बागेश्वर बाबा की यात्रा में राजनीति, सोशल मीडिया और धर्म का कॉकटेल: राजनीति का नया पॉवर सेंटर बनेगा बागेश्वर धाम?

जहाँ तक बागेश्वर धाम वाले बाबा की बात है, इसमें कोई शक नहीं है कि मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में उनको मानने वालों की संख्या करोड़ों में है। जहाँ भी उनकी कथा आयोजित होती है, वहाँ जगह छोटी पड़ जाती है - चाहे वो दिल्ली हो या बिहार।

पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री,

छतरपुर से ओरछा तक बागेश्वर धाम वाले बाबा पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की सनातन यात्रा

भारत की राजनीति में बाबाओं का भी एक अलग युग होता है। अस्सी-नब्बे के दशक में सत्ता के साथ 2 ऐसे बाबाओं का नाम जुड़ा, जिनके कारण विवाद भी ख़ूब हुए। इंदिरा गाँधी के बारे में कहा जाता था कि भारत की शक्तिशाली प्रधानमंत्री होने के बावजूद धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उन्हें ‘उठो इंदिरा, चलो’ कुछ इस तरह से संबोधित करते हुए बात करते थे। ठीक इसी तरह, चंद्रास्वामी के बारे में कहा जाता था कि PV नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री रहते हर बड़े फ़ैसले पर उनकी राय लेते थे। जहाँ बिहार के मधुबनी में जन्मे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी इंदिरा गाँधी के गुरु बन गए, वहीं हैदराबाद में पले-बढ़े धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बचपन से तंत्र साधना में लीन रहे।

इसी तरह, टीवी चैनलों के उभार के साथ बाबा रामदेव भी खूब लोकप्रिय हुए। सुबह 5 बजे उठ कर लोग टीवी के सामने बैठ कर योग किया करते थे, लोगों ने हार्पिक की जगह कोल्डड्रिंक से टॉयलेट साफ़ करना शुरू कर दिया था। इसी तरह गुजरात में आसाराम बापू और मोरारी बापू जैसे बाबाओं को हमने देखा। आसाराम फ़िलहाल जेल है, वहीं मोरारी बापू बीच में व्यास पीठ से ‘अली मौला’ गाने की वजह से विवादों में आए थे। तमिलनाडु के कोयंबटूर में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने ‘ईशा फाउंडेशन’ के बैनर तले भव्य आश्रम बनवाया है, जहाँ की आदियोगी की प्रतिमा लोकप्रिय है। इसी तरह, हर दौर में भारत में अलग-अलग बाबाओं का बोलबाला रहा।

भारत की राजनीति में धर्म का तड़का कोई नया नहीं है। भले ही सत्ता ने लंबे समय तक मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया और दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के इमाम के फतवे मतदान को लेकर जारी होते रहे, लेकिन इस बीच कुछ ऐसे साधु-संत भी रहे जो न केवल सत्ता के ऊपर हावी हुए बल्कि अपने प्रभाव और कनेक्शंस के बलबूते एक तरह से सरकार के सर्वेसर्वा बन बैठे। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और चंद्रास्वामी ऐसे ही उदाहरण हैं। संतों का राजनीति से जुड़ाव कोई नई बात नहीं है। फ़िलहाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर स्थित गोरक्षधाम के पीठाधीश्वर हैं।

बागेश्वर धाम वाले बाबा की यात्रा, राजनीति-सोशल मीडिया-धर्म का कॉकटेल

हम इस विषय पर चर्चा इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम के महंत पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री भी आजकल ‘सनातन पदयात्रा’ निकाल रहे हैं। इसमें न केवल देश भर के साधु-संतों का जमावड़ा लग रहा है, बल्कि बड़े-बड़े सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स, सेलेब्रिटी और नेता भी पहुँच रहे हैं। हमने अभिनेता संजय दत्त को उनके साथ देखा, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय को देखा, मिमिक्री आर्टिस्ट श्याम रंगीला को देखा और MP के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी देखा। यानी, इस यात्रा में राजनीति, सोशल मीडिया और धर्म का कॉकटेल बनता हुआ दिखाई दे रहा है। इसी तरह पहलवान खली से लेकर कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह जैसे नेता भी उनकी यात्रा का हिस्सा बने।

जहाँ तक बागेश्वर धाम वाले बाबा की बात है, इसमें कोई शक नहीं है कि मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में उनको मानने वालों की संख्या करोड़ों में है। जहाँ भी उनकी कथा आयोजित होती है, वहाँ जगह छोटी पड़ जाती है – चाहे वो दिल्ली हो या बिहार। उनके बारे में कहा जाता है कि वो लोगों को देख कर उनकी समस्या के बारे में जान लेते हैं और समाधान भी बताते हैं। हालाँकि, इस कारण तगड़ा विवाद भी हुआ था और एक तरह से मीडिया ने उन्हें अपने ट्रायल का केंद्र बना लिया था। पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री शुरू में तो इस मीडिया व सोशल मीडिया ट्रायल में फँसते दिखे, लेकिन बाद में उन्होंने एक के बाद एक इंटरव्यू देकर एक तरह से इस मीडिया ट्रायल को पास किया। ‘इंडिया टीवी’ पर रजत शर्मा की ‘आप की अदालत’ से लेकर ‘TV9 भारतवर्ष’ पर एक साथ 5 पत्रकारों द्वारा इंटरव्यू किए जाने तक, शनैः-शनैः बागेश्वर धाम वाले बाबा परिपक्व होते चले गए और उन्होंने हाजिरजवाबी से मीडिया के सवालों का जवाब देना सीख लिया। फ़िलहाल उनकी उम्र मात्र 27 वर्ष है, ऐसे में उम्र के हिसाब से उनकी उपलब्धियाँ चमत्कारी हैं।

देश-विदेश में भीड़ जुटाते रहे हैं पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री

देश में ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन के लेस्टर में भी उनकी कथा में ख़ूब भीड़ जुटी। देश-विदेशी में कई कार्यक्रम करने के बाद वो आखिरकार ‘सनातन हिन्दू एकता यात्रा’ पर निकले हुए हैं, जिसे ‘हिन्दू जोड़ो यात्रा’ भी कहा जा रहा है। वो जाति-पाति से ऊपर उठ कर हिन्दू पहचान को सुदृढ़ करने पर बल दे रहे हैं। जातिगत जनगणना की माँगों और आरक्षण खत्म किए जाने की अफवाहों की काट के लिए CM योगी आदित्यनाथ ने भी ‘बँटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया, जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के रूप में परिवर्तित किया। दोनों नारों को RSS के साथ-साथ भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी हाथोंहाथ लिया। यानी, भाजपा और संघ भी जातिवाद की काट के लिए हिन्दू पहचान को मजबूत किए जाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, बागेश्वर धाम वाले बाबा की यात्रा के प्रमुख उद्देश्य में से भी एक यही है।

वैसे, फ़िलहाल धर्मयात्राओं का मौसम सा चल रहा है। स्वमी दीपांकर पिछले 2 वर्षों से ‘भिक्षा यात्रा’ निकाल रहे हैं और वो भी लोगों को शपथ दिलाते चल रहे हैं कि वो जाति के आधार पर नहीं बँटेंगे। इसी तरह नवंबर 2024 में ही दिल्ली में कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने विशाल सनातन यात्रा का आयोजन किया, जिसमें वक्फ बोर्ड को खत्म किए जाने से लेकर सनातन बोर्ड की स्थापना जैसी माँगें रखी गईं। लेकिन, बागेश्वर धाम वाले बाबा की छतरपुर से यूपी के कुछ इलाक़ों से होते हुए ओरछा तक की यात्रा जितनी सुर्खियाँ बटोर रही हैं उतनी तवज्जो किसी को नहीं मिली। ओरछा में भगवान राम राजा के रूप में पूजे जाते हैं, हिन्दू धर्म में इसका अयोध्या से कम महत्व नहीं है। मध्य प्रदेश में बीच के डेढ़ साल को छोड़ दें तो पिछले 2 दशक से BJP ही सत्ता में है, दिसंबर 2023 में पार्टी को ताज़ा जीत मिली जिसके बाद मोहन यादव को CM बनाया गया।

राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए खुद को कर रहे हैं तैयार?

क्या पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री अपनी लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचने के बाद अब राजनीति में भी हस्तक्षेप करने के लिए ख़ुद को तैयार कर रहे हैं? हमने पंजाब-हरियाणा में राम रहीम के आश्रम से मतदान की एक रात पहले पर्चियाँ निकलती हुई देखी हैं, ऐसे में भारत की राजनीति में ये कोई बहुत आश्चर्यजनक बात भी नहीं है। कमलनाथ की कांग्रेस सरकार के दौरान इसी मध्य प्रदेश में विवादित कम्प्यूटर बाबा को मंत्री का दर्जा दिया गया था। पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को मानने वालों में अधिकतर गरीब और पिछड़े समाज के लोग हैं, उनमें भी महिलाओं की संख्या अधिक है। अनुयायियों का ये समूह वोट बैंक के रूप में कैसे तब्दील होगा, ये समय बताएगा।

बागेश्वर धाम वाले बाबा ने खुद को राजनेताओं से अछूता नहीं रखा है। तमाम नेता उनके धाम पर हाजिरी लगाते रहे हैं। अगस्त 2023 में विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीनों पहले कमलनाथ ने निजी विमान से उन्हें अपने गढ़ छिंदवाड़ा बुलाया था और उनसे कथा करवाई थी। उससे कुछ ही महीनों पहले अप्रैल में विदिशा में उनकी कथा हुई थी, जिसमें तत्कालीन CM शिवराज सिंह चौहान पहुँचे थे। शिवराज सिंह चौहान फ़िलहाल विदिशा से ही सांसद हैं। कांग्रेस और भाजपा, दोनों के गढ़ों में नेता-कार्यकर्ता पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के चरण पखारते मिले।

फ़िलहाल न तो मध्य प्रदेश में कोई चुनाव होना है और न ही केंद्र स्तर पर। हाँ, 2025 में बिहार-दिल्ली और 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। अब 3 चीजें हो सकती हैं। पहली, ये कि धीरेन्द्र शास्त्री 2028 और 2029 के लिए अभी से आधार तैयार कर रहे हों, ताकि उस समय तक अपनी ताक़त को वोटों को इधर-उधर करने में इस्तेमाल कर सकें। दूसरी, ये कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर वो अब बाकी राज्यों में भी ऐसी यात्राएँ निकालेंगे और उन राज्यों की राजनीति में भी उनका दखल होगा। तीसरा, ये हो सकता है कि वो सिर्फ सनातन धर्म को एक करने के लिए निकलें हों और तमाम सेलेब्रिटियों और नेताओं को जुटा कर धर्म के सहारे धाम की शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हों।

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