बिहार में जेडीयू और उत्तर प्रदेश में आरएलडी एनडीए का हिस्सा हो गए हैं। एनडीए की अगुवा बीजेपी अब ओडिशा में बीजेडी और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ गठबंधन करने जा रही है। इसके साथ ही, अटल-आडवाणी युग का पुराना समूह फिर से आकार ले रहा है। हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए-I की सरकार बनी तो उसकी नींव सहयोगी 24 दलों पर ही टिकी थी। अब स्थितियां वैसी नहीं हैं। अब ये सहयोगी सरकार की नींव नहीं बल्कि स्तम्भ बनेंगे।
भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में 400 से अधिक सीटों के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन सहयोगियों की जरूरत है। हालांकि बीजेपी को 2014 के आम चुनावों में 182 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला था, लेकिन उसने गठबंधन धर्म का पालन किया और एसएडी, टीडीपी और शिव सेना जैसे गठबंधन दलों के सदस्यों को शामिल किया।
आंध्र प्रदेश में BJP, तेलुगू देशम पार्टी (TDP) और जनसेना पार्टी (JSP) का साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला अहम है। लोकसभा चुनावों में अपने लिए 370 और NDA के लिए 400 सीटों का जो लक्ष्य BJP ने घोषित कर रखा है, उसके मद्देनजर नए सहयोगियों का जुड़ाव तो महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी शर्तें भी कम मायने नहीं रखतीं।
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बदल चुका है समीकरण
BJP की TDP पुरानी सहयोगी रही है। 1996 से लेकर 2018 तक यह NDA का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। अब छह साल बाद जब वह वापस लौटी है, तो यह देखना अहम है कि NDA के अंदर का शक्ति समीकरण पूरी तरह बदल चुका है।
कोई हिचक नहीं
वाजपेयी और आडवाणी की अगुआई में जब NDA बना था, तब TDP जैसे सहयोगी दलों के बगैर BJP सरकार नहीं बना सकती थी। यही वजह थी कि इन दलों के दबाव में उसे अपने तीन मूल मुद्दों – राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और कॉमन सिविल कोड – को अस्थायी तौर पर छोड़ने की घोषणा करनी पड़ी थी।
आज की स्थिति यह है कि तीन में से दो मांगें पूरी हो चुकी हैं और उत्तराखंड से कॉमन सिविल कोड को लागू करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। जाहिर है, अपने मूल सिद्धांतों पर किसी भी तरह का संकोच दिखाने की BJP को न तो कोई जरूरत है और न उसकी ऐसी कोई मंशा।
अपने दम पर बहुमत
2014 में अपने दम पर बहुमत हासिल करने के बाद BJP की NDA के सहयोगी दलों पर निर्भरता नहीं रह गई। जाहिर है सहयोगी दलों को लेकर उसके रुख में भी बुनियादी बदलाव आया।
यह खास तौर पर महाराष्ट्र और बिहार में दिखा, जहां वह अलायंस में ‘छोटे भाई’ से ‘बड़े भाई’ की भूमिका में आ गई। लिहाजा शिवसेना और JDU दोनों के नेतृत्व ने NDA से बाहर की राह पकड़ ली। अकाली दल जैसे अन्य सहयोगी दल भी उससे अलग हो गए।
फिर से विस्तार
बदले माहौल में यह प्रक्रिया एक बार फिर रिवर्स मोड लेती नजर आ रही है। न सिर्फ बिहार में JDU फिर से NDA का हिस्सा बन चुका है और आंध्र प्रदेश में TDP से गठबंधन हो गया है बल्कि ओडिशा में BJD के साथ भी बातचीत चल रही है। जाहिर है, BJP नेतृत्व एक बार फिर सहयोगी दलों की संख्या बढ़ाना जरूरी मान रहा है।
टारगेट से उपजा दबाव
टारगेट हासिल करना है तो BJP को उत्तर के राज्यों में अपनी मजबूत स्थिति बनाए रखते हुए दक्षिण के राज्यों में सांसदों की संख्या बढ़ानी होगी। ऐसे में सहयोगी दलों को साथ लाने की जरूरत है तो यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा सीटों पर पार्टी खुद लड़े। आखिर 370 सीटों तक पहुंचने के लिए उसे 67 सीटें और जीतनी होंगी। जाहिर है, लक्ष्य तक पहुंचने के लिए BJP को इस विरोधाभास से भी पार पाना होगा।