“मैं समन्दर हूं, लौटकर वापस आऊंगा…” ये शब्द हैं महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के, साल 2019 में जब सरकार बनाने के महज 80 घंटे के भीतर उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था, तभी उन्होंने अपनी जल्द वापसी का ऐलान कर दिया था।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Election Result) में महायुति गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इस जीत में महायुति को 235 सीटें मिलीं। वहीं, 132 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई भाजपा की जीत के यूं तो कई फैक्टर हैं। लेकिन राज्य की राजनीति में भाजपा का मुख्य चेहरा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे। अब एक बार फिर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। देवेंद्र फडणवीस के राजनीति में आने और सफल होने के पीछे उनके पिता गंगाधर फडणवीस (Gangadhar Fadnavis) का हाथ माना जाता है।
दरअसल, देवेंद्र फडणवीस के पिता गंगाधर फडणवीस लंबे समय तक महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय थे। शुरुआती शिक्षा के दौरान ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संपर्क में आ गए थे। इसके जरिए उन्हें सामाजिक तौर पर लोगों से मिलने-जुलने और संपर्क स्थापित करने में मदद मिली। शुरुआती पढ़ाई के बाद गंगाधर फडणवीस आगे की पढ़ाई के लिए पुणे चले गए थे। इस दौरान भी वह संघ से जुड़े रहे। इस दौरान कॉलेज में मृदुभाषी होने के साथ ही तेज तर्रार वक्ता के रूप में गंगाधर फडणवीस की छवि सबके सामने आ चुकी थी। मन में संघ के प्रभाव के साथ ही देश की तात्कालिक परिस्थतियों ने गंगाधर फडणवीस को जनसंघ की ओर मोड़ दिया।
फिर क्या था, जनता की समस्याओं को लेकर गंगाधर फडणवीस लगातार मुखर होते जा रहे थे। लगभग सरकार विरोधी आंदोलनों में गंगाधर फडणवीस जरूर शामिल होते थे। ऐसे में जनता की आवाज उठाने के चलते ही साल 1960 में उन्हें महाराष्ट्र विधान परिषद का सदस्य भी निर्वाचित किया गया था। गंगाधर फडणवीस साल 1982 तक इस पद पर रहे। इस दौरान वह सरकार के खिलाफ हर मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब अपनी तानाशाही दिखाते हुए देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया था, तब भी गंगाधर फडणवीस (Gangadharrao Fadnavis) सरकार के खिलाफ मुखर होकर खड़े हुए थे। इसके चलते उन्हें जेल में डाल दिया गया था।
आपातकाल के दौरान पिता को जेल में डालने को लेकर देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, “मैं आपातकाल का विरोध करता हूं जिस दौरान मेरे पिता और जनसंघ नेता गंगाधर फडणवीस और मेरी बुआ को 19 महीने जेल में गुजारने पड़े, पूरा राष्ट्र इससे बेहद पीड़ित था। मैं इंदिरा गांधी की विचारधारा का पूरी तरह समर्थन नहीं करता।”
आपातकाल समाप्त होने और जेल से बाहर आने के बाद गंगाधर फडणवीस महाराष्ट्र की राजनीति में और भी बड़ा नाम हो गए थे। गंगाधर फडणवीस मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए लगातार प्रयास रत रहे और राज्य सरकार से इन क्षेत्रों के लिए अधिक ध्यान देने की अपील की। इसके अलावा, वे कृषि सुधार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी सक्रिय थे।
गंगाधर फडणवीस के जीवन को देखें तो उन्होंने नागपुर और आसपास के क्षेत्र में जनसंघ के विचार को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। संगठन में नए लोगों को लाकर जनसंघ की जड़ों को लगातार सिंचित करते रहे। गंगाधर फडणवीस जितना अधिक राजनीतिक व्यक्ति थे, उससे कहीं अधिक उनका जुड़ाव सामाजिक तौर पर हर वर्ग से था। सीधे शब्दों में कहें तो समाज के हर वर्ग में उनका प्रभाव था। वह हमेशा ही गरीब, पिछड़ों और वंचित वर्ग की बात करते थे। गंगाधर फडणवीस से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह भी है कि वह राजनीतिक तौर पर कांग्रेस की विचारधारा के विरोधी थे। लेकिन कांग्रेसियों से उनका व्यक्तिगत टकराव न के बराबर था। इसके चलते, कांग्रेस समेत अन्य दलों के नेता भी उनकी तारीफ करते थे।
अब आज देवेंद्र फडणवीस अपने पिता की राह में चल रहे हैं। गंगाधर फडणवीस के राजनीतिक जीवन में संघ का प्रभाव था, ठीक वैसा ही प्रभाव उनके बेटे देवेंद्र में दिखाई देता है। जिस प्रकार गंगाधर फडणवीस हर वर्ग में लोकप्रिय थे, देवेंद्र भी वैसे ही लोगों को प्रभावित करने में सक्षम रहे हैं। जिस तरह उनके पिता ने नागपूर में जनसंघ और उसके संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई, ठीक वैसे ही देवेंद्र फडणवीस पूरे महाराष्ट्र में भाजपा और उसके संगठन को हर स्तर पर मजबूत करने में जुटे हुए हैं। देवेंद्र फडणवीस की कार्य कुशलता और शैली को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो महाराष्ट्र विधान परिषद का सदस्य रहते हुए उनके पिता जो कार्य अधूरे छोड़ गए थे, उन सभी कार्यों और देश के प्रति पिता की उम्मीदों को देवेंद्र फडणवीस पूरा करने में जुटे हुए हैं। बेशक अब महाराष्ट्र की राजनीति में कोई भी फेरबदल होता रहे लेकिन यह तो साफ है कि कम से कम अगले दो दशक तक सूबे की राजनीति में देवेंद्र फडणवीस का नाम गूंजता रहेगा।
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