ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष को एक बड़ी उपलब्धि मिली है। वाराणसी कोर्ट की जिला अदालत ने व्यास जी तहखाने में हिन्दुओं को पूजा करने का अधिकार दिया है। प्रशासन को सात दिनों के भीतर इसकी व्यवस्था करने के आदेश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा यहां पर नियमित पूजा की जाएगी।
हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, “हिंदू पक्ष को ‘व्यास जी तहखाना’ में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई है। जिला प्रशासन को सात दिनों के अंदर व्यवस्था करनी होगी। अब सभी को पूजा करने का अधिकार होगा।”
सोमनाथ व्यास के नाती ने दायर की थी याचिका
दरअसल, तहखाने में पूजा की मांग को लेकर सितंबर 2023 में याचिका दायर की गई थी। पूजा करने की मांग की याचिका सोमनाथ व्यास जी के नाती शैलेंद्र पाठक ने की थी। याचिका में मांग की गई थी कि तहखाने को डीएम को सौंप दिया जाए। इसके बाद इस मामले को लेकर भी कई बार कोर्ट में सुनवाई हुई। 17 जनवरी को तहखाने को जिला प्रशासन ने कब्जे में ले लिया था।
हिन्दू पक्ष का कहना था कि नवंबर 1993 तक सोमनाथ व्यास जी का परिवार उस तहखाने में पूजा पाठ करता था, जिसे तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के शासनकाल में बंद करा दिया गया था। अब वहां फिर से हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिलना चाहिए। अब 31 साल बाद फिर से हिंदू व्यास जी तहखाने में पूजा-अर्चाना कर पाएंगे।
और पढ़ें:- सर्वे रिपोर्ट में ASI का दावा-ढांचे से पहले बड़ा मंदिर था मौजूद
तब की राज्य सरकार ने दिए थे आदेश
अब प्रशन यह है कि आखिर तहखाने से जुड़ा विवाद है क्या? सोमनाथ व्यास का परिवार 1993 तक तहखाने में पूजा अर्चना करता था। लेकिन, नवंबर 1993 के बाद तहखाने में पूजा-पाठ पर रोक लगा दी गई थी। तत्कालिन राज्य सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के आदेश पर तहखाने में पूजा बंद कर दी गई थी। यह कदम 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराए जाने के तुरंत बाद उठाया गया था।
बात मुलायम सिंह की कि जाए तो यह वही मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अयोध्या में कारसेवकों पर भी गोली चलवाई थी। और कहा था की अगर कारसेवकों पर गोली न चलती तो मुसलमानों का भरोसा उठ जाता।
केशव मौर्य ने साधा निशाना
केशव प्रसाद मौर्य ने एक्स पर लिखा, “तुष्टिकरण की राजनीति के चलते श्री मुलायम सिंह यादव सरकार ने 1990 में राम भक्तों की हत्या कराई, 1993 में काशी में शिव भक्तों को दर्शन/पूजा से रोका, फिर श्री अखिलेश यादव की सरकार के दौरान 2013 प्रयागराज कुंभ मेले में तीर्थयात्रियों की हुई मौतों, इन सबके लिए सपा को लोग कभी माफ नहीं करेंगे।”
अखिलेश यादव ने कही ये बात
कोर्ट के आदेश के कुछ ही घंटों बाद तहखाने को खोलकर उसमें पूजा शुरू किए जाने पर अखिलेश यादव ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने नियत प्रक्रिया से परे की गतिविधि करार दिया है।
सपा अध्यक्ष ने कहा, ‘‘किसी भी अदालती आदेश का पालन करते समय उचित प्रक्रिया को बनाए रखना होगा। वाराणसी की अदालत ने इसके लिए सात दिन की अवधि तय की थी। अब हम जो देख रहे हैं वह नियत प्रक्रिया से परे जाने और किसी भी कानूनी सहारे को रोकने का एक ठोस प्रयास है।’’
ज्ञानवापी मामले में कुछ दिन पहले ही श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है। जिसमें कई चौकाने वाले साक्ष्य मिले हैं। ASI ने 839 पन्ने की रिपोर्ट तैयार की है, जो बताती है कि मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था।
एसआई की रिपोर्ट में देवनागरी, तेलुगु, कन्नड़ में लिखे पुरालेख मिले हैं। साथ ही जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के बारे में भी पुरालेख मिले हैं। एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा है, जो ASI के मुताबिक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। एसआई की रिपोर्ट के अनुसार मंदिर ढहाए जाने के बाद उसके स्तंभों का इस्तेमाल मस्जिद बनाने में किया गया था। साथ ही तहखाना S2 में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं।
क्या है विवाद
हिन्दू पक्ष का मानना है कि विवादित स्थल 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र धार्मिक स्थल है जो धार्मिक दृष्टि से हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और अब इसी स्थल पर मस्जिद का निर्माण हो चुका है।
वर्ष 1669 में क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने प्राचीन हिन्दू मंदिर को धराशायी कर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। आज जिस जगह काशी विश्वनाथ मंदिर स्थ्ति है, ठीक उसी से सटी जमीन पर यह मस्जिद है लेकिन हिन्दू पक्ष के लोग मानते हैं कि जिस जगह पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थापित था, वह अब मस्जिद में तब्दील हो चुकी है।
अत: मुस्लिम पक्ष कोर्ट के इस फैसले से खासा दुखी है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह इस फैसले को लेकर हाई कोर्ट जाएंगे। दरअसल, भारत के हर एक मुस्लमान को अच्छे से पता है कि ज्ञानवापी का सच क्या है पर फिर भी मुस्लामों को देखकर कोई बात चौंकाती है तो बस यह कि हिंदुओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिद में विध्वंस के स्पष्ट दिखते चिन्हों के बाद भी कोई संवेदनशील व्यक्ति वहां इबादत कैसे कर सकता है?
कैसे मजहबी उन्माद में तोड़े गए मंदिरों पर बनाई गई मस्जिदों को कोई अपनी अस्मिता का प्रतीक बना सकता है? यदि इसके सिवा कोई और बात हैरान करती है तो वह है इन मामलों में मुस्लिम वोट को लेकर पुरानी सरकारों द्वारा हिंदुओं के साथ किया गया पक्षपात है।