दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में स्थित एक पार्क को लेकर वक्फ बोर्ड के दावे को ख़ारिज कर दिया है। इस सरकारी पार्क को वक्फ बोर्ड और इससे संबद्ध संस्थाओं ने ‘शाही ईदगाह पार्क’ नाम दे दिया था। दरअसल, वक्फ बोर्ड चाहता था कि इस कथित ‘शाही ईदगाह पार्क’ में झाँसी की बलिदानी रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा न लगे। 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा से वक्फ बोर्ड को दिक्कत थी। हालाँकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि इस याचिका में उक्त दलील के पीछे कोई कारण नहीं बताया गया है।
वक्फ बोर्ड इसे अपनी संपत्ति बता रहा था, साथ ही कह रहा था कि प्रशासन इस पर अतिक्रमण कर रहा है। सोचिए, विदेशी मजहब से जुड़ी के संस्था एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के खिलाफ हाईकोर्ट चली जाती है और एक सरकारी पार्क को अपने मजहब के नाम पर घोषित कर के इस पर अपना दावा ठोक देती है। हाईकोर्ट ने कहा कि ‘शाही ईदगाह वक्फ मैनेजिंग कमिटी’ DDA द्वारा पार्क का रख-रखाव किए जाने का विरोध नहीं कर सकती, उसके पास ऐसा करने का कोई मूलभूत अधिकार नहीं है। साथ ही उसे दिल्ली महानगरपालिका” द्वारा रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध करने का भी कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस धर्मेश ने कहा कि उन्हें ये समझ नहीं आ रहा है कि आखिर पार्क में प्रतिमा की स्थापना किया जाना किसी के धार्मिक अधिकार के पालन करने का उल्लंघन कैसे हैं। साथ ही ‘दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग‘ को लेकर कहा कि उसने अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर जाकर पार्क को लेकर आदेश जारी किया। इस्लामी कमिटी ने अपनी दलील को साबित करने के लिए 1970 के एक गैजेट अधिसूचना का जिक्र किया था। इसमें बताया गया था कि ये मुग़ल काल में बनी इस प्राचीन संपत्ति और इसका इस्तेमाल नमाज पढ़ने के लिए किया जाता था।
साथ ही ‘शाही ईदगाह वक्फ मैनेजिंग कमिटी’ ने ये भी दावा किया था कि इस पार्क में एक साथ 50,000 लोग आ सकते हैं। असल में दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने इसे लेकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी कर दिया था, जिसे नकारते हुए उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि उसने अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला सुनाया। यानी, उसे इस तरह का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं था। अब DDA इस पार्क को अपने नियंत्रण में लेने की प्रक्रिया शुरू करेगी। असल में रानी लक्ष्मीबाई की ये मूर्ति झंडेवालान इंटरसेक्शन पर स्थित है, जिसे वहाँ से हटाया जाना है।
इसके बाद सवाल उठा था कि मूर्ति को कहाँ शिफ्ट किया जाए। शाही ईदगाह के पास स्थित सरकारी जमीन पर इसे लगाने की बात शुरू हुई, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। मुस्लिम पक्ष के वकील को भी हाईकोर्ट ने फटकार लगाई है। सोचिए, वक्फ और इससे जुड़ी संस्थाएँ किसी भी सरकारी या प्राइवेट जमीन को अपना घोषित कर के वहाँ शरिया लगाना चाहती है। यही कारण है कि वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन आवश्यक है। जब सरकारी जमीन इनसे सुरक्षित नहीं है, तो फिर आम हिन्दू भले इनसे कैसे बचेंगे?