खुद को किसानों की सबसे बड़ी रहनुमा बताकर हरियाणा में सत्ता हासिल करने का सपना देख रही कांग्रेस का सपना तो टूट गया है। इन चुनावों में बीजेपी ने अकेले दम पर पूर्ण बहुमत पाकर सत्ता हासिल कर ली है। हालांकि, अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या कांग्रेस की किसानों के प्रति रहनुमाई सिर्फ सियासी सौदेबाजी थी? क्या कांग्रेस पिछले कई वर्षों किसानों का मुद्दा सिर्फ इसलिए उठा रही थी क्योंकि उसे हर कीमत पर सत्ता हासिल करनी थी? क्या दिल्ली को महीनों तक बंधन बनाने के प्रयास सिर्फ इसलिए किए जा रहे थे क्योंकि कांग्रेस को सत्ता हासिल करनी थी? ये सवाल सिर्फ हवा में नहीं उठे हैं इनके पीछे हैं भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी का बड़ा दावा।
‘किसानों ने कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया’
हरियाणा में कांग्रेस की हार को लेकर गुरनाम सिंह चढूनी ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर जमकर जुबानी हमला बोला है और इस बीच उन्होंने एक ऐसा सच बोल दिया जो शायद कांग्रेस वर्षों से छिपाना चाह रही थी। चढूनी ने कहा, “हरियाणा में जो माहौल बनाया, कांग्रेस के पक्ष में, वो हमने बनाया था, वो किसान वर्ग ने बनाया था।” चढूनी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा, “भूपेंद्र सिंह हुड्डा अति बुद्धिहीन है। पिछेल 10 वर्षों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विपक्ष की भूमिका नहीं निभाई बल्कि विपक्ष की भूमिका किसान यूनियन ने निभाई। अगर ऐसा ही रहा तो आगे भी कांग्रेस का राज नहीं आएगा।”
कांग्रेस द्वारा प्रायोजित था आंदोलन: बीजेपी
चढूनी के इस बयान के बाद बीजेपी के राज्यसभा सांसद और पार्टी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है। त्रिवेदी ने कहा, “वह (चढूनी) स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि हमने कांग्रेस के पक्ष में किसान आंदोलन खड़ा करके माहौल बनाया और कांग्रेस इसका लाभ नहीं ले सकी।” उन्होंने कहा, “कांग्रेस कि कलई खुल गई वे जिस आंदोलन को सहज और स्वाभाविक आंदोलन कह रहे थे, वह कांग्रेस की ओर से प्रायोजित और पोषित आंदोलन था।” सुधांशु ने इस दौरान कहा कि देश में जितने भी आंदोलन खड़े होते हैं और जो गैर राजनीतिक होने का दावा करते हैं, उन सभी का अंतिम लक्ष्य सत्ता हासिल करना होता है।
विधानसभा चुनाव में चढूनी को मिले 1,170 वोट
चढूनी हरियाणा के हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे और टिकट ना मिलने पर वह राज्य की पेहोवा सीट से संयुक्त संघर्ष पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे। हालांकि, चुनाव में चढूनी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और वह अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। चढूनी 1,170 वोटों के साथ पांचवें स्थान पर रहे। पेहोवा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार मनदीप चट्ठा ने 6,553 वोटों से जीत दर्ज की और उन्हें कुल 64,548 वोट मिले। वहीं, बीजेपी के जय भगवान शर्मा (डीडी) 57,995 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
किसान आंदोलन विपक्ष के लिए सत्ता की चाबी!
सितंबर 2020 में मोदी सरकार तीन कृषि कानून लाई थी जिसके करीब दो महीने बाद इन कानूनों के खिलाफ लाखों किसानों ने दिल्ली कूच किया और किसान दिल्ली की सीमा पर बैठ गए और इन्होंने MSP की लिखित गारंटी की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरु कर दिया। 26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों ने इन कानूनों के विरोध में ट्रैक्टर रैली निकाली जहां हिंसा भड़क गई।
हालांकि, करीब एक वर्ष बाद नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया। इसके बाद जाहिर सी बात है कि किसानों का आंदोलन रुक जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन होते रहे और किसान आंदोलन से जुड़े नेता राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी विरोधी प्रचार के लिए पहुंचते रहे।
किसान आंदोलन से जुड़े रहे सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने 2022 के यूपी के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में दावा किया कि यूपी में बीजेपी को हराने के लिए किसान आंदोलन ने नींव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन विपक्षी दलों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। यादव ने दावा किया कि उन्होंने और राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन के माध्यम से भाजपा को हराने के लिए एक अच्छा क्रिकेट मैदान बनाया था लेकिन विपक्ष ने अच्छी गेंदबाजी नहीं की थी।
तीनों कृषि कानूनों को 2022 के अंत में वापस लिया जा चुका था लेकिन उसकी आड़ में प्रदर्शन चलते रहे। 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब में बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन हुए और यहां तक भी रिपोर्ट्स आईं कि पंजाब में बीजेपी के उम्मीदवारों के घरों के बाहर बड़ी संख्या में किसानों को धरने पर बैठा दिया गया था।