गत 2 मार्च को झारखंड के सिंदरी में बंद पड़ा खाद कारखाना फिर से शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा कि यूरिया के मामले में भारत आत्मनिर्भर होने जा रहा है। इस खाद कारखाने का शिलान्यास 2018 में प्रधानमंत्री ने ही किया था।
पुराने खाद कारखाने के स्थान पर ही हिंदुस्तान उर्वरक रसायन लिमिटेड (हर्ल) के नाम से इसका निर्माण किया गया है। लगभग 8,500 करोड़ रु. की लागत से निर्मित हर्ल से सालाना लगभग 11.75 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन होगा। यहां हर दिन 3,850 मीट्रिक टन यूरिया और 2,250 मीट्रिक टन अमोनियम का उत्पादन होगा।
इससे पहले प्रधानमंत्री के प्रयासों से ही रामगुंडम (आं.प्र.), गोरखपुर (उ. प्र.) और बरौनी (बिहार) में खाद कारखानों की शुरुआत हुई है। सिंदरी की तरह ये कारखाने भी बंद हो गए थे। इनके शुरू होने से भारत यूरिया के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने वाला है। इस समय देश को लगभग 360 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता पड़ती है। 2014 तक भारत में 225 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन होता था।
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नीम-युक्त यूरिया का उत्पादन
सिंदरी के कारखाने में नीम-युक्त यूरिया का उत्पादन किया जाएगा। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार नीम-युक्त यूरिया सामान्य यूरिया के अनुपात में 5 से 10 प्रतिशत तक कम लगती है जिससे किसानों की लागत घटती है। खेतों में रासायनिक खादों के लगातार इस्तेमाल से जमीन के नीचे नाइट्रोजन की परत बन जाती है।
इस कारण फसल मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाती है। नीम-युक्त यूरिया के इस्तेमाल से नाइट्रोजन की परत नहीं बनती है और यह भूमि के स्वास्थ्य के लिए अच्छी भी होती है।
मार्च 1952 में जवाहर लाल नेहरू ने किया था उद्घाटन
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सिंदरी खाद कारखाने को आधुनिक भारत का मंदिर कहते हुए 1952 मार्च में उद्घाटन किया था। पुस्तक ‘सागा आफ सिंदरी’ के अनुसार खाद बनाने के लिए कोयले और पानी की उपलब्धता जरूरी है।
सिंदरी में दामोदर नदी का पानी है और उससे सटे हुए इलाके झरिया में कोयले का भंडार। पानी और कोयले की उपलब्धता को देखते हुए हीसिंदरी में भारत का पहला खाद कारखाना बना। यह कारखाना 1970 तक लगातार लाभ देता रहा। 1992 में सिंदरी खाद कारखाने को बीमार घोषित कर दिया गया। इसके बाद 31 दिसंबर, 2002 को इस कारखाने को बंद कर दिया गया।
बंगाल में भीषण आकाल के बाद सिंदरी कारखाने की नींव पड़ी
सिंदरी खाद कारखाने की जरुरत 1943 के बंगाल के भीषण आकाल के बाद पड़ी, भारत सरकार की फूड ग्रेन पॉलिसी कमिटी ने सिंदरी फर्टिलाइजर प्रोजेक्ट की नींव रखी। आजादी के बाद इसमें उत्पादन शुरु हुआ तो भारत के किसानों को इससे बड़ी मदद मिली, देश का अनाज भंडार आकाल जैसी स्थितियों से लड़ने लायक बना।
1961 में सिंदरी फर्टिलाइजर एंड केमिकल लिमिटेड और हिन्दुस्तान केमिकल एंड फर्टिलाइजर लिमिटेड को मिलाकर फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी एफसीआईएल बना दिया गया। 1978 में एफसीआईएल ने कई कंपनियां एफसीआई, एचएफसी, आरसीएफ, एनएफएल, बीकेएस और पीडीआईएल का निर्माण हुआ।
1995 में तत्कालीन भारत सरकार ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के साथ संधि की। यही संधि भारत के खाद कारखानों के लिए नुकसानदेह साबित हुई। 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस ओर ध्यान गया।
इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, इंडियन आयल कारपोरेशन लिमिटेड, फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन लिमिटेड को मिलाकर हर्ल का निर्माण किया गया।
नए दौर की नई कहानी
खैर 2002 से 2024 के बीच दामोदर में न जाने कितना पानी बह चुका होगा। एक बार फिर इस नदी घाटी में नई रोशनी नजर आई है। बंद होने के बाद किसी चीज को शुरू करना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंदरी कारखाने को राष्ट्र को सौंप रहे हैं। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि नए दौर में नई कहानी लिखी जाएगी।
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