5 साल, 5 पार्टी… अशोक तंवर नए आयाराम-गयाराम, हरियाणा में फिर तेरी ‘कहानी’ याद आई

अशोक तंवर ने पांच साल में पांचवीं पार्टी बदली है। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ी थी। अब 2024 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में घरवापसी की है।

कल तक नायब सिंह सैनी के साथ दिखने वाले अशोक तंवर अब राहुल के साथ

चंडीगढ़: राजनीतिक मौसम में दल-बदल करना कोई नई बात नहीं है। हमारी महान लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को भी अपनी मर्जी से अपनी पार्टी चुनने का अधिकार है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन सवाल तब उठते हैं, जब पूरे चुनाव प्रचार तक एक शख्स किसी पार्टी का स्टार कैंपेनर हो और प्रचार खत्म होने से चंद घंटे पहले उसका मन बदल जाता है। जी हां, हरियाणा को नया ‘आयाराम-गयाराम’ मिल गया है। हम बात कर रहे हैं अशोक तंवर की। एक दिन पहले तक वो हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी के साथ बुजुर्गों का आशीर्वाद ले रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया पोस्ट को रीपोस्ट कर रहे थे। कल तक वो नायब सिंह सैनी के साथ कदम ताल कर रहे थे लेकिन अब राहुल गांधी से हाथ मिला लिया है। आखिर क्यों अशोक तंवर ने आयाराम-गयाराम की कहानी फिर याद दिला दी? बात होगी उस कहानी की भी लेकिन पहले अशोक तंवर के बारे में जानते हैं।

कौन हैं अशोक तंवर?

अशोक तंवर झज्जर जिले के चिमनी गांव के रहने वाले हैं। दलित समुदाय से आने वाले तंवर पांच साल पहले कांग्रेस छोड़ने तक राज्य में पार्टी का प्रमुख चेहरा थे। राहुल गांधी के करीबी लोगों में उनकी गिनती थी। भारतीय युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 2009 में सिरसा सीट से लोकसभा चुनाव भी जीत लिया। 2014 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन गए। अब यह जान लीजिए कि अशोक तंवर कितनी पार्टियां बदल चुके हैं। अशोक तंवर ने 2019 के विधानसभा चुनाव से 16 दिन पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। तंवर ने 5 अक्टूबर 2019 को कांग्रेस छोड़ी और 21 अक्टूबर को हरियाणा में वोट पड़े थे।

अशोक तंवर के एक्स पोस्ट का स्क्रीनशॉट

TMC से AAP फिर लोकसभा से पहले BJP में

कुछ समय तक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में भी रहे। वहां भी बात जमी नहीं तो 4 अप्रैल 2022 को आम आदमी पार्टी की झाड़ू हाथ में उठा ली। लेकिन यहां भी दाल नहीं गल पाई। उम्मीद थी कि आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा का दरवाजा तो पार कर लेंगे। लेकिन आम आदमी पार्टी ने एनडी गुप्ता को राज्यसभा भेज दिया। इसके बाद 18 जनवरी 2024 को झाड़ू भी तंवर साहब को जंची नहीं। अब नया ठिकाना बनी भारतीय जनता पार्टी। आम आदमी पार्टी को छोड़ने के दो दिन बाद ही उनको बीजेपी में भविष्य दिखा। पार्टी ज्वाइन करते वक्त कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में बदलाव आया है। मैं पीएम मोदी द्वारा भारत को नंबर वन बनाने के लिए किए जा रहे कार्यों से प्रभावित हूं। जितना हो सकेगा राष्ट्र निर्माण की दिशा में काम करूंगा। 2024 में 400 लोकसभा सीटें जीतने के लिए सीएम मनोहर लाल खट्टर और प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी के साथ एक टीम के रूप में काम करूंगा।‘

जींद में बीजेपी प्रत्याशी के लिए 1 अक्टूबर को तंवर ने रैली की

5 साल में 5 पार्टी, 360 डिग्री की तंवर सियासत

आठ महीने के अंदर ही अशोक तंवर का फिर मन हुआ कि पार्टी बदल ली जाए। तंवर ने हरियाणा में मतदान से 48 घंटे पहले बीजेपी को बाय-बाय कर दिया। इस बार उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। यानी उनकी सियासी यात्रा 360 डिग्री पर घूम गई। कांग्रेस से टीएमसी, टीएमसी से आम आदमी पार्टी, आम आदमी पार्टी से बीजेपी और बीजेपी से फिर कांग्रेस। सवाल दल बदलने का नहीं है। सवाल है कि आखिर आपकी पॉलिटिक्स क्या है भाई? जो अशोक तंवर मतदान से दो दिन पहले कांग्रेस में भविष्य देखने लगते हैं, क्या गारंटी है कि 8 अक्टूबर को नतीजे आने के बाद उनकी निष्ठा फिर किसी नई पार्टी के साथ नहीं हो जाएगी? 2024 के लोकसभा चुनाव में अशोक तंवर को बीजेपी ने सिरसा सीट से उम्मीदवार बनाया था। उन्हें कांग्रेस की कुमारी सैलजा ने 2 लाख 67 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी। यह लगातार तीसरा लोकसभा चुनाव था, जिसमें अशोक तंवर को हार मिली।

‘कांग्रेस परिवार में स्वागत है’

बहरहाल राहुल गांधी की महेंद्रगढ़ रैली में अशोक तंवर के हाथ का साथ थामने के बाद कांग्रेस गदगद है। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक एक्स अकाउंट से लिखा गया, ‘कांग्रेस ने लगातार शोषितों, वंचितों के हक की आवाज़ उठाई है और संविधान की रक्षा के लिए पूरी ईमानदारी से लड़ाई लड़ी है। हमारे इस संघर्ष और समर्पण से प्रभावित होकर आज बीजेपी के वरिष्ठ नेता, पूर्व सांसद, हरियाणा में BJP की कैंपेन कमेटी के सदस्य और स्टार प्रचारक श्री अशोक तंवर कांग्रेस में शामिल हो गए। दलितों के हक की लड़ाई को आपके आने से और मज़बूती मिलेगी। कांग्रेस परिवार में आपका पुनः स्वागत है, भविष्य के लिए शुभकामनाएं।‘

आयाराम-गयाराम की कहानी कैसे बनी?

सियासत में ‘मौसम वैज्ञानिकों’ या यूं कहें दल-बदल करने वालों की जब-जब चर्चा होती है, तो एक दिलचस्प कहानी कैसे भुलाई जा सकती है। दल-बदलुओं पर फिट बैठने वाला आयाराम-गयाराम का मुहावरा हरियाणा से ही निकलकर आया है। साल था 1967 और हरियाणा की हसनपुर (सुरक्षित) सीट से निर्दलीय विधायक थे गयालाल। गयालाल ने एक ही दिन के अंदर चार बार पार्टी बदल डाली। उस समय हरियाणा के सीएम भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरने के बाद इस मुहावरे की शुरुआत हुई। भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस से टूटे विधायकों ने विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। यूनाइटेड फ्रंट के नाम से एक नया गठबंधन बना। इसका नेतृत्व साउथ हरियाणा के बड़े नेता राव बीरेंद्र सिंह कर रहे थे। सियासी उठापटक के बीच फरीदाबाद की हसनपुर सीट से विधायक गयालाल पहले कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में गए। इसके बाद उसी दिन वह कांग्रेस में लौट आए। 9 घंटे के अंदर ही फिर उन्होंने यूनाइटेड फ्रंट को ज्वाइन कर लिया। उस समय राव बीरेंद्र सिंह ने एक दिलचस्प बयान दिया- गयाराम अब आयाराम है। यहीं से दल-बदल के प्रेमी नेताओं के लिए यह नई शब्दावली चल निकली।

हरिवंश ने भी अपनी किताब में किया जिक्र

राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर और वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने अपनी किताब ‘झारखंड: सपने और यथार्थ’ में इस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा, ‘जिस आयाराम-गयाराम की संस्कृति 1967 में हरियाणा से शुरू हुई थी, वह क्या थी? सुबह जो विधायक इधर होता था, दोपहर में दूसरे खेमे में चला जाता था। शाम को तीसरे और रात को चौथे खेमे में।‘ हरियाणा के पूर्व गवर्नर जीडी तपासे ने कभी कहा था- जिस तरह से हम अपने कपड़े बदलते हैं, यहां के विधायक उसी तरह दल बदलते हैं। जाहिर है पांच साल में पांच पार्टी बदलने वाले अशोक तंवर सियासत के नए आयाराम-गयाराम बन गए हैं। उन्होंने हरियाणा से शुरू हुए इस सियासी मुहावरे को नया आयाम देने का कार्य किया है।

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