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इधर योगेंद्र यादव का लेख, उधर सड़क पर उतर गए किसान: हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव के बाद बौखलाया इकोसिस्टम, चाहता है बांग्लादेश जैसी अराजकता

ये वही योगेंद्र यादव हैं, जो UPA की सरकार में सुपर सरकार की तरह काम कर रहे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य थे।

khushbusingh1 द्वारा khushbusingh1
3 December 2024
in राजनीति, समीक्षा
योगेंद्र यादव, किसान आंदोलन

योगेंद्र यादव 2024 के चुनाव को 1977 से जोड़ते हैं, लेकिन इसके लिए उनके पास कोई आधार नहीं (फोटो साभार: फेसबुक/HT)

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किसानों के नाम पर एक बार फिर ‘आंदोलनजीवी’ सड़कों पर हैं। अब समय है दिल्ली विधानसभा चुनाव का। बस अब कुछ ही महीने शेष हैं इसमें। महाराष्ट्र और विधानसभा चुनाव खत्म होते हैं ये किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले ये मुद्दाविहीन परजीवी सड़कों पर उतर आए हैं। ये कथित किसान आंदोलन के लिए तमाम तरह के अतार्किक मुद्दे उठा रहे हैं। ये किसान विरोध के नाम पर एक बार फिर दिल्ली की सीमा पर खड़े हैं। उनकी माँग है कि किसानों को जमीन अधिग्रहण के बदले 10% प्लॉट दिया जाए। 64.7% की दर से किसानों को मुआवजा मिले। नए भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार, बाजार दर का 4 गुना मुआवजा दिया जाए। भूमिधर और भूमिहीन किसानों के बच्चों को रोजगार एवं पुनर्वास के सभी फायदे दिए जाएँ।

अगर उनकी माँगों को देखे तो ये तमाम माँगे किसानों के नहीं, किसान से पूँजीपति बन चुके दिल्ली राजधानी क्षेत्र के किसानों के हैं। जमीन अधिग्रहण में बाजार दर से चार गुना अधिक मुआवजा भी दी जाए, 10 प्रतिशत प्लॉट भी दी जाए और उन्हें रोजगार भी दी जाए तो उस जमीन की कीमत क्या होगी? वैसे ये इसका फायदा दिल्ली NCR के कथित किसानों को होगा, क्योंकि ये सामान्य किसानों की बेहतरी की माँग नहीं है। सामान्य बेहतरी की किसानों के लिए सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे, लेकिन ये किसान उन्हें किसान विरोधी बताकर विरोध में उतर जाते हैं, क्योंकि इससे देश के पूरे किसानों को फायदा होता है।

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VIDEO | A traffic snarl was witnessed near Mahamaya Flyover due to farmers’ protest at Dalit Prerna Sthal in Noida, Uttar Pradesh. #Trafficjam pic.twitter.com/SIv8xZdeLM

— Press Trust of India (@PTI_News) December 3, 2024

हमें याद होगा पिछला किसान आंदोलन। उन आंदोलनों में किस तरह से कानून-व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा दी गई थीं। हत्या और महिला पत्रकारों के साथ छेड़छाड़ तक की गई थी। खुद को गरीब कहने वाले किसान दिल्ली बॉर्डर पर महीनों तक बैठकर मुर्ग-मुसल्लम का आनंद लेते रहे। इतना ही नहीं, ट्रैक्टर रैली के नाम पर पूरे दिल्ली को बंधक बना लिया गया। लाल किले पर तिरंगा को हटाकर आपत्तिजनक झंडे फहराने की कोशिश की गई। किसान आंदोलन पर लोगों ने तमाम तरह के आरोप लगाए। हालाँकि, कुछ लोग इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करने से बाज नहीं आए।

भारत में अराजकता चाहते हैं योगेंद्र यादव

योगेन्द्र यादव जैसे कथित समाजसेवी इन आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और लोकतंत्र एवं संविधान की बात करते हुए संविधान विरोधी हरकतों के लिए उन्हें उकसाते हैं। योगेंद्र यादव द्वारा 2 नवंबर, 2024 को ‘प्रभात खबर ‘में लिखे एक लेख से उनके इरादों की झलक मिल जाती है। यादव को किसानों एवं देश की जनता की भलाई से मतलब नहीं है, उन्हें मतलब है कि विपक्षी पार्टी कॉन्ग्रेस किसी तरह सत्ता में आ जाए। ये वही योगेंद्र यादव हैं, जो UPA की सरकार में सुपर सरकार की तरह काम कर रहे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य थे। ये सरकार को नीतिगत सुझाव देने के लिए एक छद्म संस्था बनाई गई थी।

अब आते हैं योगेंद्र यादव के इरादों की ओर। ‘प्रभात खबर’ में योगेंद्र यादव ने लिखा है कि 1977 के आपातकाल के बाद 2024 के लोकसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस एवं उसकी सहयोगी पार्टियो को बढ़त मिली थी। दरअसल, उन्होंने भाजपा की सरकार को एक तह से इंदिरा गाँधी जैसी निरंकुश सरकार बताने की कोशिश की है, लेकिन निरंकुशता को बताने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। उनकी नजर में गाँव के गाँव पर दावा करने वाले वक्फ बोर्ड पर लगाने के लिए कानून लाना, जनगणना के आधार पर परिसीमन कराना, देश में खर्चे को कम करने लिए एक साथ चुनाव कराना निरंकुशता है।

लोकसभा चुनावों में I.N.D.I. गठबंधन के प्रदर्शन से बेहद उत्साहित योगेंद्र यादव महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत से बेहद निराश हैं। इसके लिए वे परोक्ष रूप से EVM पर और प्रत्यक्ष रूप से धांधली को जिम्मेदार मान रहे हैं और आम जनता एवं विभिन्न संगठनों को सड़कों पर उतरने के लिए भड़का रहे हैं। योगेंद्र यादव में भाषा में कहें तो इस देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए जनता को अब सड़कों पर उतरना चाहिए। यानी वे लोकतंत्र बचाने के लिए अलोतांत्रिक तरीका अपनाना चाहते हैं।

बौखलाए हुए हैं इकोसिस्टम के रणनीतिकार

उनकी हसरत है कि जिस तरह से बांग्लादेश में चरमपंथी एवं जिहादी संगठन सड़कों पर तांडव मचाकर हसीना सरकार को देश छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया, वही तरीका भारत में भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वर्ना जिस सरकार को जनता ने अपना मत देकर बनवाया, उसे उखाड़कर फेंकने लिए योगेंद्र यादव किन संगठनों एवं जनता को उकसा रहे हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है। इसके लिए वे वहीं झूठ का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव 2024 में जनता को बरगलाने के लिए किया था, यानी ‘मोदी सरकार केंद्र में आई तो वह संविधान बदल देगी’। यादव ये नहीं बताते हैं कि संविधान संशोधन की एक प्रक्रिया है और यह न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आता है।

योगेंद्र यादव, लेख
‘प्रभात खबर’ में प्रकाशित योगेंद्र यादव का लेख – अराजकता के लिए लोगों को भड़काया

हालाँकि, जब जनता को भड़काना हो और इसी उद्देश्य से ही झूठ बोला जा रहा हो तो गलत और सही के बीच का अंतर खत्म हो जाता है। योगेंद्र यादव लोगों से कह रहे हैं कि अडानी के विरुद्ध, भाजपा सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरने के अलावा अब कोई उपाय नहीं है। यानी वे चुनाव की प्रक्रिया को एक तरह से साफ नकार रहे हैं।

जिस दिन ‘प्रभात खबर’ में योगेंद्र यादव लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसा रहे थे, उसी समय कथित किसान नेता दिल्ली को फिर से घेरने की कोशिश कर रहे थे। आप सोच रहे होंगे के ये दोनों मुद्दे अलग हैं तो ऐसा नहीं है। पिछले किसान आंदोलनों में योगेंद्र यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे उनके सलाहकार रहे हैं। किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली को घेरने की रणनीति के समर्थक एवं एक तरह से सूत्रधार भी बता सकते हैं।

अब जबकि, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान और लोकसभा चुनावों में जनता ने भाजपा के नेतृत्व वाली NDA को वोट दे दिया तो विपक्षी दल एवं उनके रणनीतिकार बौखला गए हैं। पिछली बार के हिंसक किसान आंदोलनों की तरह इस बार भी वे किसान संगठनों के साथ-साथ अन्य विरोधी संगठनों को सड़कों पर उतरने के लिए ललकार रहे हैं। यह सब कुछ ऐसे समय में किया जा रहा है, जब दिल्ली और फिर बिहार चुनाव सिर पर है। ये सब कुछ एक रणनीति के तहत किया जा रहा है और योगेंद्र यादव अपने अलोकतांत्रिक सोच से देश को बांग्लादेश की तर्ज पर अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।

स्रोत: Yogendra Yadav, योगेंद्र यादव, किसान आंदोलन, Farmers Protest, NCR, दिल्ली
Tags: Farmers ProtestYogendra Yadavकिसान आंदोलनयोगेंद्र यादव
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21 November 2025

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सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया है कि राष्ट्रपति या गवर्नर को किसी भी तय न्यायिक समयसीमा के भीतर बिलों पर मंजूरी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
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20 November 2025

20 नवंबर को एक ऐतिहासिक जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया है कि राष्ट्रपति या गवर्नर को किसी भी तय न्यायिक समयसीमा के...

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