गैंगस्टर से राजनेता बने मुख्तार अंसारी जो 1980-2010 के बीच उत्तर प्रदेश की राजनीति के बाहुबली युग के चेहरों में से एक था, उसकी 28 मार्च 2024 को राज्य की बांदा जेल में हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई है। अंसारी के परिवार ने दावा किया है कि उन्हें जहर दिया गया था, लेकिन आरोप का समर्थन करने वाला कोई सबूत सामने नहीं आया है।
अंसारी के निधन के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें ‘विनम्र श्रद्धांजलि’ दी है। जिन लोगों ने उनके जीवित रहते हुए उन्हें कानूनी परिणामों से बचाया, वे अब चुनावी लाभ लेने के लिए उनकी छवि को नया आकार देने की कोशिश कर रहे हैं। इस लेख के माध्यम से हम आपको पूर्वांचल में अंसारी के आतंक के शासनकाल की उन पांच डरावनी घटनाओं के बारे में बताएंगे जो उसके क्रूर तांडव की कहानियां बयान करती हैं।
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कृष्णानंद राय की हत्या
कृष्णानंद राय एक अनुभवी और बेहद प्रभावशाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता थे। 1990 के दशक के आखिर में वह मोहम्मदाबाद में मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजल अंसारी के प्रभुत्व के लिए एक चुनौती के रूप में उभर रहे थे। जिसका परिणाम यह रहा कि 2002 के विधानसभा चुनाव में राय ने बीजेपी के टिकट पर अफजाल अंसारी को हराया दिया था।
अफजल अंसारी ने 1985 से इस सीट पर कब्जा कर रखा था और राय द्वारा इसे छीनने का मतलब मोहम्मदाबाद और पूर्वी यूपी में अंसारी बंधुओं के प्रभुत्व के अंत की शुरुआत थी।
अंसारी बंधु बदला लेने के मौके की तलाश में थे, जो उन्हें 29 नवंबर 2005 को मिला। बसनिया चट्टी के पास राय के काफिले पर अंसारी गिरोह ने घात लगाकर हमला किया था। राय और छह अन्य पर कुल 500 राउंड गोलियां चलाई गईं। पुलिस ने 67 गोलियां बरामद कीं। 29 अप्रैल 2023 को, मुख्तार अंसारी को राय की हत्या में शामिल होने के लिए गाजीपुर एमपी/एमएलए कोर्ट ने 10 साल की कैद की सजा सुनाई थी।
अवधेश राय की हत्या
मुख्तार अंसारी 1980 के दशक के अंत में वाराणसी में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। उसके वर्चस्व को चुनौती देने वालों में से एक कांग्रेस की वर्तमान यूपी इकाई के प्रमुख अजय राय के भाई अवधेश राय थे। 3 अगस्त 1991 को प्रतिद्वंद्विता खूनी संघर्ष में तब बदल गई, जब मुख्तार अंसारी और उनके गुर्गे एक वैन में राय के घर आ धमके।
राय बंधु अपने घर के बाहर खड़े थे। अचानक अंसारी गैंग ने दोनों पर गोलियों की बारिश कर दी। सबसे आगे रहने के कारण अवधेश आसान निशाना बन गये। मुख्तार अंसारी का आतंक इतना बड़ा था कि उसको पकड़ने के लिए घटनास्थल के पास नजदीकी पुलिस स्टेशन से कोई बाहर तक नहीं निकलता था।
बाद में अजय राय ने कानूनी लड़ाई लड़ी और 5 जून 2023 को वाराणसी एमपी/एमएलए कोर्ट ने हत्या के आरोप में मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा सुनाई।
मऊ दंगों में भूमिका
1995 के बाद मुख्तार अंसारी ने मऊ में अपनी प्रभावी जगह बना ली थी। यह 2005 में स्पष्ट रूप से स्पष्ट हो गया था, जब अंसारी ने सांप्रदायिक आग को हवा दी थी। 14 अक्टूबर 2005 को कलाकारों द्वारा रामायण का भरत मिलाप समारोह प्रस्तुत किया जाना था। पास के मदरसे के छात्र आये और ऑडियो पार्ट का तार उखाड़ दिया। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उन्हें हिरासत में ले लिया, लेकिन मुख्तार अंसारी के हस्तक्षेप के बाद उन छात्रों को जाने दिया गया।
इसके विरोध करने पहुंचे हिंदुओं पर मुस्लमानों की भीड़ ने हमला कर दिया। हिंदुओं की दुकानें जला दी गईं। जिसके बाद पुलिस ने कर्फ्यू लगा दिया। लेकिन कर्फ्यू के बीच ही मुख्तार अंसारी और उनके लोग खुली जीप में शहर में घूमने लगे। वे बंदूकों से लैस थे। सलाहाबाद मोड़ के पास अंसारी गिरोह ने दुकानदारों को भागने पर मजबूर कर दिया।
जैसे ही वह आगे बढ़े तो दंगाइयों की भारी भीड़ ने लूटपाट शुरू कर दी। उन्होंने गोलियां चलाईं, स्थानीय लोगों को आतंकित किया और जो कुछ वे नहीं लूट सके उसे जला दिया। जाहिर है, अंसारी के काफिले ने दंगाइयों के लिए काम आसान कर दिया था।
शहर 35 दिनों तक जलता रहा। 17 लोग मारे गए, सैकड़ों घर और दुकानें दंगाइयों ने धूल में मिला दीं। अंसारी ने राज्य सरकार द्वारा भेजे गए अधिकारियों को एक इमारत में बैठकर कार्यवाही देखने के लिए मजबूर किया था।
इतिहास में पहली बार भारतीय रेलवे मऊ तक अपनी ट्रेनें नहीं भेज सका। जब योगी आदित्यनाथ दंगे रोकने गए तो अंसारी ने उनके काफिले पर हमला करवा दिया। अंसारी की यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। राष्ट्रव्यापी आक्रोश के कारण अंसारी की गिरफ्तारी हुई और उसके बाद उसे जेल परिसर के बाहर मुश्किल से ही देखा गया।
जेलर आर के तिवारी हत्याकांड
मुख्तार अंसारी के लिए आगरा की सेंट्रल जेल हो, गाजीपुर जेल हो, लखनऊ जेल हो या फिर बांदा जेल। ये तमाम जेलें कभी उसके मंसूबों को नहीं रोक पाई। कई साल पहले लखनऊ में राज भवन के सामने लखनऊ के जेल अधीक्षक आरके तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
इस हत्याकांड में मुख्तार के करीबी शूटरों का नाम आया था। उस पर साजिश रचने का आरोप लगा था, क्योंकि उस समय मुख्तार अंसारी खुद लखनऊ जेल में बंद था। 23 सितंबर 2022 को, अंसारी को इस कृत्य में शामिल होने के लिए पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामला
अंसारी की जिंदगी हथियारों के इर्द-गिर्द घूमती थी। भारत में कानूनी हथियार पाना आसान नहीं है। अंसारी ने कई मौकों पर शस्त्र अधिनियम का उल्लंघन किया था। उसने अपने गिरोह को चालू रखने के लिए कई बार जाली दस्तावेज बनाए, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिशों का सहारा लिया था।
एक ऐसे ही मामले में दस जून 1987 को दोनाली कारतूसी बंदूक के लाइसेंस के लिए जिला मजिस्ट्रेट के यहां प्रार्थना पत्र दिया था। जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर से संस्तुति प्राप्त कर शस्त्र लाइसेंस प्राप्त कर लिया गया था। इस फर्जीवाड़ा का उजागर होने पर सीबीसीआईडी द्वारा चार दिसंबर 1990 को मुहम्मदाबाद थाना में मुख्तार अंसारी, तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर समेत पांच नामजद एवं अन्य अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया।
लेकिन इसके बावजूद इस मामले में अंसारी को अपनी गिरफ्त में लेने में 36 साल लग गए। इस मामले में बीती 16 मार्च 2024 को उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अंसारी के खिलाफ कुल 61 मामले थे, जिनमें से केवल आठ में उसे सजा हुई। योगी आदित्यनाथ प्रशासन ने अंसारी से जुड़े लोगों की सैकड़ों करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली है। मुख्तार अंसारी के मौत के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति के बाहुबली युग का अंत हो गया है।
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