यह सप्ताह, वर्ष का अंतिम सप्ताह है। नए साल की दहलीज़ पर खड़े इस सप्ताह का इंतज़ार सबको ही रहता है, क्योंकि पहले क्रिसमस का त्योहार आता है और फिर नए वर्ष का जश्न मनाया जाता है। लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर की इन तारीखों के जश्न में डूबे हम हिंदुस्तानी भूल गए हैं कि दिसंबर का ये आखिरी सप्ताह हिंदुस्तान के समृद्ध इतिहास और साहिबजादों जोरावर सिंह व फतेह सिंह के धर्म रक्षा के लिए बलिदान होने जाने की अमर कथा है। नए वर्ष के ख़ुमार में डूबे भारतीयों को क्या 21 दिसम्बर से लेकर 27 दिसम्बर तक का इतिहास याद है, यानी वो सप्ताह जब गुरु गोविंद सिंह का पूरा परिवार शहीद हो गया था।
चमकौर गढ़ी की लड़ाई और वीर साहिबजादों का धर्म रक्षा के लिए बलिदान
वर्ष 1705 की बात है, गुरु गोविंद सिंह ने औरंगज़ेब की प्रभुसत्ता को नकार दिया था। बौखलाए औरंगज़ेब ने बदला लेने के लिए सिखों पर हमला कर दिया। चमकौर की लड़ाई में गुरु के बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह शहीद हो गए जबकि गुरु गोविंद सिंह ने दो छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह और फतेह सिंह) और माता गुजरी कौर की रक्षा के लिए उन्हें अपने विश्वासपात्र रसोइए गंगू के साथ उसके घर भेज दिया। लेकिन गंगू को माता गूजरी के पास मौजूद स्वर्ण मोहरें देखकर लालच आ गया। उसने माता गूजरी और दोनों साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीर खान के सिपाहियों के हाथों पकड़वा दिया।
दोनों साहिबजादों- जोरावर सिंह और फतेह सिंह की उम्र उस वक्त सिर्फ सात और पांच वर्ष ही थी। सरहिंद के नवाज वजीर खान ने दोनों साहिबजादों और उनकी दादी माता गूजरी को खुले आसमान के नीचे क़ैद कर दिया। पूस की उस सर्द रात में खुले आसमान के नीचे माता गुजरी जी अपने दोनों छोटे साहिबजादों को धर्मपथ से कभी विमुख न होने का पाठ पढ़ाती रहीं। अगली सुबह दोनों साहिबजादों को वजीर खान के सामने पेश किया गया। वजीर खान ने दोनों साहिबजादों से धर्म बदलने के लिए कहा। लालच दिया कि अगर इस्लाम स्वीकार कर लिया तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। लेकिन उन दोनों वीर बालकों ने जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल के जयकारे लगा कर धर्म बदलने से मना कर दिया। वजीर खान को दो नन्हे बालकों से ऐसी उम्मीद नहीं थी, उसने धमकी दी कि अगली सुबह तक अगर दोनों ने इस्लाम स्वीकर न किया तो दोनों को मृत्यु दंड दे दिया जाएगा।
अगले दिन भी दोनों छोटे साहिबजादों ने धर्म बदलने से साफ़ इनकार कर दिया। जब साहिबजादों को वजीर खान किसी भी प्रकार नहीं झुका सका, तो उसने उन्हें ज़िंदा दीवार में चुनवाने का आदेश दे दिया। 26 दिसंबर 1705 को इन महान सपूतों को दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया गया। जब दीवार दोनों की गर्दन तक आ गई, तो उनसे एक बार फिर पूछा गया कि वो चाहें तो अभी भी धर्म बदल कर जान बचा सकते हैं। लेकिन दोनों ने साफ़ इनकार कर दिया।
साहिबजादों की दृढता से बौखलाए नवाब वजीर खान ने उन्हें फिर बाहर निकलवाया और दोनों का सर धड़ से अलग कर दिया। दोनों की मृत्यु की ख़बर उनकी दादी तक पहुंची तो उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए। एक धर्मांध शासक ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी लेकिन वो सात वर्ष के ज़ोरावर सिंह और पाँच वर्ष के फतेह सिंह को झुका नहीं सका। ज़रा सोचिए पांच वर्ष की उम्र कोई उम्र होती है? बालक सही से बोलना भी नहीं सीख पाते, लेकिन वो साधारण बच्चे नहीं थे, वो गुरु गोविंद सिंह के बच्चे थे, वो सच्चे खालसा थे और इसीलिए उन्हें धर्म रक्षा के लिए बलिदान हो जाना स्वीकार कर लिया लेकिन उन्होंने अपना धर्म नहीं बदलने से इनकार कर दिया।
साहिबजादों का ये बलिदान सिर्फ वीरता की एक कथा भर नहीं है बल्कि ये हिंदुस्तान की मिट्टी की तासीर की कहानी है। यह कहानी हमें बताती है कि क्यों अनेकों आक्रमणों और कुचक्रों के बावजूद भारत की संस्कृति-सभ्यता बची रही थी। जब तक शहीद ज़ोरावर सिंह, फतेह सिंह और माता गूजरी हमारे आदर्श रहेंगे, उनके पाठ हमें पढ़ाए जाएंगे तब तक हमारी धर्म-संस्कृति को कोई नुक़सान पहुंचा भी नहीं सकेगा।
एक वक्त था, जब पंजाब में सर्दियों में इस हफ्ते ज़मीन पर सोने की परंपरा थी- ये प्रतीक था उन रातों का जिन्हें माता गूजरी कौर ने दोनों छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह व फतेह सिंह) के साथ, नवाब वजीर खां की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में गुज़ारी थी। यह सप्ताह सिख ही नहीं हिंदुस्तान के इतिहास में शोक और शहादत के स्मरण का सप्ताह होता है। उस शहादत का जो हमारे गुरुओं ने, उनके परिवारों ने इस देश, यहां की संस्कृति, अपने धर्म और धर्म के मूल्यों के लिए दी हैं।
क्या क्रिसमस और नए वर्ष के ख़ुमार में डूबे इस देश ने गुरु गोबिंद सिंह और उनके परिवार की कुर्बानियों को महज़ 300 वर्षों में ही भुला दिया है? दरअसल, जो कौमें अपना इतिहास, अपनी कुर्बानियाँ भूल जाती हैं वो खुद इतिहास बन जाती हैं। आज हर भारतीय को विशेषकर युवाओं व बच्चों को ये कहानी ज़रूर सुनाई-बताई जानी चाहिए ताकि क्रिसमस और न्यू ईयर के जश्न के बीच भी हमें वो साहिबजादे, गुरु गोविंद सिंह, माता गूजरी का स्मरण रहे। अपने धर्म-संस्कृति का बोध रहे। गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों की याद में मोदी सरकार ने 2022 से हर 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की थी।