पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और सत्ताधारी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) के प्रमुख नवाज शरीफ ने हाल ही में स्वीकार किया है कि पाकिस्तान ने 1999 के द्विपक्षीय लाहौर समझौते का उल्लंघन किया था। यह स्वीकारोक्ति उनके छोटे भाई और वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की उपस्थिति में की गई। यह घटना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने भारत-पाकिस्तान संबंधों के इतिहास में एक विवादास्पद मुद्दे को फिर से उजागर किया है।
लाहौर समझौता: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
लाहौर समझौता फरवरी 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच हुआ था। यह समझौता दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता था। इस समझौते में दोनों देशों ने आपसी मतभेदों को सुलझाने और परमाणु हथियारों की दौड़ को रोकने के लिए सहमति जताई थी। इसके अंतर्गत, दोनों देशों ने जम्मू कश्मीर सहित अन्य सीमाई मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का संकल्प लिया था।
समझौते के हस्ताक्षर के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली से लाहौर तक बस यात्रा की थी, जो कि दोनों देशों के बीच एक नयी शुरुआत का प्रतीक मानी जाती थी। इस यात्रा के दौरान दिल्ली-लाहौर सीधी बस सेवा की भी शुरुआत हुई थी, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
समझौते का उल्लंघन: पाकिस्तान की भूमिका
हालांकि, इस ऐतिहासिक समझौते के कुछ ही महीनों बाद, पाकिस्तान की सेना ने भारत के कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर दी। इस घुसपैठ के पीछे तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ का हाथ बताया गया। इस घटना ने लाहौर समझौते की मूल भावना को झटका दिया और दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा दिया। इसके परिणामस्वरूप, भारत ने ऑपरेशन विजय नामक एक सैन्य अभियान चलाया, जिससे पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने में सफलता मिली।
नवाज शरीफ की स्वीकृति और जिम्मेदारी का प्रश्न
PML-N के एक कार्यक्रम में नवाज शरीफ ने खुलकर स्वीकार किया कि लाहौर समझौते का उल्लंघन पाकिस्तान की गलती थी। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु धमाके किए। इसके बाद भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान आए और दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। वो अलग बात है कि हमने वो समझौता तोड़ दिया, इसमें हम कसूरवार हैं। इसमें हमारी गलती है।”
यह स्वीकारोक्ति एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह पाकिस्तान के उच्चतम स्तर पर पहली बार सार्वजनिक रूप से यह माना गया है कि लाहौर समझौते का उल्लंघन पाकिस्तान की ओर से हुआ था। नवाज शरीफ ने यह भी कहा कि उनके छोटे भाई और वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में पाकिस्तान को अपने रुख में बदलाव लाना चाहिए और शांति की दिशा में काम करना चाहिए।
पाकिस्तान के आंतरिक मुद्दे और शहबाज शरीफ की भूमिका
इस कार्यक्रम में नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के आंतरिक मुद्दों पर भी चर्चा की। उन्होंने देश के राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं पर जोर देते हुए शहबाज शरीफ से सुधार की उम्मीद जताई। नवाज शरीफ की इस स्वीकारोक्ति से यह स्पष्ट होता है कि वे देश के मौजूदा हालात से चिंतित हैं और शहबाज शरीफ को एक नए मार्गदर्शन के रूप में देखते हैं।
लाहौर समझौते का भविष्य और भारत-पाकिस्तान संबंध
नवाज शरीफ की यह स्वीकारोक्ति भारत-पाकिस्तान संबंधों के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। यह संभव है कि इस स्वीकृति से दोनों देशों के बीच नए संवाद की संभावनाएं उत्पन्न हों। हालांकि, इसके लिए पाकिस्तान को न केवल अपने पुराने रवैये में बदलाव लाना होगा बल्कि आतंकवाद और घुसपैठ जैसी गतिविधियों पर भी कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और स्थिरता के लिए संवाद और समझौते की दिशा में उठाए गए कदम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। नवाज शरीफ की स्वीकारोक्ति से यह संकेत मिलता है कि पाकिस्तान में एक आत्ममंथन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जो आने वाले समय में दोनों देशों के संबंधों को सकारात्मक दिशा में ले जा सकती है।
निष्कर्ष
नवाज शरीफ की स्वीकारोक्ति पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। यह न केवल लाहौर समझौते के उल्लंघन के प्रति पाकिस्तान की जिम्मेदारी को स्वीकार करता है, बल्कि आने वाले समय में शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। पाकिस्तान को अब अपने आंतरिक और बाहरी नीतियों में सुधार करना होगा ताकि वह एक स्थायी और शांतिपूर्ण भविष्य की ओर बढ़ सके।
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