रविवार (20 अक्टूबर, 2024) की रात देश करवा चौथ के त्योहार में व्यस्त था। महिलाएँ अपने-अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास कर रही थीं। प्रार्थना कर रही थीं, पूजा कर रही थीं। चन्द्रमा को साक्षी मान कर लाखों पत्नी-पत्नी के जोड़े अपने पवित्र संबंध को और मजबूत करने में लगे थे। इन सबके बीच कुछ परिवार ऐसे भी रहे, जो शायद जीवन भर करवा चौथ के दिन मिले दर्द को नहीं भूल पाएँगे। ये दर्द उन्हें आतंकियों से मिला है। जिस दिन इन घरों की महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना कर रही होंगी, उसी दिन के ख़त्म होते-होते उन्होंने अपने जीवनसाथी को खो दिया। आइए, जानते हैं पूरा मामला क्या है।
जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही एक बार फिर से आतंकवाद का दौर लौटता हुआ दिख रहा है। याद कीजिए नब्बे का वो दशक, जब कश्मीरी पंडितों के खिलाफ ऐसा हिंसक अभियान चलाया गया कि उन्हें घाटी छोड़ कर पलायन करना पड़ा और अपने ही देश में वो शरणार्थियों की तरह गुजर-बसर करने को मजबूर हो गए। हम जम्मू कश्मीर की बात इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’ (NC) सरकार के शपथग्रहण के एक दिन बाद ही एक हिन्दू शख्स की आतंकियों ने हत्या कर दी। अब 7 लोगों की हत्या कर दी गई है।
और हमारे देश का मीडिया इसे कैसे दिखा रहा है, आपको पता है? The Hindu, वही अख़बार जिसके बारे में ये बात फैलाई जाती है कि अगर आप इसे पढ़ेंगे तो आपका UPSC एग्जाम निकल जाएगा। The Hindu ने जम्मू कश्मीर में हुई हत्याओं की खबर को कैसे प्रकाशित किया है आपको पता है? आइए, आपको इस अख़बार का शीर्षक बताते हैं – Militants gun down seven in Kashmir, Say Officials. आइए, हिंदी में भी बता देता हूँ। ‘द हिन्दू’ का शीर्षक कहता है – ‘अधिकारियों का कहना है कि लड़ाकों ने कश्मीर में 7 लोगों को गोली मार दी।’
जम्मू कश्मीर में आतंकियों द्वारा टारगेट किलिंग
इस शीर्षक पर हम चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले आपका ये जानना ज़रूरी है कि जम्मू कश्मीर में आखिर हुआ क्या है। आपने कभी भुट्टा खाया है? नरम-नरम मकई को आग में पका कर उसमें नींबू-नमक रगड़ कर खाया जाता है। इसे ही भुट्टा कहते हैं। बेचारे अशोक चौहान बिहार से कमाने के लिए कश्मीर गए थे, भुट्टा बेचते थे। घर वालों के लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ करने आए थे, घर वालों को अब उनकी लाश मिली है। उम्र थी मात्र 30 साल। वो कोई गलत काम करने तो गए नहीं थे। सड़क के किनारे ठेला लगाते थे, कश्मीरियों को भुट्टा खिलाते थे, और बदले में थोड़े-बहुत पैसे कमा लेते थे। घटना शोपियाँ की है। उन्हें मार डाला गया। अभी अशोक चौहान की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई थी कि गांदरबल में आतंकियों ने एक टनल साइट पर गोलीबारी कर के 7 को मार डाला। इनमें भी 3 बिहार के थे। मृतकों में एक डॉक्टर था और 6 मजदूर। पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा से जुड़े रहे ‘द रेजिस्टेंस फ़ोर्स’, यानी TRF ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। इनका अपराध यही था कि ये केंद्र सरकार के टनल प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे। ये वही TRF है, जो अब तक कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहा था।
He called Non-Kashmiri Indians outsiders during election campaign & enemies of Kashmir and 8 Non-Kashmiri Indians killed by radical Islamists in Sonmarg, Ganderbal & Shopian in the last 72 hours.
Dear Indians
Just think and vote wisely whether it is state or national elections. pic.twitter.com/tOEXFk0DKJ— Baba Banaras™ (@RealBababanaras) October 21, 2024
मृतकों में पंजाब के गुरमीत सिंह, बिहार के अनिल शुक्ला और फहीम नज़ीर जैसे लोग शामिल हैं। इनमें सिख भी हैं, हिन्दू भी, मुस्लिम भी। यानी, पाकिस्तान पोषित आतंकियों के लिए हर वो व्यक्ति उनका दुश्मन है जो भारत सरकार के लिए काम कर रहा हो, भारत सरकार को अपनी सरकार मानता हो। बेचारे मजदूर मेस में खाना खाने के लिए इकट्ठे हुए थे, उन्हें वहीं गोलियों से भून डाला गया। सन्देश दिया जा रहा है कि कश्मीर के विकास में एक ईंट उठाने का भी योगदान कोई व्यक्ति दे रहे है, तो उसे भी मरना पड़ेगा।
मृतकों में एक शशि अबरोल भी शामिल हैं। उनकी पत्नी और परिवार वालों का रो-रो कर बुरा हाल है। परिवार वालों का कहना है कि ऐसा करवा चौथ किसी को न देखना पड़े। परिवार में जो कमाने वाला व्यक्ति था, वही चला गया।
The Hindu आतंकी को आतंकी नहीं कह सकता
अब इस घटना पर The Hindu क्या कहता है? वो इन आतंकियों को अपनी शीर्षक में ही आतंकी नहीं कहता, बल्कि लड़ाका कहता है। ये तो हो ही नहीं सकता कि देश के इतने बड़े मीडिया संस्थान और उसमें काम कर रहे अनुभवी लोगों को आतंकियों और लड़ाकों के बीच का फर्क नहीं पता हो। निर्दोषों का खून बहाने वाले आतंकियों और अन्यायियों से लड़ने वाले लड़ाकों में फर्क होता है। अगर कश्मीर के आतंकवादी लड़ाके हैं, फिर वो किस अन्याय से लड़ रहे हैं? तो इसका मतलब है कि इनकी नज़र में भारत सरकार आक्रांता है, अत्याचारी है, अन्यायी है? क्या यही पढ़ कर बच्चे UPSC क्लियर करेंगे?
इस घटना के कई वीडियो मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में सामने आए हैं। गोलियों से छलनी क्षत-विक्षत लाशें दिख रही हैं। खून दिख रहा है। लेकिन, The Hindu क्या कहता है? वो कहता है कि अधिकारियों का ऐसा कहना है कि ये लोग मारे गए हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि The Hindu में बैठे लोगों को लाशों को देख कर ये न पता चल रहा हो कि ये लोग मृत हैं या जीवित। इसका अर्थ साफ़ है – जानबूझकर अपने एक खास एजेंडे के लिए ये सब किया जा रहा है। मान लीजिए आप पत्रकार हैं। आपको बाहर बारिश की आवाज़ सुनाई दे रही है। आप खबर छापने के लिए क्या करेंगे? पहला तरीका ये हो सकता है कि आप खिड़की खोल कर देखेंगे, फिर लिखेंगे कि बारिश हो रही है। दूसरा तरीका ये हो सकता है कि आप अपने पड़ोसी को फोन करेंगे, फिर खबर छापेंगे कि मेरे पड़ोसी का कहना है कि बारिश हो रही है। The Hindu दूसरा तरीका अपना रहा है। क्योंकि यही उसके एजेंडे में फिर बैठता है। लाशें दिख रही हैं, फिर भी उसे ये सीधी बात भी कहने में हिचक हो रही है कि आतंकियों ने 7 निर्दोषों को मार डाला।
आतंकियों के महिमामंडन का चलन
BBC जैसे मीडिया संस्थान भी पिछले कई दशकों से निर्दोषों की हत्याएँ कर रहे इन आतंकियों को आतंकी नहीं कहते। वो भी Militant, यानी लड़ाका शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। हिंदी में उन्हें उग्रवादी लिखा जाता है। बीबीसी तो ब्रिटेन का सरकारी मीडिया संस्थान है, अपने देश के एजेंडे के हिसाब से खबरें प्रकाशित करता है। The Hindu को तो कम से कम ये समझना चाहिए कि वो विदेशी मीडिया संस्थान नहीं है, भारतीय है। नाम में Hindu है, कंपनी भारत की है – लेकिन खबरें ऐसी जो पाकिस्तान के एजेंडे पर चलती दिखाई देती हैं।
वैसे भारत के मीडिया के एक खास गिरोह द्वारा आतंवादियों का महिमामंडन कोई नई बात नहीं है। कश्मीर के कई युवाओं को आतंकवादी बनाने वाले रियाज़ नाइकू को भी एनकाउंटर में उसकी मौत के बाद कभी मैथ्स टीचर तो कभी पेंटर बता कर प्रचारित किया गया। तो कभी The Quint जैसे मीडिया पोर्टल अलकायदा के खूँखार आतंकी रहे ओसामा बिन लादेन को ‘एक अच्छा पिता और पति’ बता कर उसका महिमामंडन करते हैं। ऐसी मीडिया से तो ये उम्मीद करना भी बेमानी है कि ये आतंकी को आतंकी कहेंगे।