पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को एक और झटका लगा है। हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में बीजेपी ने चार में से एक भी विधानसभा सीट पर जीत हासिल नहीं की। ये वही चार सीटें थीं जिनमें से तीन पर बीजेपी ने 2021 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी, लेकिन तीन सीटों पर विजयी बीजेपी उम्मीदवारों के तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल होने से उपचुनाव की आवश्यकता पड़ी। चौथी सीट का उपचुनाव टीएमसी विधायक के निधन के कारण हुआ था।
उपचुनावों का परिणाम और उसका विश्लेषण
रानाघाट दक्षिण
रानाघाट दक्षिण विधानसभा क्षेत्र रानाघाट लोकसभा सीट का हिस्सा है, जिसे बीजेपी के जगन्नाथ सरकार ने इस बार (2024 लोकसभा चुनाव) में 1.87 लाख वोटों के बड़े अंतर से जीता। इसके बावजूद, उपचुनाव में टीएमसी के मुकुट मणि अधिकारी ने बीजेपी के मनोज बिस्वास को 39,000 वोटों से हरा दिया। बिस्वास का उम्मीदवार के रूप में चयन स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच विवाद का कारण बना, क्योंकि वह स्थानीय निवासी नहीं थे। इससे पार्टी में आंतरिक असंतोष और असहमति उत्पन्न हुई।
बागदा विधानसभा सीट
बागदा विधानसभा क्षेत्र बोंगांव लोकसभा सीट का हिस्सा है, जिसे बीजेपी के शांतनु ठाकुर ने इस बार 73,000 वोटों के अंतर से जीता। लेकिन उपचुनाव में बीजेपी के बिनय बिस्वास को टीएमसी की 25 वर्षीय उम्मीदवार माधुपर्णा ठाकुर ने हरा दिया। बागदा में भी, बीजेपी के उम्मीदवार के खिलाफ स्थानीय कार्यकर्ताओं के विरोध ने पार्टी के प्रदर्शन को कमजोर किया।
रायगंज विधानसभा सीट
रायगंज विधानसभा क्षेत्र रायगंज लोकसभा सीट का हिस्सा है, जिसे बीजेपी ने 2019 और 2024 में जीता। लेकिन उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार मानस कुमार घोष को टीएमसी के कृष्णा कल्याणी ने 50,000 वोटों के अंतर से हरा दिया। घोष के चयन के खिलाफ भी स्थानीय कार्यकर्ताओं में असंतोष था, जो पार्टी के प्रदर्शन को और कमजोर कर गया।
मानिकतला विधानसभा क्षेत्र
मानिकतला विधानसभा क्षेत्र टीएमसी का गढ़ रहा है। इस बार उपचुनाव में टीएमसी की सूप्ति पांडे ने बीजेपी के कल्याण चौबे को 62,000 वोटों के बड़े अंतर से हराया। बीजेपी की वोट शेयर भी 35.6% से गिरकर 17.93% पर आ गई, जो पार्टी के गिरते समर्थन का स्पष्ट संकेत है।
बीजेपी की हार के कारण
आंतरिक कलह और असंतोष
बीजेपी के भीतर बढ़ते असंतोष और आंतरिक कलह ने पार्टी की स्थिति को कमजोर कर दिया। उम्मीदवारों के चयन में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की अनदेखी ने पार्टी के प्रदर्शन को बुरी तरह प्रभावित किया।
तृणमूल कांग्रेस की रणनीति
टीएमसी ने अपने उम्मीदवारों के समर्थन में एक मजबूत और संगठित अभियान चलाया। ममता बनर्जी ने व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप कर पार्टी के सभी गुटों को एकजुट किया, जिससे टीएमसी के उम्मीदवारों को फायदा हुआ।
बीजेपी की कमजोर रणनीति
बीजेपी का अभियान कमजोर और असंगठित था। पार्टी के पास जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की कमी थी, और पार्टी नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बढ़ाने में विफलता पाई।
मतुआ समुदाय का समर्थन खोना
बीजेपी का मतुआ समुदाय के समर्थन पर निर्भरता उसके लिए हानिकारक साबित हुई। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के प्रावधानों पर टीएमसी ने सफलतापूर्वक संदेह पैदा किया, जिसे बीजेपी ने काउंटर करने में विफल रही।
भ्रष्ट और संदिग्ध तत्वों का प्रवेश
टीएमसी से बीजेपी में शामिल हुए भ्रष्ट और संदिग्ध तत्वों ने पार्टी की छवि को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया। इसके अलावा, बीजेपी में मौजूद ‘ट्रोजन हॉर्स’ ने भी पार्टी को भीतर से कमजोर किया।
भविष्य की राह
बीजेपी के लिए यह समय गंभीर आत्मनिरीक्षण का है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को पश्चिम बंगाल में पार्टी इकाई का पूरी तरह से पुनर्गठन करना होगा। अगर तुरंत प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो 2026 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन और भी खराब हो सकता है।
बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा बंगाल में एक स्थानीय, समर्पित और करिश्माई नेता को सामने लाना जो ममता बनर्जी का मजबूत विकल्प हो सके। इसके अलावा, पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बढ़ाने और उन्हें साथ लाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की स्थिति का यह पतन केवल एक राजनीतिक हार नहीं है, बल्कि यह पार्टी के लिए एक बड़ा सबक है कि केवल सत्ता की राजनीति से नहीं, बल्कि संगठित और समर्पित प्रयासों से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। अगर बीजेपी अपने आंतरिक कलह को सुलझाने और संगठन को मजबूत बनाने में सफल होती है, तो ही वह बंगाल में अपनी खोई हुई जमीन वापस पा सकती है।
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