इफ यू डोंट लाइक इंडिया, देन डोंट वर्क इन इंडिया यानी अगर आप भारत को पसंद नहीं करते तो फिर यहां काम भी मत कीजिए। हम सरकार से कहेंगे कि आपको भारत में ब्लॉक कर दिया जाए। दिल्ली हाई कोर्ट ने विकीपीडिया पर यह सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट का रुख आने वाले समय में एक नजीर बनेगा। विकीपीडिया इंटरनेट पर ऐसी वेबसाइट है, जो तमाम शख्सियतों की प्रोफाइल और देश-दुनिया की घटनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी देती है। मामला विकीपीडिया पेज में बदलाव से जुड़ा है। देश की प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसी एशियन न्यूज इंटरनेशनल (ANI) के पेज में बदलाव किया गया था। इसी केस की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने विकीपीडिया को आदेश दिया था कि वह उन तीन लोगों के बारे में जानकारी दे, जिन्होंने एएनआई के विकीपीडिया पेज में बदलाव किए थे।
इस मामले में एएनआई ने हाईकोर्ट में मानहानि की याचिका दाखिल की थी। एजेंसी की दलील थी कि उसके बारे में दी गई जानकारी में संशोधन किए गए हैं, वह मानहानि करने वाले हैं। किसी शख्स ने ANI के पेज में बदलाव करते हुए लिखा था कि वह मौजूदा सरकार का प्रोपेगेंडा टूल है। इसी पर आपत्ति जताते हुए ANI ने हाई कोर्ट का रुख किया था।
कोर्ट की टिप्पणी क्यों नजीर?
हाई कोर्ट की टिप्पणी के कई मायने निकल रहे हैं। पहली बात तो यह कि ऐसा नहीं चल सकता कि भारत में 140 करोड़ की आबादी को देखते हुए यूजर बेस भी आप बढ़ाएं और वहां की संस्थाओं को नीचा दिखाने की कोशिश हो। भारत इंटरनेट यूजर्स के मामले में दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। भारत में 692 मिलियन यानी करीब 70 करोड़ आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है। चीन 1.05 बिलियन (100 करोड़ से ज्यादा) यूजर्स के साथ पहले नंबर पर है। इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले देशों में भारत अमेरिका और रूस को भी पीछे छोड़ चुका है। देश की 49 प्रतिशत से ज्यादा आबादी इंटरनेट यूज करती है। यानी भारत से इन विदेशी कंपनियों को जबरदस्त मुनाफा होता है।
हम आपका बिजनेस ही बंद कर देंगे: कोर्ट
विकिपीडिया के वकील ने दलील दी कि कंपनी का कामकाज भारत से नहीं चलता है, लिहाजा अदालत में पेश होने के लिए वक्त दिया जाए। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस नवीन चावला ने सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि पहले भी विकीपीडिया ऐसी दलील दे चुका है। आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है। सवाल इस बात का नहीं है कि विकीपीडिया भारत से चलता है या नहीं। हम यहां पर आपके बिजनेस को ही बंद कर देंगे। हम सरकार को निर्देश देंगे कि भारत में विकीपीडिया पेज को ब्लॉक कर दिया जाए। अगर आप भारत को पसंद नहीं करते हैं, तो यहां काम करने की भी जरूरत नहीं है।
फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर कुछ भी नहीं चलेगा
हाईकोर्ट के रुख से साफ है कि फ्रीडम ऑफ स्पीच की आड़ लेकर किसी तरह का प्रोपेगेंडा नहीं चलाया जा सकता। विदेशी कंपनियां कई बार इस कवच का दुरुपयोग करती रही हैं। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर आप भारत या उसकी संस्थाओं के खिलाफ कोई एजेंडा चलाएंगे तो आपका कारोबार नहीं चल पाएगा। दरअसल विकीपीडिया एक ऐसी साइट है, जिसका पेज कोई भी एडिट यानी संपादित कर सकता है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ऐसे नहीं चल सकता कि कोई भारत के खिलाफ कुछ भी लिखे और अदालत ऐक्शन न ले। कोर्ट का फैसला इसलिए भी नजीर है कि कोई विदेशी कंपनी भारत से बाहर कामकाज की दलील देकर न्यायिक प्रक्रिया से बच नहीं सकती। अगर उसने भारत या उसकी संस्थाओं के खिलाफ कुछ दुर्भावनापूर्ण कार्य किया, तो उसे खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।
वॉट्सऐप के लिए भी फैसला बन सकता है नजीर
वॉट्सऐप और उसकी पैरेंट कंपनी मेटा ने देश के इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी नियमों को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। 25 फरवरी 2021 को मोदी सरकार ने इंफॉर्मेशन टेकनोलॉजी रूल्स का ऐलान किया था। इसमें कहा गया है कि सोशल मीडिया मैसेजिंग कंपनियों को किसी मैसेज का पता लगाने और उसे सबसे पहले क्रिएट करने वाले शख्स का पता लगाना जरूरी होगा। इन नियमों को एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को मानना होगा। नए आईटी नियम के तहत इन कंपनियों को प्राइवेसी पॉलिसी का ध्यान देना जरूरी होगा। साथ ही यूजर्स को प्रतिबंधित कंटेंट बनाने और अपलोड करने से रोकने के लिए मैकेनिज्म बनाना होगा। इस मामले की सुनवाई के दौरान वॉट्सऐप के वकील ने बेंच से कहा था कि अगर हमें एन्क्रिप्शन (सीक्रेट कोड) तोड़ने के लिए कहा जाता है तो हम देश (भारत) छोड़कर चले जाएंगे। केंद्र सरकार का तर्क है कि सांप्रदायिक हिंसा जैसे मामलों में आपत्तिजनक सामग्री इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए इंटरनेट पर फैलाई जाती है। ऐसे में आईटी नियम समय की जरूरत है। अब दिल्ली हाई कोर्ट का रुख इस मामले के लिए भी एक नजीर बन सकता है। प्राइवेसी के नाम पर आप अपनी दुकान चलाते रहें और देश-समाज उसकी कीमत अदा करे, ऐसा तो नहीं चल सकता।