कश्मीर मुद्दे पर चर्चा करते हुए यह स्पष्ट होता है कि विरोधाभासों की एक शृंखला उधर भी है, इधर भी। आधा छिपाने-आधा बताने की फितरत दोनों तरफ है। संविधान के नाम पर संविधान की धज्जियां उड़ाने की कला भी उधर भी है और इधर भी। इस संदर्भ में, हम जम्मू-कश्मीर की स्थिति को देख सकते हैं। चाहे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओजेके) पर पाकिस्तान का दृष्टिकोण हो या भारत में जम्मू-कश्मीर के प्रति कांग्रेस की दृष्टि, दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू दिखते हैं।
पीओजेके पर पाकिस्तान का दोहरा रुख
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओजेके) के प्रति पाकिस्तान का रुख कई विरोधाभासों से भरा है। उदाहरण के लिए, कुछ दिन पहले मुजफ्फराबाद में रहने वाले कश्मीरी कवि और पत्रकार अहमद फरहाद शाह के लापता होने के मामले में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने उनकी पत्नी की याचिका पर शासन से फरहाद को खोजकर अदालत में पेश करने को कहा। हालांकि, शासन ने अदालत को बताया कि फरहाद शाह ‘विदेशी जमीन’ पर हैं, इसलिए उन्हें इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में पेश नहीं किया जा सकता।
पाकिस्तान सरकार का यह दावा एक गहरे विरोधाभास को दर्शाता है। एक तरफ वह पीओजेके को अपना हिस्सा मानता है और दूसरी तरफ उसे विदेशी धरती कहता है। पाकिस्तान के पत्रकार हामिद मीर ने इसे सही रूप में कहा कि यह दिखाता है कि पीओजेके पर पाकिस्तान का कब्जा अवैध है।
जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस का दृष्टिकोण
वहीं, दूसरी ओर, भारत में कांग्रेस का कश्मीर के प्रति दृष्टिकोण भी कम विरोधाभासी नहीं है। हाल ही में 9 जून को रियासी में हुए आतंकवादी हमले पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि यह घटना जम्मू-कश्मीर के चिंताजनक सुरक्षा हालात की असली तस्वीर है। राहुल गांधी का यह बयान उस समय आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे।
यह कहना कि यह जम्मू-कश्मीर के असली हालात हैं, एक अर्धसत्य है। अनुच्छेद 370 और 35-ए के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में स्थिति में सुधार हुआ है। स्थानीय चुनावों में लोगों की भागीदारी और विकास कार्यों की गति यह दर्शाती है कि वहां के लोग शांति और विकास की ओर बढ़ रहे हैं।
पीओजेके में पाकिस्तान की अस्थिरता
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओजेके) में स्थिति और भी जटिल है। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में पहले तो पाकिस्तान सरकार ने फरहाद शाह के मामले में समय मांगा और फिर जब अदालत ने सख्ती दिखाई तो उन्होंने फरहाद को मुजफ्फराबाद पुलिस की हिरासत में दिखाया। इस घटना ने पाकिस्तान की सरकार और न्यायपालिका की असंवेदनशीलता को उजागर किया।
मुजफ्फराबाद स्थित पीओजेके के सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान की अदालतों का वहां कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। 2018 के एक फैसले में पीओजेके के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पाकिस्तान की किसी भी अदालत का फैसला वहां लागू नहीं हो सकता क्योंकि पाकिस्तान उनके लिए ‘विदेशी इलाका’ है।
कांग्रेस का पाकिस्तान प्रेम और राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं
कांग्रेस के नेताओं का पाकिस्तान प्रेम समय-समय पर छलक ही पड़ता है। उन्होंने अपनी करनी से अपने चारों ओर सवालों का घेरा खड़ा कर रखा है। कांग्रेस का कश्मीर मुद्दे पर विरोधाभासी रुख उनके राजनीतिक हितों को सुरक्षित रखने का प्रयास दिखाता है।
राहुल गांधी का यह बयान कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति चिंताजनक है, उस वास्तविकता को नकारता है जो अनुच्छेद 370 और 35-ए के हटने के बाद उभरी है। वहां के लोग अब स्वतंत्रता और विकास की राह पर हैं। आतंकवादियों के जनाजे में शामिल होने और सेना पर पत्थरबाजी करने वाले लोग अब अपने मताधिकार का उपयोग कर रहे हैं और विकास में भाग ले रहे हैं।
पाकिस्तान और कांग्रेस के वास्तविकता से इनकार के कारण
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान और कांग्रेस, दोनों ही वास्तविकता को मानने से इनकार कर रहे हैं। पाकिस्तान को जमीन खो देने का भय है और बांग्लादेश का घाव उसे टीसता रहता है। उसके लिए पीओजेके का मामला उसके अस्तित्व से जुड़ा विषय बन जाता है।
वहीं, कांग्रेस को अपनी राजनीतिक जमीन के खिसक जाने का भय है। कश्मीर में सियासी जमीन के खोने का खामियाजा उसे देश के दूसरे हिस्सों में भी उठाना पड़ सकता है। इसलिए, वे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने के फैसले को गलत बताते हैं और कश्मीर में आई शांति को नकारते हैं।
निष्कर्ष
कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान और कांग्रेस के दृष्टिकोणों में विरोधाभास स्पष्ट है। पाकिस्तान पीओजेके को विदेशी धरती कहता है और वहां के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की बात करता है लेकिन अपने कब्जे को नहीं छोड़ता। वहीं, कांग्रेस जम्मू-कश्मीर की वास्तविकता को नकारती है और राजनीतिक लाभ के लिए इसे एक मुद्दा बनाए रखती है।
लेकिन, लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की सामूहिक चेतना लंबे समय तक भ्रम में नहीं रहती। पाकिस्तान और कांग्रेस दोनों को समझना होगा कि आधा छिपाने-आधा बताने की राजनीति अब ज्यादा समय तक नहीं चल सकती। जनता वास्तविकता को पहचानती है और समय आने पर सही निर्णय लेती है। यह बात उधर भी लागू होती है और इधर भी।
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