भारत की खोई हुई विरासत को पुन: वापस लाने का काम कर रही ‘भारत स्वाभिमान योजना’।

इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट यानी भारत स्वाभिमान योजना भारत की खोई हुई विरासत को पुन: वापस लाने की दिशा में निजी स्तर पर चलाई जा रही एक बड़ी योजना है।

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इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट यानी भारत स्वाभिमान योजना भारत की खोई हुई विरासत को पुन: वापस लाने की दिशा में निजी स्तर पर चलाई जा रही एक बड़ी योजना है। इसी परियोजना के तहत पहले अमेरिका ने भारत से तस्करी करके लाए गए 105 पुरावशेषों को वापस किया था। इसके तीन महीने बाद अक्तूबर 2023 में अमेरिका ने 1400 से अधिक प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां लौटा ने की पेशकश की। यह अबतक की सबसे बड़ी क्षतिपूर्ति है। 

इन पुरावशेषों में न्यूयॉर्क के मेट्रो पॉलिटन म्यूजियम आफ आर्ट में प्रदर्शित वस्तुएंतुएं भी शामिल हैं। ये सभी अवैध रूप से भारत से ले जाई गई थीं। इस प्रकार यह परियोजना ऐतिहासिक संरक्षण, आस्थावानों के लिए आध्यात्मिक अर्थ, पर्यटन से आर्थिक विकास, सद्भावना को बढ़ावा देने वाले विश्वव्यापी सहयोग और सांस्कृतिक बहाली में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।

तमिलनाडु में मंदिरों के शहर श्री पुरंपुरंथन से चोरी हुई कांस्य की नटराज की बहुमूल्य मूर्ति की वापसी और पुनर्स्थापना न केवल शहर की भव्यता को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि एक महत्वपूर्ण बदलाव, प्राचीन गौरव को फिर से जाग्रत करने और पावन सांस्कृतिक जड़ों की रक्षा का भी प्रतिनिधित्व करेगी। 

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क्या है भारत स्वाभिमान परियोजना? 

भारत स्वाभिमान परियोजना उत्साही कला प्रेमियों का एक समूह है, जो सोशल मीडिया के जरिए भारत के मंदिरों से चुराई गई मूर्तियों और कला कृतियों की पहचानकर उनकी स्वदेश वापसी सुनिश्चित करता है।

यह वैश्विक संस्था #BRINGOURGODSHOME नाम से दुनिया भर में अभियान चलाती है। इसकी शुरुआत सिंगापुर में बसे दो भारतीयों एस. विजय कुमार और अनुराग सक्सेना ने 2014 में की थी, जो इस पहल का वित्तपोषण भी करते हैं। इसी संस्था के प्रयासों के परिणामस्वरूप 2014 में आस्ट्रेलिया की नेशनल गैलरी से 50 लाख अमेरिकी डॉलर की भगवान शिव की हजारों वर्ष पुरानी कांस्य प्रतिमा को भारत वापस लाया जा सका।

इस संस्था ने दुनियाभर में मौजूद भारत से चोरी की गई लगभग 4,900 सांस्कृतिक धरोहर का पता लगाया है। इसके अनुसार, बीते एक वर्ष में भारत से 15,000 से 17,000 मूर्तियां चोरी की गई हैं। प्राइड इंडिया टीम ने इनमें से 2,000 मूर्तियां ढूंढ निकाली हैं, जिनमें से 5 भारत लाई जा चुकी हैं। 

तमिलनाडु के श्रीपुरंथन गांव में चोल कालीन बृहदेश्वर मंदिर से 2006 में कांस्य की भगवान नटराज की बहुमूल्य मूर्ति को चुरा कर विदेश में बेच दिया गया था। बाद में यह मूर्ति विभिन्न देशों से होती हुई लंदन के सोथबी नीलामी घर में पहुंची। वहां से आस्ट्रेलिया सरकार ने इस मूर्ति को खरीदा और कुछ दिन बाद ही इसे भारत को सौंप दिया। इसे पुन: श्री पुरंथन मंदिर में स्थापित किया गया है।

परियोजना के संस्थापक अनुराग सक्सेना कहते हैं, ‘‘सबसे पहले ब्लॉगर और कला प्रेमी विजय कुमार ने चोरी की गई नटराज की मूर्ति को देखा था। इसके बाद हमने साक्ष्य ढूंढना शुरू किया ताकि हम बता सकें कि चोरी से पहले यह मूर्ति श्रीपुरंथन मंदिर में थी।

हमने कैनबरा जा कर कुछ लोगों से मूर्ति की तस्वीर लेने के लिए कहा ताकि असली मूर्ति से उसका मिलान किया जा सके। इसके बाद हमने नीलामी घर के डीलर द्वारा प्रस्तुत फर्जी दस्तावेज और रसीद को ढूंढना शुरू किया, जिससे हम यह साबित कर सकें कि मूर्ति चुराई गई थी।’’

वहीं, इसी कड़ी में पीछले वर्ष करीब 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत के बीच उत्तर प्रदेश के लोखरी में एक मंदिर से चोरी हुई योगिनी चामुंडा और योगिनी गोमुखी की मूर्तियों को लंदन में भारतीय उच्चायोग ने इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट और आर्ट रिकवरी इंटरनेशनल के सहयोग से बरामद किया था।

1970 के दशक में लुटेरों ने बनाया था निशाना

माना जाता है कि लोखरी मंदिर में 20 योगिनी मूर्तियां हैं, जिन्हें जानवरों के सिर के साथ सुंदर महिलाओं के रूप में चित्रित किया गया है। 1970 के दशक में मंदिर को लुटेरों के एक समूह ने निशाना बनाया था, जिनके बारे में माना जाता है कि वे राजस्थान और महाराष्ट्र से बाहर काम करते थे और स्विट्जरलैंड के माध्यम से यूरोप में तस्करी करते थे। उस समय अज्ञात संख्या में मूर्तियां चुरा ली गई थीं, अन्य को तोड़ दिया गया था, शेष मूर्तियों को बाद में हटा दिया गया था और स्थानीय ग्रामीणों द्वारा छिपा दिया गया था।

चुराए हुए शिल्प ढूंढने के लिए टीम ३ तरीकों का इस्तेमाल करती है:

  1. जब कहीं चोरी होती है और केस दर्ज किया जाता है तब टीम को पता चलता है। अनुराग कहते हैं, “हमें सपोर्ट करने वाले कुछ लोग सरकार में और कानून प्रवर्तन विभाग में काम करते हैं। वो सब लोग हमें ऐसी घटनाओ के बारे में बताते हैं। कभी कभी हमें गांव वाले बताते हैं या न्यूजपेपर से पता चलता है।”
  2. मूर्ति के चोरी होने के कई सालो बाद उसे अन्य देश में पाया जाता है तब कोई नागरिक या सरकारी अधिकारी हमे उसकी फोटो भेजते हैं और चुराई गई चीज का मूल स्त्रोत ढूंढने को कहते हैं।
  3. टीम के लोग हमेशा सोशल मीडिया और न्यूजपेपर पर नजर बनाए रखते हैं। हमारे लोग सुबह कम से कम आधा घंटा न्यूज पर ध्यान देते हैं जिससे ऐसी घटनाओं के बारे में पता चलता है। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के लोगों ने धीरे धीरे दुनिया के सभी म्यूजियम के ध्यान में ये बात लायी है कि उनके यहां रखी हुई मुर्तियां चोरी की हो सकती हैं।

अनुराग सक्सेना बताते है, “चुरायी हुयी सब मुर्तिया या शिल्प जिस जगह की होती है वहा उनका बहुत ज्यादा महत्व होता है। बहुत सारे लोग हमारे इस मिशन में जुड़े है और हमें मदद करते है। मैं खुश हूँ कि इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं है बल्कि आंदोलन बन चूका है।”

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