‘महाराष्ट्र के मुखिया’: राज्य के पहले मुस्लिम CM अंतुले की कहानी जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में छोड़ने पड़ा था पद

'महाराष्ट्र के मुखिया': राज्य के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री अंतुले की कहानी जिसे भ्रष्टाचार के आरोपों में छोड़ने पड़ा था पद

इंदिरा गांधी के साथ अंतुले

देश में आपतकाल लगाए जाने के चलते पूरे भारत में इंदिरा गांधी के खिलाफ गुस्से की लहर थी और इसी बीच कई बड़े-बड़े नेता इंदिरा से अलग हो गए थे। महाराष्ट्र में भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही थी और यशवंतराव चव्हाण व शरद पवार जैसे कई प्रमुख नेता इंदिरा गांधी से अलग हो गए थे। उस दौर में भी महाराष्ट्र के कई नेता इंदिरा गांधी के साथ बने रहे और इन्हीं में से एक थे बैरिस्टर अब्दुल रहमान अंतुले। जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में लौटीं और फरवरी 1980 में शरद पवार के नेतृत्व वाली पुलोद सरकार को बर्खास्त कर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 1980 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस (आई) पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी और इंदिरा गांधी के वफादार अंतुले ने 9 जून 1980 को राज्य के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री के तौर पर पद की शपथ ली।

इंदिरा गांधी से वफादारी का मिला इनाम

अंतुले का जन्म 9 फरवरी 1929 को रायगड जिले के आंबेट गांव में कोंकणी मुस्लिम परिवार में हुआ था। अंतुले ने 1945 में छात्र जीवन में ही सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था और उन्होंने लंदन से बैरिस्टर-एट-लॉ किया था। अब्दुल रहमान अंतुले को लोगों के बीच बैरिस्टर अंतुले के नाम से जाना जाता था। अंतुले 1962 से 1976 तक रागयड जिले से महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान वे राज्य सरकार में कई विभागों में मंत्री भी रहे। 1976 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुन लिया गया। बताया जाता है कि संजय गांधी भी अंतुले को बहुत पसंद करते थे और साथ ही वे इंदिरा गांधी के भी वफादार थे। इसका फायदा अंतुले को 1980 में मिला और वे राज्य के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री चुन लिए गए।

मुख्यमंत्री के तौर पर अंतुले के खास फैसले

अंतुले के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के कुछ ही दिनों बाद संजय गांधी का निधन हो गया और उनकी याद में संजय गांधी निराधार योजना शुरू की गई। इस योजना के तहत निराश्रितों को पेंशन दी जाती थी और वर्तमान में यह योजना कई राज्यों में लागू है। अंतुले ने राज्य में स्वतंत्रता सेनानियों के सैकड़ों स्मारक बनाए और उनके लिए कई कार्यक्रम भी लागू किए। उन्होंने मुख्यमंत्री जनता दरबार की शुरुआत की और पुलिस के काम के लिए घंटों को भी नियमित किया।

रायगड का पुराना नाम कोलाबा था और उन्होंने अपने शासन में इसका नाम बदलकर रायगड किया था। कहा जाता है कि उनके शासनकाल का सबसे बड़ा निर्णय किसानों की कर्जमाफी का था। उस समय तक इस तरह के फैसले नहीं लिए जाते थे और इस फैसले को लागू करने को लेकर वे आरबीआई से भिड़ गए थे। उनके इस फैसले पर आरबीआई ने आपत्ति जताई थी। इस पर अंतुले ने कहा था कि किसानों की कर्जमाफी के लिए आवश्यक धनराशि मुख्यमंत्री कोष से दी जाएगी।

भ्रष्टाचार के आरोपों पर CM पद से देना पड़ा इस्तीफा

अगस्त 1981 में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने कथित सीमेंट घोटाले का खुलासा किया था। अंतुले पर आरोप था कि उन्होंने सीमेंट के कोटा के बदले बिल्डरों से उनके द्वारा बनाए गए इंदिरा गांधी ट्रस्ट में चेक के जरिए गलत तरीके से भुगतान कराया था। आरोपों के कुछ समय बाद संसद का सत्र था और इस पर संसद में जोरदार बहस हुई और अंतुले को जनवरी 1982 में पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि, अंतुले ने इसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इस मामले में अंत में अंतुले को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था। अंतुले ने इस मामले में अपनी जीत को लेकर कहा था, “मैंने कुछ भी गलत नहीं किया था। मुझे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने निशाना बनाया लेकिन वे सफल नहीं हो सके।”

करकरे पर अंतुले के दावे को लेकर विवाद

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद के बाद अंतुले ने तत्कालीन एटीएस चीफ हेमंत करकरे की मृत्यु को लेकर विवादित दावा किया था। अंतुले ने कहा था कि करकरे की हत्या की जांच की जाना चाहिए। अंतुले ने 2006 के मालेगांव ब्लास्ट की जांच को लेकर कथित तौर पर हिंदू कट्टरपंथियों पर करकरे की हत्या का आरोप लगाया था। इस मामले में कांग्रेस की जमकर आलोचना हुई और कांग्रेस ने उनके बयान से दूरी बना ली थी। बाद में अंतुले ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने यह नहीं कहा था कि करकरे को किसने मारा है लेकिन उनका मानना था कि हो सकता है कि करकरे को गलत दिशा में भेजा गया हो।

यूपीए-I के शासन काल के दौरान 2006 में जब अलग से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का गठन किया गया तो अंतुले को इसका पहला मंत्री बनाया गया था। 2009 में वे लोकसभा का चुनाव हार गए और 2014 में उन्हें कांग्रेस द्वारा फिर से टिकट नहीं दिया गया था। अंतुले की 2 दिसंबर 2014 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में इलाज के दौरान किडनी से जुड़ी बीमारी के चलते मृत्यु हो गई थी।

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