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‘एक देश एक चुनाव’ पर राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट, जानें फायदे और नुकसान

'एक देश एक चुनाव' की संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

Akash Gaur द्वारा Akash Gaur
15 March 2024
in राजनीति
2024 लोकसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव, एक राष्ट्र एक चुनाव, रामनाथ कोविन्द
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‘एक देश एक चुनाव‘ की संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति का कहना है कि सभी पक्षों, जानकारों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद ये रिपोर्ट तैयार की गई है। 

रिपोर्ट में आने वाले वक्त में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगरपालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने के मुद्दे से जुड़ी सिफारिशें दी गई हैं। 191 दिनों में तैयार इस 18,626 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से 32 राजनीतिक दल ‘एक देश एक चुनाव’ के समर्थन में थे।

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रिपोर्ट में कहा गया है, “केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 दलों ने न केवल साथ-साथ चुनाव प्रणाली का समर्थन किया बल्कि सीमित संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए ये विकल्प अपनाने की ज़ोरदार वकालत की।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘एक देश एक चुनाव’ का विरोध करने वालों की दलील है कि “इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा। ये अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा।” रिपोर्ट के अनुसार इसका विरोध करने वालों का कहना है कि “ये व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी।”

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कौन-कौन समिति में?

इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ। सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर कानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ। नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे।

रिपोर्ट में समिति ने क्या-क्या कहा है, क्या सिफारिश की है? 

  • आजादी के बाद पहले दो दशकों तक साथ में चुनाव न कराने का नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ा है। पहले हर दस साल में दो चुनाव होते थे, अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं। इसलिए सरकार को साथ-साथ चुनाव के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से तंत्र बनाना चाहिए।
  • चुनाव दो चरणों में कराए जाएं। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव कराए जाएं। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव हों। इन्हें पहले चरण के चुनावों के साथ इस तरह कोऑर्डिनेट किया जाए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के सौ दिनों के भीतर इन्हें पूरा किया जाए।
  • इसके लिए एक मतदाता सूची और एक मतदाता फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था की जाए। इसके लिए संविधान में जरूरी संशोधन किए जाएं। इसे निर्वाचन आयोग की सलाह से तैयार किया जाए।

क्या एकसाथ चुनाव के लिए संविधान संशोधन की जरूरत है?

समिति ने कहा है कि एकसाथ चुनाव और कार्यकाल फिक्स करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। इसके लिए अनुच्छेद-324 और 325 में संशोधन करना होगा। अनुच्छेद-324 में संशोधन के लिए राज्यों से पुष्टि लेनी होगी। अनुच्छेद-324 में संशोधन से एकसाथ चुनाव कराने और अनुच्छेद-325 में संशोधन से वोटर आई कार्ड के संदर्भ में की गई सिफारिश का रास्ता साफ होगा। 

अनुच्छेद-83 और 172 में संशोधन करने की सिफारिश भी की गई है। इसके तहत लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल के बारे में बताया गया है। इस संवैधानिक संशोधन को राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। समिति ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट में भी संबंधित बदलाव की सिफारिश की है।

त्रिशंकु सदन या सरकार गिरने पर क्या होगा? 

समिति की सिफारिश के अनुसार त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में नए सदन के गठन के लिए फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं। इस स्थिति में नए लोकसभा (या विधानसभा) का कार्यकाल, पहले की लोकसभा (या विधानसभा) की बाकी बची अवधि के लिए ही होगा। इसके बाद सदन को भंग माना जाएगा। इन चुनावों को ‘मध्यावधि चुनाव’ कहा जाएगा, वहीं पांच साल के कार्यकाल के खत्म होने के बाद होने वाले चुनावों को ‘आम चुनाव’ कहा जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के किस जजमेंट का दिया गया हवाला?

समिति ने अपने निष्कर्ष में सुप्रीम कोर्ट के केशवानंद भारती के जजमेंट के सिद्धांत का हवाला दिया है। उसने कहा है कि सिफारिशें केशवानंद भारती केस के सिद्धांतों को स्पष्ट करती हैं। केशवानंद भारती जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक संविधान से लंबे समय तक बने रहने की अपेक्षा की जाती है और इसलिए इसे अनिवार्य तौर पर समायोजी होना चाहिए। 

संविधान और विधान को इनकी जरूरतों के अनुसार बदलना होगा। साथ ही रिपोर्ट में विवेकानंद को कोट करते हुए लिखा गया है- ‘समाज एक ऐसा संघटन है जो प्रगति के अपरिवर्तनशील नियम का पालन करता है और परिवर्तन, विवेकपूर्ण और सतर्क परिवर्तन जनहित के लिए और वास्तव में सामाजिक व्यवस्था के संरक्षण के लिए जरूरी है।’

क्या एकसाथ चुनाव कराया जाना व्यवहारिक तौर पर सफल प्रयोग होगा?

आजादी के बाद चार चुनाव 1952, 57, 62 और 67 के चुनाव में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ ही हुए थे। लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल क्या होगा, त्रिशंकु की स्थिति में मध्यावधि चुनाव के बाद क्या स्थिति होगी इस तरह के तमाम सवालों का जवाब समिति के रिपोर्ट से साफ हो चुका है अब कुछ संवैधानिक संशोधन की जरूरत पड़ेगी और अगर केंद्र सरकार संविधान संशोधन कर पाए तो एक देश, एक चुनाव का रास्ता साफ हो सकता है।

किन-किन विशेषज्ञों की राय ली गई?

समिति ने सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व चीफ जस्टिस, हाई कोर्ट के 12 रिटायर्ड चीफ जस्टिस, चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और आठ पूर्व चुनाव आयुक्तों के साथ-साथ लॉ कमिशन के अध्यक्ष को व्यक्तिगत तौर पर आमंत्रित किया और उनके विचार मांगे। साथ ही फिक्की, आर्थिक मामलों के जानकारों के विचार भी जाने।

क्या है निष्कर्ष?

अभी निष्कर्ष नहीं निकला है। लेकिन, इस बहस में ध्यान रखने की बात यह है कि इस विचार को अमल में लाने के लिए एक आम राजनीतिक सहमति बहुत जरूरी है। फिलहाल यह भी जान लीजिए कि एक सर्वे के मुताबिक पाया गया कि एक साथ चुनाव हुए तो एक आम भारतीय वोटर एक ही पार्टी को राज्य और केंद्र के लिए वोट करे, इसके चांस 77% होंगे।

भारत में चुनावों में धन और ताकत झोंकी जाती है इसलिए इस तथ्य को भी ध्यान में रखना चाहिए। वैसे भी अब तो जो होगा वो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर होगा।

और पढ़ें:- कोविंद समिति के पास पहुंची भाजपा, ‘एक देश-एक चुनाव’ के पक्ष में दिए सुझाव

Tags: 2024 Loksabha Election2024 लोकसभा चुनावLoksabha ElectionsOne Nation One ElectionRamnath kovindएक राष्ट्र एक चुनावरामनाथ कोविन्दलोकसभा चुनाव
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