हमारे देश में 28 राज्य हैं, जिसमें से 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। देश की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो बहुत ही चिंता का विषय है। ऐसे समय में यह जानना अतिमहत्वपूर्ण है कि इस जनसंख्या वृद्धि में हिन्दुओं की संख्या का कितना अनुपात है।
देश में घट रही हिंदुओं की जनसंख्या
अगर हम एक साधारण हिन्दू परिवार की बात करें, तो हम पाएंगे कि हमारी दादी, नानी और हमारे माता-पिता कम से कम 5 से 6 भाई-बहन हुआ करते थे। लगभग 40 वर्ष के युवा के माता-पिता का जन्म आजाद भारत में हुआ, बढ़ती हुई जनसंख्या निश्चित रूप से देश की प्रगति में बहुत बड़ी समस्या है और इसका सीधा असर आर्थिक और सामाजिक रूप से दिखता है।
अगर सही मायनों में हम जनसंख्या के प्रति जागरूक हैं तो हमें जनसंख्या वृद्धि के डेटा को समझना होगा। इंदिरा गांधी की सरकार ने 1970 के दशक में हम दो हमारे दो का नारा दिया। कहीं न कहीं यह नीति साफ तौर पर हिन्दुओं के लिए थी। कैसे? इसका उत्तर आसानी से समझने के लिए पहले हम अभी के आंकड़ों को समझ लेते हैं।
अगर हम हिन्दू और मुस्लिम की जनसंख्या वृद्धि के अनुपात को देखें तो हम पाएंगे कि हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि की दर 2011 के डेटा के हिसाब से 16.08% थी जबकि मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर 24.6% थी। हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर पिछले चार दशकों से घट रही है।
यह वृद्धि दर 1981 में 24.1%, 1991 में 22.7%, 2001 में 19.9% तथा 2011 में 16.8% है। देश में हिन्दू की जनसंख्या, देश की कुल आबादी का 80% भी नहीं रह गई है और हर दशक के बाद यह अनुपात कम ही होता जा रहा है।
केरल राज्य में भी लगातार घट रही हिंदुओं की आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार केरल की बात करें तो हम पाएंगे कि हिन्दू की आबादी वहां सिर्फ 54.72% है, जबकि 1911 (तब त्रावणकोर राज्य) के डाटा के हिसाब से यह 66.57% थी। 1911 के उसी केरल में मुस्लिम आबादी थी मात्र 6.61%, और 2011 में कितनी थी? 26.56% मुस्लिम थे केरल में जनगणना 2011 के अनुसार।
मतलब केरल में हिंदू घट रहे हैं, मुस्लिम बढ़ते चले जा रहे हैं। 2011 और 1911 के आंकड़ों से अगर क्लियर नहीं डेमोग्राफी चेंज का मसला तो एक आंकड़ा 2011 और 2001 का भी है। इन 10 सालों में केरल में हिंदुओं और ईसाइयों की जनसंख्या के मुकाबले मुस्लिम आबादी 10% ज्यादा बढ़ी थी। सिर्फ केरल ही नहीं, पश्चिम बंगाल में भी हिन्दुओं की जनसंख्या घटती जा रही है, जो चिंता का विषय है।
वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया, राजनीतिक गलियारों से लेकर एक आम आदमी के निजी जीवन तक इसका प्रभाव पड़ा। यह वही समय था, जब इंदिरा गांधी ने जनसंख्या को नियंत्रण करने के लिए नसबंदी जैसे सख्त फैसले किए। यह फैसला इंदिरा सरकार ने लिया था, पर इसे लागू करने की जिम्मेदारी उनके छोटे बेटे संजय गांधी को दी गई थी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 60 लाख से ज्यादा लोगो की नसबंदी कर दी गई। अगर हम इस मुद्दे पर प्रकाश डालें तो पाएंगे कि मीडिया में ऐसा कोई भी डेटा प्रकाशित नहीं हुआ, जो यह बता सके कि 60 लाख लोगों में से किस धर्म के कितने लोग थे, जिनकी नसबंदी हुई।
अगर हम हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रख कर 1971 और 1981 के डेटा का अनुपात देखें तो पाएंगे कि 1981 के बाद हिन्दुओं की जनसंख्या घटती जा रही है, जबकि बाकी वर्ग की जनसंख्या हिन्दुओं के अनुपात में तेजी से बढ़ रही है।
अगर सभी धर्म-मजहब के लोगों की नसबंदी जनसंख्या के आधार पर समानुपातिक किया गया होता तो क्या कारण है कि सिर्फ हिंदुओं की जनसंख्या घटी, जबकि बाकियों की बढ़ी? इंदिरा गांधी की सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए वर्ल्ड बैंक, स्वीडिश अंतरराष्ट्रीय विकास प्राधिकरण और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष से 10 मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद मिली थी।
इस पूरे प्रकरण से अगर हम दो साल पीछे 1973 में देखें तो हम पाएंगे कि इंदिरा गांधी ने वर्ष 1973 में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जो एक गैर सरकारी मुस्लिम संगठन है, का गठन किया। इसके लिए देश के हिन्दुओं के साथ-साथ सीधे तौर पर संविधान को भी दर किनार किया गया।
यहां, यह जानना अति आवश्यक है कि यह वही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है, जो राम मंदिर जन्मभूमि विवाद में न्यायालय में राम मंदिर के विरुद्ध पार्टी था। क्या यह सब महज एक संयोग है या फिर हिन्दुओं के विरुद्ध किसी सोची समझी साजिश का हिस्सा?
अगर हम नेहरू गांधी परिवार के इतिहास की पड़ताल करें तो पाएंगे कि कहीं न कहीं इसके तार मुगलों से जुड़ते दिखते हैं। क्या हिन्दू की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है? ये कौन लोग हैं, जो हिन्दुओं या यूं कहें की जो सनातन धर्म के अनुयायियों को मिटाने पर तूले हैं? राम मंदिर आंदोलन के समय लाखों कारसेवकों पर अंधाधुंध गोली चलाने वाले कौन थे? सनातन धर्म के विरोधी ये कौन लोग हैं, जो हिन्दू को हिन्दू के विरुद्ध भड़काना चाहते हैं?
अगर हम कानपूर के बिकरू कांड की बात करें तो पाएंगे कि अपराधी विकास दुबे एक ब्राह्मण था, जिसकी मुठभेड़ में हुई मृत्यु पर ब्राह्मणों को भड़काने की राजनीति शुरू हो गई परंतु बिकरू कांड में बलिदान हुए पुलिस ऑफिसर देवेंदर मिश्रा भी ब्राह्मण थे, पर इस पर कोई चर्चा नहीं हुई।
यह सब उस षड्यंत्र का हिस्सा है, जो सदियों से उन लोगों के खिलाफ चल रहा है, जो सनातन धर्म का परचम लहरा रहे हैं। हिन्दुओं में आपस में फुट डालकर राजनीति करने की आदत देश विरोधी ताकतों की बहुत पुरानी है। परन्तु अब समय आ गया है कि हिन्दुओं को संगठित होकर, ब्राह्मण और दलित की राजनीति से ऊपर उठकर अपने असली दुश्मनों के विरुद्ध रण के लिए तैयार होना होगा।
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