‘महाराष्ट्र के मुखिया’: कुर्सी के लिए पिता की विचारधारा को भूले उद्धव ठाकरे, कभी फोटोग्राफी का था शौक

शुरुआती दौर में उद्धव राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते थे उनका झुकाव फोटोग्राफी की ओर था और वे फोटोग्राफर बनना चाहते थे

अपने पिता बालासाहेब ठाकरे के साथ उद्धव ठाकरे

अपने पिता बालासाहेब ठाकरे के साथ उद्धव ठाकरे

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना-बीजेपी के गठबंधन ने जीत हासिल की। इसके बाद ‘कभी मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा ना रखने वाले’ शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए 50-50 फॉर्मूले की बात कही जिस बीजेपी ने खारिज कर दिया। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा और कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास आघाडी सरकार बनाई। यह बदलाव उनके हिंदुत्व की पुरानी छवि से कुछ अलग था लेकिन तब उद्धव ठाकरे ने इसे महाराष्ट्र के विकास और लोगों के भले के लिए जरूरी कदम बताया था। ‘महाराष्ट्र के मुखिया’ में आज कहानी उस नेता की जो अपनी विचारधारा के साथ कभी नहीं समझौता करने का दावा करता था लेकिन सिर्फ मुख्यमंत्री पद के लिए अपना रास्ता बदल लिया। आज कहानी उद्धव ठाकरे की…

फोटोग्राफर बनने चाहते थे उद्धव

शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे का जन्म 27 जुलाई 1960 को मुंबई में हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा मुंबई के एक नामी स्कूल से हुई और उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से स्नातक किया। उद्धव का पालन पोषण एक राजनीतिक माहौल में हुआ था इसलिए उनका जीवन शुरू से ही राजनीति और समाज सेवा से जुड़ा रहा। हालांकि, शुरुआत में वे राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते थे उनका झुकाव फोटोग्राफी की ओर था और वे फोटोग्राफर बनना चाहते थे। उद्धव ने अपनी तस्वीरों की प्रदर्शनी भी लगाई और ‘महाराष्ट्र देशा’ नाम से प्रकाशित अपनी पुस्तक में महाराष्ट्र की भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सुंदरता को चित्रित किया था। उन्होंने अपनी फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से धन जुटाया और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में किसानों और वन्यजीव संरक्षण में मदद की।

फोटोग्राफी के शौकीन उद्धव ठाकरे

 

 

 

 

 

 

 

 

बालासाहेब के उत्तराधिकारी और राज ठाकरे से विवाद

महाराष्ट्र में सियासत का एक दौर ऐसे भी था जब बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके भतीजे राज ठाकरे को देखा जाता था। राज ठाकरे न केवल बालासाहेब की तरह दिखते थे बल्कि वे बालासाहेब की तरह आक्रामक भी थे, उनके भाषण देने की शैली भी बालासाहेब की तरह ही थी। जनवरी 2003 में महाबलेश्वर में शिवसेना का अधिवेशन चल रहा था और उसमें उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।

राज ठाकरे इससे दौरान कई तरह के विवादों से जूझ रहे थे। इसके बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच दूरियां बढ़ती गईं। दोनों के बीच कई मुद्दों पर विवाद भी हुआ। कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी पर उद्धव ठाकरे का दबदबा बढ़ता गया और राज ठाकरे खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे। इसके बाद 2005 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए और कुछ समय बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से एक नई पार्टी बना ली।

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ बालासाहेब ठाकरे

ठाकरे परिवार के पहले CM बने उद्धव

2019 में बीजेपी के साथ विवाद के बाद उद्धव ठाकरे, कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। इससे पहले शिवसेना के नेता राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे लेकिन ठाकरे परिवार का कोई व्यक्ति इस पद पर नहीं रहा था। बालासाहेब ठाकरे हमेशा किंगमेकर की ही भूमिका में रहे थे लेकिन कभी मुख्यमंत्री के पद पर नहीं रहे थे। उद्धव पर आरोप लगे कि उन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी को धोखा दे दिया है। ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें पार्टी के भीतर विचारधारा के आधार पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा उन्हें कोविड 19 महामारी और सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या मामले को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

शिवसेना में बगावत और उद्धव का इस्तीफा

बीतते समय के साथ शिवसेना में आंतरिक विरोध बढ़ता दिया। शिवसेना ना केवल अपने वैचारिक मंच से हट गई थी बल्कि उसके नेता दावा कर रहे थे कि एनसीपी और कांग्रेस के मंत्री उनके काम नहीं कर रहे थे। इस आंतरिक विद्रोह के परिणामस्वरूप शिवसेना में मौजूदा मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बड़ी बगावत हुई और पार्टी दो धड़ों में बंट गई। जून 2022 में शिंदे कई विधायकों को लेकर रातोंरात गुजरात के सूरत पहुंच गए और उन्होंने निर्दलीय विधायकों संग 50 विधायकों के समर्थन का दावा किया था।

तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ठाकरे को 30 जून को विश्वास मत हासिल करने को कहा लेकिन उन्होंने पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। एकनाथ शिंदे बीजेपी के समर्थन से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद दोनों धड़ों के बीच असली शिवसेना कौन की लड़ाई हुई और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में शिंदे गुट को असली शिवसेना माना और उनके नेतृत्व वाले धड़े को शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न दिया गया। वहीं, उद्धव ठाकरे को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम मिला। 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे का गुट कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है और शिंदे का गुट उन्हें कड़ी चुनौती दे रहा है।

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