चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। सूबे में 20 नवंबर को मतदान होंगे और वोटों की गिनती यानी परिणाम 23 नवंबर को सामने आएंगे। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली भाजपा-नीत सरकार सत्ता में है। दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र में भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) एक साथ मिलकर सत्ता चला रहे हैं।
पिछले 5 सालों में महाराष्ट्र की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है। 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना का गठबंधन था, जबकि कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। चुनाव हुए, और जब ईवीएम खुली, तो परिणाम भाजपा और शिवसेना के पक्ष में आए। लेकिन सरकार बनाने और मुख्यमंत्री बनने को लेकर मतभेद हुए, तो तत्कालीन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब की विचारधारा को भूलकर धुर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी का हाथ थाम लिया और सरकार बनाने में जुट गए।
दूसरी ओर, एनसीपी नेता अजित पवार भी सत्ता में आना चाहते थे। उन्होंने भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिलाकर सरकार बनाने की कोशिश की। 22 नवंबर 2019 की रात तक कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी की सरकार बनाने की चर्चा चल रही थी, और बताया गया कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन 23 नवंबर 2019 की सुबह जब लोगों की नींद खुली, तो पता चला कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। ऐसा लगा कि कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी का सियासी समीकरण फेल हो गया है और शरद पवार ने खेल कर दिया है। लेकिन जब विधायकों के समर्थन की बात आई, तो भाजपा बहुमत नहीं जुटा पाई। परिणामस्वरूप, 28 नवंबर 2019 को देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार दोनों को इस्तीफा देना पड़ा।
सुबह फडणवीस और अजित पवार इस्तीफा दे चुके थे, और दोपहर होते-होते उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण की तैयारियां शुरू हो गई थीं। उसी शाम उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। यह पहली बार था जब उद्धव परिवार से कोई मुख्यमंत्री बना था। दावा किया गया कि सरकार पूरे 5 साल चलेगी, लेकिन 2 साल और 214 दिनों बाद यह सरकार गिर गई।
सरकार गिरने का कारण
महाराष्ट्र में सरकार गिरने का कारण एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना विधायकों का पाला बदलना था। महाराष्ट्र की राजनीति में पहले से ही उथल-पुथल मची हुई थी। शिवसेना के दो-तिहाई से अधिक विधायक पहले मुंबई से सूरत गए, फिर उन्हें गुवाहाटी भेजा गया। कहा गया कि विधायक उद्धव ठाकरे से नाराज़ हैं और उनकी मांग है कि वह कांग्रेस और एनसीपी की सरकार से बाहर आ जाएं। हालांकि उद्धव ठाकरे इन मांगों को मानने के लिए तैयार थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल भवन पहुंच चुके थे, जहां शिंदे ने मुख्यमंत्री और फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। उद्धव ठाकरे बालासाहेब की बनाई पार्टी शिवसेना पर दावा कर रहे थे। मामला चुनाव आयोग से लेकर कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन विधायकों की संख्या अधिक होने के कारण फैसला एकनाथ शिंदे के पक्ष में गया। एनसीपी का भी यही हाल हुआ। जुलाई 2023 में एनसीपी नेता अजित पवार पार्टी के 30 से अधिक विधायकों के साथ एनडीए में शामिल हो गए। शिवसेना की तरह एनसीपी भी दो धड़ों में बंट गई। मामला चुनाव आयोग तक गया, और फैसला शरद पवार के बजाय अजित पवार के पक्ष में आया।
महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी हालात
पिछले 5 सालों में महाराष्ट्र की राजनीति पूरी तरह बदल चुकी है। 2019 के चुनाव में शिवसेना भाजपा गठबंधन में थी, जबकि एनसीपी और कांग्रेस एक साथ थे। इस बार शिवसेना और एनसीपी दोनों भाजपा के साथ गठबंधन में हैं, जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी कांग्रेस के साथ हैं। इस गठबंधन में भी सीट बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही है।
भाजपा-शिवसेना को मिला था जनादेश
महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा-नीत गठबंधन को 161 सीटें मिली थीं। 105 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, जबकि शिवसेना ने 56 सीटें जीती थीं। जनता ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया था। महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 145 सीटों का जादुई आंकड़ा चाहिए। जिस पार्टी या गठबंधन के पास 145 या उससे अधिक सीटें होंगी, वह सरकार बना सकेगी।