केंद्र सरकार ने देश को इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में मजबूत बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने देश को इलेक्ट्रिक वाहनों के मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में विकसित करने के लिए एक नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति को मंजूरी दे दी है।
नई नीति के तहत अब देश में कंपनियां न्यूनतम 4,150 करोड़ रुपये के निवेश से इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के लिए प्लांट लगा सकती हैं। इसके लिए उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों में कम से कम 25 प्रतिशत स्थानीय रूप से निर्मित कंपोनेंट्स का इस्तेमाल करना होगा।
जो कंपनियां इन आवश्यकताओं को पूरा करेंगी, उन्हें 35,000 डॉलर और उससे अधिक कीमत वाली कारों पर 15% के कम आयात शुल्क पर प्रति वर्ष 8,000 इलेक्ट्रिक वाहनों को आयात करने की अनुमति दी जाएगी। भारत आयातित कारों पर उनके मूल्य के आधार पर 70% या 100% का कर लगाता है।
मूल बैंकों से वास्तविक डेबिट किए बिना यूको बैंक खातों में 820 करोड़ रुपये जमा किए गए। इसका कई खाताधारकों ने फायदा उठाया और विभिन्न बैंकिंग चैनलों के माध्यम से धन निकालकर गलत लाभ कमाया। सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है।
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देश में बढ़ेगा EV इकोसिस्टम
सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इस कदम से नवीनतम तकनीक तक पहुंच प्रदान करने और ईवी इकोसिस्टम को बढ़ाने और मेक इन इंडिया पहल में समर्थन मिलने की उम्मीद है। इम्पोर्ट किए जा सकने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर शुल्क छूट वार्षिक पीएलआई प्रोत्साहन (6,484 करोड़ रुपये) या मैन्युफैक्चरिंग कंपनी द्वारा किए गए निवेश, जो भी कम हो, तक सीमित है।
नई ई-वाहन नीति की कुछ खास बातें
–नई ई-वाहन नीति के तहत EV प्लांट लगाने के लिए कंपनियों को न्यूनतम 4,150 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा, जबकि अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है।
–कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए 3 वर्ष का समय दिया जाएगा। ई-वाहनों का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने और अधिकतम 5 वर्षों के भीतर 50% घरेलू मूल्यवर्धन (डीवीए) तक पहुंचना होगा।
–नई नीति में स्थानीयकरण पर भी फोकस किया गया है। कंपनियों को तीसरे साल तक अपने उत्पादों में 25 प्रतिशत तक स्थानीयकरण और पांचवें साल तक 50 प्रतिशत स्थानीयकरण हासिल करना अनिवार्य होगा।
–भारत में कम्प्लीटली नॉक्ड डाउन (CKD) रूप में आने वाली 35,000 डॉलर और उससे महंगी इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर 15% का सीमा शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) 5 साल की अवधि के लिए लगाया जाएगा। इस दौरान कंपनी को भारत में ही 3 साल की अवधि के भीतर प्लांट लगाना होगा।
–यदि निवेश $800 मिलियन या अधिक है, तो प्रति वर्ष 8,000 यूनिट की दर से अधिकतम 40,000 इलेक्ट्रिक वाहनों को आयात करने की अनुमति होगी।
टेस्ला की कारों को भारत में बेचना आसान होगा
नई पॉलिसी के तहत अब कंप्लीट बिल्ट यूनिट (CBU) कार को भारत में इंपोर्ट करना आसान हो जाएगा। CBU पूरी तरह बनी बनाई कार होती है, इनमें कॉस्ट, इंश्योरेंस और फ्रेट (CIF) शामिल होता है।
इनमें 35,000 डॉलर (करीब ₹30 लाख) कीमत वाली कार को भारत में इंपोर्ट करने पर 15% की कस्टम ड्यूटी देनी होगी, जो पहले 40,000 डॉलर (लगभग ₹32.5 लाख) से कम कीमत वाली कारों के लिए 70% और इससे अधिक कीमत वाली कारों के लिए 100% थी। यानी टेस्ला जैसी कंपनियों के लिए भारत में अपनी इलेक्ट्रिक कारों को लाकर बेचना आसान हो जाएगा। हालांकि, इसके लिए भी कुछ शर्तें हैं।
इंपोर्टेड कारों को भारत में बेचने की शर्तें
- ऑटो कंपनियों के लिए नई स्कीम सिर्फ 5 साल के लिए है।
- कंपनी एक साल में सिर्फ 8,000 यूनिट भारत लाकर बेच सकेंगी।
- 5 साल में कुल 40,000 यूनिट्स ही भारत में बेच सकती हैं।
- इंपोर्ट की गई कुल इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जितनी भी ड्यूटी की रियायत मिली है, उसकी भी एक सीमा होगी। वो कंपनी का कुल निवेश या फिर 6,484 करोड़ रुपए, जो भी कम हो, वो लागू होगा।
यानी अगर टेस्ला भारत में अपनी गाड़ियां बेचना चाहता है, तो उसकी इजाजत उसे होगी, लेकिन शर्त ये है कि उसे भारत में अपना प्लांट भी लगाना होगा और DVA की शर्तों का पालन भी करना होगा। तभी उसे अपनी कारों को भारत लाकर बेचने पर ड्यूटी में रियायत मिलेगी।