केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कुछ दिनों पहले त्रिपुरा के अगरतला में पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) की बैठक में शामिल हुए थे। यह परिषद पूर्वोत्तर के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए नोडल एजेंसी है। इस दो दिवसीय हाई प्रोफाइल सम्मेलन में पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। शाह के इस बैठक से लौटने के कुछ ही समय बाद केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के 2 राज्यों समेत 5 राज्यों में राज्यपाल बदल दिए हैं। इनमें सबसे अधिक चर्चा मणिपुर और मिज़ोरम के राज्यपाल बदले जाने को लेकर है। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को लंबे समय से अशांत मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया है जबकि पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह को मिज़ोरम का राज्यपाल बनाया गया है। गैर राजनीतिक लोगों को राज्यपाल बनाए जाने का इतिहास लंबा रहा है लेकिन जब मणिपुर लंबे समय से हिंसा की चपेट में है और बांग्लादेश-म्यांमार में हालात गंभीर हैं तो सैन्य व प्रशासनिक अनुभव से दक्ष लोगों को पूर्वोत्तर में भेजे जाने के कई निहितार्थ हैं।
अशांत मणिपुर में शाह के पसंदीदा ‘अफसर’
मणिपुर में मई 2023 में जो जातीय हिंसा शुरू हुई थी वो अभी तक जारी है। इस हिंसा में 200 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबर है और हजारों लोग जख्मी हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि मणिपुर में हज़ारों लोग अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। ऐसे में जब स्थितियां पूरी तिथि से माकूल नहीं हैं और विपक्ष द्वारा लगातार मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग की जा रही है तो भल्ला की नियुक्ति अहम हो जाती है। भल्ला ना केवल पूर्व गृह सचिव रहे हैं बल्कि सेवा के दौरान केंद्र सरकार ने उन्हें 4 बार सेवा विस्तार भी दिया था। भल्ला को लंबा प्रशासनिक अनुभव है और वे पिछले 52 साल में ऐसे दूसरे गृह सचिव थे जिन्होंने 5 वर्ष या इससे अधिक समय इस पद पर बिताया हो।
खास बात यह भी है कि मणिपुर हिंसा पर काबू पाने के लिए सरकार ने जो शांति प्रक्रिया तैयार की उसमें भल्ला की भूमिका बेहद अहम थी, उस समय भल्ला ही गृह सचिव थे। अजय भल्ला को गृह मंत्री शाह का करीबी अफसर माना जाता है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के करीब एक हफ्ते बाद उन्हें गृह सचिव बनाया गया था। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर 2019 में हुए दंगों के दौरान शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, असम-मेघालय कैडर से होने के चलते पूर्वोत्तर के बारे में अजय भल्ला की समझ बहुत अच्छी है। एक नौकरशाह का कहना है, “कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की तरह उनमें अहंकार नहीं है। वे कभी भी यह नहीं कहते कि ‘मैं बेहतर जानता हूं’। उन्हें पता है कि अगर मंत्री ने कोई निर्णय लिया है, तो उसे लागू किया जाना चाहिए। वे बहुत मेहनती भी हैं। दिन के अंत में आपको शायद ही कभी उनकी टेबल पर कोई लंबित फाइल मिलेगी।”
हालांकि, दैनंदिन प्रशासनिक कार्यों और कानून-व्यवस्था के मामलों में राज्यपाल का हस्तक्षेप नहीं रहता है लेकिन भल्ला जैसे अधिकारी का होना राज्य में शांति स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। मणिपुर में केंद्र सरकार अजय भल्ला के प्रशासनिक अनुभव के ज़रिए मणिपुर के बेकाबू हालातों को और तेज़ी से संभालना चाहती है।
बांग्लादेश से सटे मिज़ोरम में मोदी के ‘जनरल’
केंद्र सरकार ने डॉ. हरि बाबू कंभमपति की जगह पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह को मिज़ोरम का नया राज्यपाल नियुक्त किया है। वे इससे पहले केंद्र की सरकार में विदेश मंत्रालय में राज्यमंत्री समेत अन्य मंत्रालय में मंत्री भी रह चुके हैं और लंबे सैन्य अनुभव के साथ-साथ उन्हें प्रशासनिक अनुभव भी है। बांग्लादेश में तख्तापल्ट के बाद हालात बेकाबू हो गए हैं और बड़ी संख्या में लोग देश छोड़ने को मजबूर नज़र आ रहे हैं। बांग्लादेश के साथ मिज़ोरम की 318 किलोमीटर लंबी सीमा है और ऐसे में सैन्य और प्रशासनिक अनुभव वाले वी.के. सिंह की नियुक्ति अहम हो जाती है।
मिज़ोरम की सीमा बांग्लादेश के साथ-साथ म्यांमार से भी लगती है। म्यांमार में भी गृह युद्ध जैसे हालात हैं और वहां भी शरणार्थियों का बड़ा संकट है। साथ ही, म्यांमार के विद्रोही गुटों से जुड़े लोग भी अब वापस लौटने लगे हैं और उनके मिज़ोरम में घुसने का खतरा भी बना हुआ है। सीमा पर स्थिति के नियंत्रण के लिए वी.के. सिंह का अनुभव सुरक्षाबलों के भी बड़े काम आ सकता है।
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री पीयू लालदुहोमा ने कुछ हफ्तों पहले अमेरिका में एक भाषण देते हुए ‘चिन-कुकी-जो की एकजुटता और एक देश’ का आह्वान किया था। चिन-कुकी-जो भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में रहने वाली ईसाई जनजातियां हैं और सीएम के इस भाषण के बाद अलगाव के एक नए एजेंडे को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा अधिकारियों में शामिल रहे वीके सिंह को मिज़ोरम भेजे जाने के पीछे का मकसद स्थिरता को बढ़ावा देना और उनके अनुभव के ज़रिए अलगाव की स्थितियां ना आने देना है।