोस जैसी क्रूज मिसाइलें ‘स्टैंडऑफ रेंज हथियार’ हैं, जिसका अर्थ है कि इन्हें लक्ष्य से इतनी दूरी से दागा जाता है जिससे इसे प्रतिद्वंद्वी की रक्षात्मक प्रणाली से बचने में मदद मिल जाती है।
ब्रह्मोस की मूल उड़ान सीमा 290 किलोमीटर थी। लेकिन, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मिसाइल के संस्करणों का परीक्षण लगभग 400 किलोमीटर की विस्तारित सीमा के लिए किया जा रहा है। साथ ही 800 किमी तक की दूरी सहित उच्च रेंज वाले और भी संस्करण विकसित किए जा रहे हैं। फिलहाल भारत की तीनों सेना भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना नियमित रूप से इस मिसाइल के विभिन्न संस्करणों का परीक्षण कर रही हैं।
ब्रह्मोस मिसाइल दुनिया की उन चुनिंदा मिसाइलों में से एक हैं जिसको रडार से नहीं पकड़ा जा सकता है इसका जीता जागता उदहारण है जब मार्च 2022 को यह मिसाइल गलती से पाकिस्तान में जा गिरी थी। पाकिस्तान का रडार सिस्टम भी इस मिसाइल को डिटेक्ट नहीं कर पाया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मिसाइल की क्या क्षमता है। यह मिसाइल जमीन या पानी से 15 किमी तक की उच्चतम ऊंचाई और 10 मीटर तक की अंतिम ऊंचाई पर उड़ान भर सकती है।
सबसोनिक क्रूज मिसाइलों की तुलना में ब्रह्मोस की गति तीन गुना और उड़ान सीमा 2.5 गुना है। जमीन, युद्धपोतों, पनडुब्बियों और सुखोई-30 लड़ाकू विमानों से लॉन्च की जा सकने वाली ब्रह्मोस मिसाइल के संस्करण पहले ही विकसित किए जा चुके हैं। ये मिसाइल सतह और समुद्र आधारित लक्ष्यों पर वार कर सकती है। पिछले नवंबर में, भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में अपने युद्धपोत से विस्तारित दूरी की ब्रह्मोस मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था।
ब्रह्मोस को क्या खास बनाता है?
ब्रह्मोस दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका सहित अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लोकप्रियता हासिल कर रही है। कथित तौर पर पश्चिम एशिया के कई देशों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। ब्रह्मोस के बढ़ते वैश्विक आकर्षण के बारे में स्पुतनिक इंडिया से बात करते हुए, भारतीय नौसेना के अनुभवी शेषाद्री वासन ने बताया, “ब्रह्मोस दुनिया की ‘सुपरसोनिक डार्लिंग’ है क्योंकि एक बार जब यह मैक-3 की गति के साथ सुपरसोनिक मोड में चली जाती है, तो यह दुश्मन को बचने का बहुत कम समय देती है।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने हाल ही में खुलासा किया कि मिसाइल के ऑर्डर का पोर्टफोलियो 7 अरब डॉलर के आंकड़े को छू गया है। कंपनी के निर्यात निदेशक प्रवीण पाठक ने इस महीने की शुरुआत में रियाद में वर्ल्ड डिफेंस शो में कहा, “ब्रह्मोस के ऑर्डर का पोर्टफोलियो पहले ही 7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जिसमें भारतीय और निर्यात दोनों ऑर्डर शामिल हैं।”
तो, ब्रह्मोस को क्या खास बनाता है? डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के अनुसार, इस मिसाइल प्रणाली की सटीकता और बहुमुखी प्रतिभा इसे अद्वितीय बनाती है। डीआरडीओ के एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक रवि गुप्ता ने बताया, “किसी को ब्रह्मोस का कोई समानांतर नहीं मिलेगा और जो भी सशस्त्र बल इसे अपने शस्त्रागार में रखेंगे, यह उन्हें अपने विरोधियों पर बढ़त देगी।”
“इसके अलावा, भारत में मिसाइल के उत्पादन की लागत अधिकांश देशों की तुलना में बहुत कम है। जब कोई ब्रह्मोस की तकनीकी श्रेष्ठता के साथ इसकी कीमत पर विचार करता है, तो यह विदेशी देशों के लिए दक्षिण एशियाई देश से हासिल करने के लिए एक अत्यधिक शक्तिशाली हथियार है,
भारत अपने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक हैं और इसका एक महत्वपूर्ण कदम ब्रह्मोस मिसाइल की उत्पत्ति और विकास है। यह मिसाइल भारतीय रक्षा उत्पादन क्षमता को मजबूत कर रही है और भारत अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक प्रमुख खिलाड़ी बना रही है। इसके प्रमुख फायदे में से एक यह है कि ब्रह्मोस मिसाइलें भारत को अपने रक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हो सकती हैं, और इससे भारत का रक्षा उत्पादन क्षेत्र ओर अधिक आत्मनिर्भर हो सकता है। साथ ही उत्पादन क्षेत्र में रोजगार की सृजनात्मकता भी बढ़ सकती है। इस प्रकार, ब्रह्मोस मिसाइलें भारत को अपने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद करेगी।