महाराष्ट्र के दूसरे मुख्यमंत्री मारोतराव कन्नमवार का 24 नवंबर 1963 को पद पर रहते हुए निधन हो गया और उसके बाद परशुराम कृष्णजी सावंत को कुछ दिनों के लिए राज्य का अंतरिम मुख्यमंत्री बनाया गया। 5 दिसंबर 1963 को वसंतराव नाईक ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और वे लगातार 11 वर्षों से अधिक समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे जो आज भी एक रिकॉर्ड है। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा किसानों की भलाई और ग्रामीण विकास के प्रति समर्पित कर दिया था।
स्कूली शिक्षा के लिए गांव-गांव भटके वसंतराव
नाईक का जन्म 1 जुलाई 1913 को यवतमाल जिले के गहुली गांव में बंजारा समुदाय के एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम फुलसिंह नाईक और माता हुनकीबाई था। बंजारा समाज के घुमंतू जीवन में ठहराव लाने के लिए वसंतराव के दादा चतुरसिंह नाईक और उनके परिवार ने गहुली गांव की स्थापना की थी। वसंतराव के जन्म के समय समुदाय में पारंपरिक रिवाजों के चलते शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ था।
हालांकि, उनके पिता ने शिक्षा के महत्व को समझा और वसंतराव को पढ़ाई के लिए पड़ोस के एक गांव में भेजना शुरु कर दिया। उनके लिए पड़ोस से शिक्षा लेना भी आसान नहीं रहा और उन्हें लागातार स्कूल बदलने पड़े थे। डॉ दिनेश ने अपनी किताब ‘वसंतराव नाईक: राजनीति के अग्रदूत और कृषि-औद्योगिक क्रांति के प्रणेता’ में लिखा है, “वसंतराव की पहली कक्षा की पढ़ाई ‘पोहरा देवी’ गांव से शुरू हुई, दूसरी कक्षा की पढ़ाई के लिए वे ‘उमरी’ गांव पहुंचे और तीसरी, चौथी व पांचवीं कक्षा की पढ़ाई क्रमश: ‘बांशी’, ‘भोजला’ व ‘विठोली’ गांव से पूरी की।”
बंजारा समुदाय के ‘पहले वकील’
वसंतराव ने 1933 में नागपुर के निलसिटी स्कूल से मैट्रिक और 1937 में नागपुर के ही मॉरिस कॉलेज से बी.ए. पूरी की। आज मॉरिस कॉलेज को वसंतराव नाईक सामाजिक संस्थान के नाम से जाना जाता है। इसके बाद उन्होंने एम.ए. में दाखिला लिया लेकिन उसे बीच में ही छोड़कर वकील बनने के लिए एल.एल.बी की पढ़ाई करना शुरू कर दिया। उन्होंने 1940 में कानून की डिग्री के साथ स्रातक की उपाधि प्राप्त की और वे तत्कालीन मध्य प्रदेश (यवतमाल 1956 तक मध्य प्रदेश का हिस्सा था) में बंजारा समुदाय के पहले वकील बन गए थे।
राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में शुरु से ही रुचि रखने वाले वसंतराव ने 1941 में अमरावती में वकालत शुरू कर दी। उन्होंने बंजारा समुदाय की प्रगति के लिए कई कदम उठाए, उनके समुदाय में फैल रही नशे की लत को रोका और कई अवैध प्रथाओं को खत्म किया। इसके बाद मुंबई में अगस्त 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरित होकर पुसद क्षेत्र के 12 गांवों में अलग-अलग विकास योजनाएं लागू कीं। उन्होंने बंजारा समुदाय में शिक्षा के प्रचार के उद्देश्य से ‘आवासीय आश्रम स्कूल’ की अवधारणा को लागू किया और आश्रम स्कूल की स्थापना की। उन्होंने बहुत कम समय में सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कई उल्लेखनीय कार्य किए और समाज पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। इन सब कार्यों के दौरान वे ना सिर्फ यवतमाल बल्कि धीरे-धीरे पूरे राज्य में एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाने लगे थे।
अंतरजातीय विवाह और समाज से निष्कासन
वसंतराव का अकोला जिले के ब्राह्मण समुदाय के मधुबाई और गंगाधरराव तात्यासाहेब घाटे की बेटी वत्सलबाई के साथ अंतरजातीय विवाह हुआ था। नागपुर के मॉरिस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वसंतराव और वत्सलबाई की मुलाकात हुई थी और वहीं दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब आ गए थे। जुलाई 1917 को जन्मीं वत्सलबाई और घुमंतू बंजारा समुदाय के वसंतराव को सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि वे समुदाय में असमानता, जातिवाद और विवाह प्रतिबंधों की प्रथा के खिलाफ गए थे।
समाज के विरोध के बावजूद वत्सलाबाई की मां ने उन्हें शादी करने की अनुमति दी और 6 जुलाई 1941 को यवतमाल में उनकी शादी हुई। डॉ. दिनेश ने लिखा है, “उनकी शादी का उद्देश्य जातिगत भेदभाव को मिटाना और समाज में सांप्रदायिक सद्भाव बनाना था लेकिन वसंतराव नाईक के बंजारा समुदाय को यह विवाह स्वीकार्य नहीं था। अंतरजातीय विवाह के कारण कुछ दिनों के लिए दोनों को बंजारा समुदाय ने निष्कासित कर दिया गया था।”
सबसे लंबे समय तक महाराष्ट्र के CM रहे वसंतराव
जीवन के शुरुआती दिनों से ही सामाजिक कार्यों में लगे रहे वसंतराव 1946 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वे पुसाद कृषिमंडल और हरिजन छात्रावास एवं राष्ट्रीय छात्रावास के अध्यक्ष भी रहे। 1952 के चुनावों में वे मध्य प्रदेश की पुसद सीट से विधानसभा के लिए चुने गए। वे मध्य प्रदेश में उप-मंत्री भी रहे थे। 1957 में बॉम्बे राज्य और 1962, 1967 और 1972 में महाराष्ट्र राज्य में वे इसी सीट से विधानसभा के लिए लगातार निर्वाचित होते रहे। 5 दिसंबर 1963 को पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले वह महाराष्ट्र में कई मंत्रालयों में मंत्री रह चुके थे।
उन्होंने मार्च 1967 में दूसरी बार और मार्च 1972 में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे और 11 वर्ष से अधिक समय तक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। उनका सबसे लंबे समय तक महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड आज भी कायम है। फरवरी 1975 में शंकरराव चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और उसके बाद वसंतराव ने खुद को पूरी तरह से सामाजिक कार्यों और किसान कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। मार्च 1977 में हुए आम चुनाव में वह वाशिम सीट से लोकसभा के लिए चुने गए। 18 अगस्त 1979 को सिंगापुर में वसंतराव का निधन हो गया था।
शिवसेना को कहा गया था ‘वसंत सेना’
महाराष्ट्र में उद्योग बढ़ने क साथ ही मिलों में हड़तालें भी बढ़ने लगी थी और ‘मुंबई बंद’ के आह्वान भी बढ़ रहे थे। मजदूरों की एकता के चलते वामपंथी पार्टियों की ताकत बढ़ रही थी जिसके चलते जॉर्ज फर्नांडिस की ताकत में भी इजाफा हो रहा था और इसे कांग्रेस घबराई हुई थी। बाला साहेब ठाकरे ने 1966 में मुंबई में शिव सेना की स्थापना की और उस समय यह आरोप लगाया गया था कि कांग्रेस भी शिवसेना को बढ़ावा दे रही है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकार सुजाता आनंदन कहती हैं, “उस समय शिवसेना को मजाक में ‘वसंत सेना’ कहा जाता था। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक से निकटता के कारण शिवसेना को यह उप-नाम मिला था।”
कृषि दिवस के रूप में मनाया जाता है उनका जन्मदिन
वसंतराव ने महाराष्ट्र में कृषि के क्षेत्र में जो कार्य किए उनके चलते उन्हें राज्य में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। उन्हें राज्य में 4 कृषि विश्वविद्यालय बनवाए, कृषि ऋण और सिंचाई से जुड़ी परियोजनाएं शुरू कीं। माना जाता है कि ‘कसेल त्याची जमीन’ यानि ‘जो खेती करता है जमीन उसकी है’ विचार भी वसंतराव का ही दिया हुआ है।
वे किसान के कल्याण के प्रति किस कदर समर्पित थे इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि अक्टूबर 1965 में पुणे के शनिवारवाडा में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, इस मौके पर भारत के रक्षा मंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण भी मौजूद थे और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक ने जनसमूह के सामने एक घोषणा करते हुए कहा, “अगर महाराष्ट्र दो साल में खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हुआ तो मुझे शनिवारवाड के सामने फांसी पर लटका देना।” वे लगातार किसान सेवा के काम में जुटे रहे और उनके शासन में महाराष्ट्र में उद्योगों का भी जाल फैल गया था। महाराष्ट्र में हर साल वसंतराव के जन्मदिन (1 जुलाई) को उनकी याद में कृषि दिवस के रूप में मनाया जाता है।