1947 में आजादी के बाद जहां भारत में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं के साथ नए देश के निर्माण की नींव रखी जा रही थी तो वहीं कई जगहों पर भाषाओं के आधार पर नए-नए राज्यों के गठन की मांग भी चल रही थी। तत्कालीन बॉम्बे राज्य भी इन्हीं भी शामिल था जिनसे अंतर्गत आज के महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के हिस्से आते थे।
पढ़ने के लिए नहीं थे पैसे
यशवंतराव चव्हाण का जन्म 12 मार्च 1913 को ‘देवराष्ट्र’ गांव में हुआ था तब ये सतारा जिले में आता थे और फिलहाल सांगली जिले के अंतर्गत आता है। चव्हाण ने अपना बचपन इसी गांव में बिताया और उनकी प्राथमिक शिक्षा भी यहीं शुरू हुई। देवराष्ट्र में जिस घर में उनका जन्म हुआ था, उस जगह पर आज एक स्मारक बनाया गया है। उनके पिता बलवंतराव चव्हाण का प्लेग महामारी के दौरान निधन हो गया था और मां विठाबाई ने यशवंतराव और उनके तीन भाई-बहन का पालन पोषण किया था। पिता के निधन के समय यशवंतराव केवल 5 वर्ष के थे।
उनके शुरुआती जीवन कष्टों में बीत रहा था और उन दिनों स्कूलों में फीस माफी के लिए किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति से ‘विद्यार्थी गरीब है’ का सिफारिश पत्र लेना पड़ता था और वे स्कूली पढ़ाई के लिए अपनी फीस माफ कराना चाहते थे। डॉ के.जी. कदम ने अपनी किताब ‘आधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार- यशवंतराव चव्हाण’ में लिखा है, “एक दिन यशवंत गांव में एक खानदानी श्रीमंत के पास सिफारिश पत्र मांगने गए लेकिन उसने गरीबी का सिफारिश पत्र देना मना कर दिया और तिरस्कार के शब्द भी सुनाए। इस छोटी-सी घटना से यशवंत के मन को ठेस पहुंची थी।”
वीर सावरकर और यशवंतराव की मुलाकात
हालांकि, उनके बड़े भाई और दोस्तों की मदद से उनकी शिक्षा चलती रही यशवंतराव ने 1934 में मैट्रिक की और कोल्हापूर के राजाराम कॉलजे से उन्होंने बीए कर लिया। इसके बाद वे एल.एल.बी करना चाहते थे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो ऐसे में खेत बेचकर उन्हें पूने के लॉ कॉलेज भेजा गया। 1939 में कानून की परीक्षा पास नहीं कर सके लेकिन वे फिर पढ़ने में जुटे और अगले 6 महीनों में परीक्षा पास कर ली। 26 जनवरी 1930 को उन्होंने कराड में झंडावंदन किया और स्वतंत्रता के लिए कोशिश करने की शपथ ली थी और यहीं से उनके जीवन में स्वतंत्रता आंदोलन और राजनीति की शुरुआत हुई थी। वे कांग्रेस से जुड़े हुए थे और एलएलबी की परीक्षा पूरी करने के दौरान इस दौरान उन्हें जिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
यशवंतराव को अब वकालत भी करनी थी और राष्ट्रीय आंदोलन में भी हिस्सा लेना था तो ऐसे में उन्होंने कराड में एक घर किराए पर लेकर उसमें वकालत करनी शुरु कर दी और वे राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय थे। उनमें स्वतंत्रता के प्रति जुनून किस कदर था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जून 1942 में अपनी शादी का जो कार्ड छपवाया था उसमें तिरंगा झंडा लगाया गया था। वे लगातार राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े होने के चलते भूमिगत थे और इस दौरान उनके भाई की मृत्यु हो गई जिसकी जानकारी उन्हें करीब 15 दिनों बाद हुई। के.जी. कदम ने लिखा है कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काम करने के दौरान रत्नागिरी में यशवंतराव की मुलाकात वीर सावरकर से हुई थी।
यशवंतराव पर रखा गया 1,000 रुपए का इनाम
1942 में जब महात्मा गांधी के करो या मरो नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन शुरु हुआ तो यशवंतराव उसमें जुट गए। रंजन परमार ने अपनी किताब ‘यशवंतरावजी चव्हाण: व्यक्ति और कार्य’ में लिखा है कि 1942 के आंदोलन के दौरान यशवंतराव को पकड़ने के लिए अंग्रेज सरकार ने उन पर 1,000 रुपए का इनाम भी रखा था। उन्होंने लिखा है, “इस आंदोलन में भूमिगत काम करने के लिए नौजवानों का जो गुट तैयार हुआ था उसकी बागडोर यशवंतराव के हाथ में ही थी।”
इस दौरान जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार ना कर सकी तो उनके परिवार को परेशान किया गया और उनकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस बीच एक दिन उनकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई और वे जब उन्हें देखने आए तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन पर एक जनसभा के दौरान भाषण देने के आरोप में जेल की सजा हुई और येरवडा जेल भेज दिया गया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद 1946 का चुनाव पहला चुनाव था। कांग्रेस ने इन चुनावों में जीत दर्ज की और बालासाहेब गंगाधर खेर बॉम्बे के प्रधानमंत्री चुने गए। इस दौरान यशवंतराव मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो सके लेकिन प्रधानमंत्री खेर ने उन्हें संसदीय सचिव बना दिया। हालांकि, वे इस पद पर नहीं जाना चाहते थे लेकिन जब उनके मां ने उनसे यह पद स्वीकार करने का आग्रह किया तो यशवंतराव ने उनकी बात मान ली। 1952 के चुनाव में वे कराड उत्तर की सीट से बॉम्बे विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और मोरारजी देसाई की सरकार में उन्हें नागरिक आपूर्ति और वन जैसे मामलों का मंत्री बनाया गया।
महाराष्ट्र के पहले CM बने चव्हाण
1956 में संसद से राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया और राज्यों की सीमाएं फिर से तय की गईं। राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत बॉम्बे राज्य का भी पुनर्गठन हुआ और मराठी-भाषी मराठवाड़ा और विदर्भ के साथ-साथ गुजराती-भाषी सौराष्ट्र और कच्छ को इसमें शामिल कर लिया गया। हालांकि, 1956 के बाद से ही संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के तहत नया मराठा भाषी राज्य और महागुजरात आंदोलन के तहत गुजराती भाषी लोगों के लिए गुजरात राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी।
इस आंदोलन के बीच 1956 में मुंबई के फ्लोरा फाउंटैन (अब हुतात्मा चौक) पर आंदोलनकारी महाराष्ट्र राज्य की मांग को लेकर इकट्ठा हुए थे। इन प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोलीबारी कर दी गई जिसमें घटनास्थल पर ही 15 लोगों की मौत हो गई और इस आंदोलन में 106 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई को हटाकर केंद्र में भेज दिया गया और उनकी जगह यशवंतराव चव्हाण बॉम्बे के अगले मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए।
1957 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से पूर्ण बहुमत से जीत दर्ज की और यशवंतराव इस चुनाव में कराड उत्तर से विधायक बने। यशवंतराव को विधायक दल का नेता चुना गया और वे दूसरी बार बॉम्बे के मुख्यमंत्री चुन लिए गए। आंदोलन के चलते इन चुनावों में मराठी भाषी इलाकों में कांग्रेस को कम सीटें मिली थीं। माना जाता है कि चव्हाण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को नए महाराष्ट्र राज्य की गठन के लिए मनाया था और उन्हें मराठी भाषा महाराष्ट्र का निर्माता माना जाता है।
संसद में 1960 में बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया और 1 मई 1960 से बॉम्बे को महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में बांट दिया गया। यशवंतराव चव्हाण इस नए बने महाराष्ट्र राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे। चीन व भारत के 1962 के युद्ध के बाद रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन को पद से हटा दिया गया और यशवंतराव चव्हाण को उनकी जगह रक्षा मंत्री बनाया गया। वे तब तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे थे।
मुख्यमंत्री के तौर पर क्या-क्या किया?
मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सलाहकार मंडल की स्थापना की और उद्योग धंधों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए उन्होंने बम्बई राज्य फाइनेंसियल (अब महाराष्ट्र राज्य वित्तीय महामंडल) कार्पोरेशन की स्थापना की। बताते हैं कि जब वे किसी जिला या तहसील के कार्यक्रमों में जाते थे तो उस समय वहां के लोगों की शिकायतें सुनने के लिए वह एक-डेढ़ घंटे का समय निर्धारित रखते थे। चव्हाण ने शिक्षा के लिए कई कार्यक्रम शुरु किए थे। उन्होंने मराठवाडा के लिए स्वतंत्र विद्यापीठ की स्थापनी की और दक्षिण महाराष्ट्र के लिए कोल्हापुर में शिवाजी विद्यापीठ की शुरुआत की।
खेती के लिए कर्ज की पूर्ति, खेती विकास, खेत माल की बिक्री और दुग्ध उत्पादकों की संघटना जैसे कई काम यशवंतराव के शासन काल में शुरु किए गए थे। आज महाराष्ट्र को बॉलीवुड का केंद्र माना जाता है लेकिन इसके केंद्र बनने की शुरुआत 1957 में तब हुई थी जब मनोरंजन कर में छूट देने की नई पद्धति उन्होंने लागू की थी। यशवंतराव ने गांधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में दंगों में जिन ब्राह्मणों के घर, दुकान जलाए गए उनको सरकार की ओर से दिए गए कर्ज को भी यशवंतराव ने माफ कर दिया था।
देश के उप-प्रधानमंत्री बने यशवंतराव
1962 के उप-चुनाव से संसद पहुंचे यशवंतराव देश में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री के पदों पर रहे। माना जाता है कि कई लोग उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते थे, वे प्रधानमंत्री तो नहीं बने लेकिन चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री काल में देश के उप-प्रधानमंत्री रहे। 1980 के बाद इंदिरा गांधी की सरकार आने के बाद वित्त आयोग के अध्यक्ष भी रहे।
‘आम लोगों के नेता’ नाम से मशहूर हुए यशवंतराव चव्हाण का 71 वर्ष का आयु में 25 नवंबर 1984 को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार कराड में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया था।