नई दिल्ली। हरियाणा में सत्ता की ललक में बिखरा चौटाला परिवार अब अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए एकजुट हो गया है। भाजपा का दामन छोड़ रानियां से बतौर निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं किसान नेता स्व. चौधरी देवी लाल के पुत्र रणजीत चौटाला के नामांकन अवसर पर पहुंच ओम प्रकाश
चौटाला ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया है। तो दूसरी ओर दुष्यंत चौटाला की जेजेपी ने भी रणजीत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। हालांकि चौटाला परिवार की राजनीतिक विरासत कितनी बच पाएगी ये तो हरियाणा के मतदाता 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के दिन मतदान कर तय करेंगे। मगर सियासी जमीन बचाने के लिए परिवार ने पहले की सारी कड़वाहटें भूला कर एकजुटता की बड़ी कवायद शुरू कर दी है। दरअसल 12 सितंबर को रणजीत चौटाला के नामांकन अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने स्वयं पहुंचकर सबको चौंका दिया, तो वहीं जेजेपी की ओर से दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला ने भी वहां उपस्थित रहकर परिवार की एकजुटता के प्रयासों में मदद पहुंचाई। नामांकन के बाद रणजीत चौटाला ने ओमप्रकाश चौटाला के पैर छूकर उनसे जीत का आशीर्वाद लिया। इसके बाद उन्होंने कहा कि परिवार का इकट्ठा होना बड़ा संदेश है। ओम प्रकाश जी बड़े भाई हैं, तो जेजेपी द्वारा उन्हें समर्थन देने के सवाल पर देवी लाल के पुत्र रणजीत चौटाला ने कहा कि जेजेपी के समर्थन का उन्हें लाभ होगा और वे बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीत कर निकलेंगे। वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला ने रणजीत चौटाला को दिए समर्थन पर कहा कि देवी लाल जी के विचारों को आगे लेकर जाना है। उन्होंने कहा कि रणजीत चौटाला को जेजेपी का सदैव समर्थन रहा है। वैसे चौटाला परिवार के नेता पारिवारिक एकजुटता के पीछे बेशक अलग दुहाई दे रहे हैं। मगर हरियाणा से जुड़े राजनीतिक विष्लेशकों का मानना है कि चौटाला परिवार की यह एकजुटता राजनीतिक जमीन बचाने के लिए है। वजह स्पष्ट है कि सूबे में चौटाला परिवार का मूल वोट बैंक जाट और किसान था। मगर अब वह पूरी तरह से भूपेंद्र हुडडा और कांग्रेस के साथ खड़ा है। और भाजपा की जाट-गैर जाट की सियासी लड़ाई में जाट मतदाता पूरी तरह से हुडडा के कारण कांग्रेस के साथ जाता दिख रहा है। इसलिए चौटाला परिवार की मजबूरी है कि वे एकजुट होकर अपने वोट बैंक को साधें ताकि आगे की उनकी सियासी पारी जारी रह सके। उनकी यह सारी कोशिश हिसार, सिरसा और फतेहाबाद के जाटों को साधने की है। क्योंकि ओम प्रकाश चौटाला के दामन पर भ्रष्टाचार का दाग लगने के बाद इनेलो की राजनीतिक जमीन खिसक गई। उस लाभ उठाते हुए 2019 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जेजेपी ने विधानसभा की 10 सीटें जीतीं और वो राज्य में तीसरी राजनीतिक धुरी के रूप में उभरे, जिसका उन्हें लाभ मिला और भाजपा के साथ राजनीतिक मोलभाव कर वे न सिर्फ राज्य के उप मुख्यमंत्री बने बल्कि मलाईदार मंत्रालयों को भी पाने में सफल रहे। तब हरियाणा के लोग उनमें देवी लाल का अक्स देखते थे। मगर साढ़े चार साल के सियासी सफर में ही दुष्यंत की छवि धूमिल हो गई और भाजपा ने भी उनसे पल्ला छुड़ा लिया। अब उनकी भी मजबूरी है कि वे परिवार के नाम पर एकजुट होकर सियासी जमीन बचायें। यही वजह है कि न चाहते हुए भी उन्हें परिवार की एकजुटता के सियासी खेल में शामिल होना पड़ा है। चाहे अवसर बेशक रणजीत चौटाला का नामांकन समारोह बना।
कानपुर मेयर ने मुस्लिम बाहुल्य इलाके में खुलवाए मंदिर: कहीं बनती थी बिरयानी, कहीं मिला कूड़ा
उत्तर प्रदेश में सालों से बंद पड़े मंदिर को फिर से खोलने की मुहिम तेज होती जा रही है। अब संभल के बाद कानपुर की...