देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में प्रस्तावित आमूल बदलाव को उस समय काफी ताकत मिली, जब शनिवार को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने उसे युगांतकारी बताया। इस बदलाव का मुख्य वाहक बन रहे तीन कानून – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, न केवल संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके हैं बल्कि उन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है।
ये कानून इस साल एक जुलाई से लागू होने वाले हैं। CJI के बयान की अहमियत इस मायने में है कि प्रस्तावित बदलावों को लेकर समाज के कुछ हिस्सों में कुछ आशंकाओं के भी संकेत मिलते रहे हैं।
ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल
इन्हीं आशंकाओं का एक रूप साल के शुरू में ट्रक ड्राइवरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के रूप में सामने आया। ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस का कहना था कि ड्राइवरों ने अपनी पहल पर काम बंद किया है और इसके पीछे प्रस्तावित नए कानूनों के तहत हिट एंड रन मामलों के लिए किए गए सख्त प्रावधानों के दुरुपयोग का डर है।
सरकार उस डर को निराधार बता रही थी। फिर भी उसने आश्वासन दिया कि इससे संबंधित भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 (2) को उनसे विचार-विमर्श के बाद ही लागू किया जाएगा। 1 जुलाई से तीनों कानूनों के बाकी प्रावधान लागू हो जाएंगे, लेकिन हिट एंड रन से जुड़े प्रावधानों के अमल पर रोक लगी रहेगी।
आशंकाओं को परखने की जरूरत
जब भी कोई बड़ा बदलाव लाया जाता है तो उसे लेकर शंकाएं-आशंकाएं होती ही हैं। इन आशंकाओं को सही नजरिए के साथ परखने की जरूरत होती है। इस लिहाज से देखा जाए तो CJI का ताजा बयान जहां बदलते दौर की जरूरतों के मद्देनजर प्रस्तावित बदलावों की अहमियत को रेखांकित करता है, वहीं यह भी बताता है कि इन बदलावों के पीछे जो मकसद हैं, वे अपने आप हासिल नहीं हो जाएंगे। उसके लिए कई स्तरों पर समानांतर प्रयास चलाए जाने की जरूरत है।
तकनीकी विकास का फायदा
असल जरूरत यह समझने की है कि जब समाज और हमारा जीवन पूरी तरह से रूपांतरित हो रहा हो तब हम पुराने कानूनों से चिपके रहते हुए काम नहीं चला सकते। प्रस्तावित तीनों कानून हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में उस तरह के बदलाव लाने वाले हैं, जिनकी जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी।
तलाशी और जब्ती प्रक्रिया की ऑडियो-विजुअल रेकॉर्डिंग की बात हो या क्राइम सीन पर फॉरेंसिक एक्सपर्ट की मौजूदगी की – जांच और न्याय प्रक्रिया में नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल सुनिश्चित करने वाले इन उपायों का विरोध करने की कोई सुसंगत वजह नहीं दिखती।
संवेदनशीलता की शर्त
मगर ऐसे बदलावों के दुरुपयोग की आशंकाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता। जाहिर है, ऐसे में खुले दिल-दिमाग के साथ सतर्कता बरतते हुए आगे बढ़ना ही सबसे सही विकल्प है। हां, नागरिक अधिकारों और डेटा सुरक्षा को लेकर संवेदनशीलता इसकी अनिवार्य शर्त होनी चाहिए।
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