हरियाणा में नायब सिंह सैनी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही धमाका कर दिया है। उन्होंने अनुसूचित जाति वर्ग में उपवर्गीकरण का फ़ैसला लिया है। यानी, हरियाणा की भाजपा सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को राज्य में लागू करेगी। दलित समाज के अति-पिछड़े व वंचित तबकों को भी आरक्षण से लेकर अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, ये सुनिश्चित करने के लिए ये फ़ैसला लिया गया है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपनी दूसरी सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक में ही ये फ़ैसला ले लिया। दलित समाज के एक बड़े वर्ग ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी स्वागत किया था।
CM नायब सिंह सैनी ने शुक्रवार (18 अक्टूबर, 2024) को कहा, “हमारी कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का सम्मान किया है, जिसमें SC में वर्गीकरण के लिए कहा गया था। हमने SC वर्गीकरण के ऊपर इस फैसले को आज से ही लागू करने का निर्णय लिया है।” बता दें कि इसे ‘कोटा के भीतर कोटा आरक्षण’ के रूप में भी जाना जाता है। यानी, पहले से जो आरक्षण आवंटित है, उसके भीतर कुछ खास वंचित वर्गों के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था करना। इससे आरक्षण का लाभ अंतिम पायदान पर खड़े तबकों तक पहुँचता है।
अब हरियाणा में इस आदेश के तहत Deprived Schedule Caste (DSC) नाम से एक अलग समूह का गठन किया है। इसमें 36 जातियों को रखा गया है। ये जातियाँ हैं – अद धर्मी, बाल्मीकि, बंगाली, बरार, बुरार, बेरार, बाटवाल, बरवाला, बौरिया, बावरिया, बाजीगर, भांजरा, चैनल, डागी, दरैन, डेहा, धाया, धेआ, धनक, धोगरी, धनगरी, सिग्गी डुन्ना, महाशा, डूम, गागरा, गंधीला, गंदीला गोंडोला, कबीरपंथी, जुलाहा, खटीक, कोरी, कोली, मरीजा, मरेचा, मजहबी, मजहबी सिख, मेघ, मेघवाल, नट, बडी., ओड, पासी, पेरणा, फेरेरा, संहाई, संहाल, सांसी, भेड़कुट, मनेश, संसोई, सपेला, सपेरा, सरेरा, सिकलीगर, बरिया, सिर्कीबंद।
नायाब सैनी जी सुप्रीम कोर्ट के SC आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले को लागू करके बड़ी शुरुआत कर रहे है।
विपक्ष के लिए ये दो धारी है- समर्थन करेंगे तो जिन्हें लाभ मिल रहा है वो नाराज होंगे और विरोध करेंगे तो दूसरे नाराज होंगे।
कुल मिलाकर लपेट दिए है सैनी जी 🔥🔥 pic.twitter.com/TC2RPwjZSP
— NewsSpectrumAnalyzer (The News Updates 🗞️) (@Bharat_Analyzer) October 18, 2024
हालाँकि, बसपा सुप्रीमो मायावती को ये फैसला पसंद नहीं आया और उन्होंने इसे दलितों को बाँटने व आपस में लड़ाने की साजिश करार दिया। उन्होंने इसे आरक्षण विरोधी व दलित विरोधी फैसला बताते हुए कहा कि कांग्रेस की तरह ही भाजपा भी आरक्षण को खत्म करने के षड्यंत्र में लगी है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी की तारीफ करते हुए कहा कि जातिवादी दलों की ‘फूट डालो, राज करो’ वाले षड्यंत्र विरोधी आंदोलन का नाम ही ‘बहुजन समाज पार्टी’ है। उन्होंने दावा किया कि इन वर्गों को शासक वर्ग बनाने के लिए बसपा का संघर्ष जारी रहेगा।
यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था। असल में मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 6-1 के बहुमत वाले अपने फैसले में कहा था कि ज़रूरतमंदों तक आरक्षण का लाभ पहुँचाने के लिए दलित एवं जनजातीय वर्ग के भीतर वर्गीकरण किया जा सकता है। इस पर अलग-अलग नेताओं में मतभेद रहे। बिहार में HAM(S) के जीतन राम माँझी जहाँ इसके समर्थन में थे और उन्होंने कहा था कि मुसहर समाज के आरक्षण का हक़ मारा जा रहा है, वहीं लोजपा (रामविलास) अध्यक्ष चिराग पासवान ने इसका विरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पिछड़ा समाज में भी जो अधिक पिछड़े हैं, उन्हें चिह्नित कर के उनके लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने ही आदेश को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि SC/ST समरूप वर्ग है और उन्हें आगे विभाजित नहीं किया जा सकता। राज्य पहले से ही इस दिशा में प्रयास करते रहे हैं। 1975 में पंजाब में वाल्मीकि व मजहबी सिख समुदाय को आरक्षण में प्राथमिकता दी गई थी। आंध्र प्रदेश में भी रेली, मादिगा और माला समुदाय को आरक्षण में प्राथमिकता देने का निर्णय 1999 में लिया गया था। बिहार में भी कुछ पिछड़े समुदायों को अलग से वर्गीकृत कर ‘महादलित’ का दर्जा दिया गया था।