एक NGO है ‘कॉल फॉर जस्टिस’ (CFJ) नाम की, जिसने ‘जामिया मिल्लिया इस्लामिया’ (JMI) विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिम छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव की जाँच कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी बनाई थी। उक्त कमिटी ने अब 64 पन्नों की रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। ये यूनिवर्सिटी राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली स्थित ओखला के गफ्फार मंजिल कॉलोनी में स्थित है। रामनिवास नाम के एक दलित कर्मचारी के साथ भेदभाव के कारण अगस्त 2024 में दलितों, खासकर वाल्मीकि समाज के लोगों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन भी किया था। JMI में इस तरह के भेदभाव को लेकर CFJ के पास लगातार शिकायतें आ रही थीं। इसके बाद NGO ने एक समिति गठित की।
इस 6 सदस्यीय समिति की अध्यक्षता दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज शिवनारायण ढींगरा कर रहे थे, वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के ही अधिवक्ता राजीव कुमार तिवारी समिति के सेक्रेटरी थे। दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव IAS नरेंदर कुमार, दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर SN श्रीवास्तव, DU स्थित करोड़ीमल कॉलेज के एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नदीम अहमद और दिल्ली हाईकोर्ट की एक अन्य वकील पूर्णिमा इसमें शामिल थीं। 27 लोगों ने कमिटी के समक्ष अपने अनुभव रखे, जिनमें 7 शिक्षक थे, 6 गैर-शिक्षण कर्मचारी थे और 7 पूर्व छात्र। बाकी मौजूदा PhD स्कॉलर थे। इन्होंने कहा कि अगर इनके नाम सामने आ गए तो न केवल JMI प्रशासन बल्कि यहाँ के मुस्लिम छात्रों के हाथों भी उन्हें और अधिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ेगा।
क्लर्क ने एप्लिकेशन को नहीं बढ़ाया आगे
डर का आलम ये है कि कुछ ने तो अपनी जान को भी खतरा बताया। इन सभी ने एक सुर में कहा कि गैर-मुस्लिमों के साथ यूनिवर्सिटी में भेदभाव होता है। एक महिला सहायक प्रोफेसर ने बताया कि मुस्लिम कर्मचारी उन पर तंज कसते थे, उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे और भेदभाव करते थे। उन्हें स्टडी लीव भी नहीं दी गई। जब उन्होंने अपनी थीसिस सबमिट की तो क्लर्क ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें कुछ नहीं आता है, वो जीवन में कुछ नहीं कर पाएँगी। वो क्लर्क, जो उस थीसिस का टाइटल तक ठीक से नहीं पढ़ पा रहा था। जब वो एसिस्टेंट प्रोफेसर बनने की पात्र हो गईं और उन्होंने सेलेक्शन कमिटी के पास एप्लिकेशन डाला तो क्लर्क ने उनके एप्लिकेशन को आगे बढ़ाने से इनकार करते हुए उनका अपमान किया। रजिस्ट्रार नाज़िम हुसैन ज़ाफ़री ने शिकायत के बावजूद उक्त क्लर्क के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
पीड़िता अपने पति से अलग रह रही थीं, ऐसे में उन्हें मुस्लिम कर्मचारियों की तरफ से इस्लाम में धर्मांतरित होने का लालच दिया जाने लगा और इस मजहब को महिलाओं के लिए सुरक्षित बताया जाने लगा। हिन्दू धर्म और इसकी परंपराओं की आलोचना की गई। जब वो धर्मांतरित नहीं हुईं तो उनका प्रमोशन रोक दिया गया। उलटा उनके जूनियरों को प्रमोशन देकर उनका सीनियर बना दिया। UGC केयर लिस्ट में जिनका एक पेपर भी पब्लिश नहीं हुआ था, पात्र न होने के बावजूद पीड़िता के ऊपर तरजीह देकर उनका प्रमोशन कर दिया गया। उन्होंने बताया कि जामिया में उन जैसी महिलाओं से ये उम्मीद की जाती है कि वो किसी मुस्लिम प्रोफेसर की बेगम बन जाएँ। उन्होंने कुछ वरिष्ठ मुस्लिम प्रोफेसरों से मदद की गुहार भी लगाई, लेकिन वहाँ भी उनसे धर्मांतरण के लिए कहा गया।
उन्होंने बताया कि गैर-मुस्लिमों को इसी तरह प्रताड़ित किया जाता है और उनका विकास रोक दिया जाता है। NGO ने जिन 27 पीड़ितों के अनुभव प्रकाशित किए हैं, वो सब हम आपके समक्ष लेकर आएँगे। इस सीरीज में ये पहली शिक्षिका के अनुभव हैं, जो JMI के बारे में बहुत कुछ बता देते हैं। अगले लेख में हम आपको एक अन्य शिक्षक के साथ हुई ज्यादती के बारे में बताएँगे।