छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2021 में 7 वर्षीय बच्ची की रेप के बाद हत्या करने के दोषी शख्स की दी गई मौत की सजा को कम करके उम्रकैद कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया है। इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने आरोपी दीपक बघेल को दोषी करार देते हुए पॉक्सो ऐक्ट और आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मौत की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
इस घटना को हाईकोर्ट ने बर्बर, अमानवीय, जघन्य और अत्यंत क्रूर बताया है। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने केवल अपराध पर विचार किया जबकि अपीलकर्ता के सुधार और पुनर्वास की संभावना पर विचार नहीं किया है। हाईकोर्ट ने कहा, “हमारे सामने ऐसा कोई सबूत नहीं है कि अपीलकर्ता को सुधारा नहीं जा सकता है क्योंकि अपराध के समय उसकी आयु लगभग 29 वर्ष थी और वह अन्य पिछड़ा वर्ग का सदस्य है, वह पिछड़े समुदाय से संबंधित है और उसके सुधार या पुनर्वास की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।”
हाईकोर्ट ने माना कि दीपक का व्यवहार जेल में बिल्कुल सामान्य है। कोर्ट ने कहा, “हमारा विचार है कि यह दुर्लभतम मामला नहीं है जिसमें दी गई सजा-ए-मौत को बरकरार रखा जाना चाहिए। हमारे विचार में, आजीवन कारावास पूरी तरह से ठीक होगा और न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा। हम मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने का निर्देश देते हैं।”
क्या था मामला?
दोषी फरवरी 2021 में नाबालिग पीड़िता को उसके नाबालिग भाई के साथ एक समारोह में शामिल होने ले गया था। दोषी, मृतका के भाई को समारोह में छोड़कर रेलवे ट्रैक के पास ले गया और उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए। दीपक ने रेप के बाद पीड़िता के सिर को एक भारी पत्थर से कुचल दिया जिससे उसकी मौत हो गई औ सबूत नष्ट करने के लिए शव को रेल की पटरी पर फेंक दिया।
इसके बाद FIR दर्ज कर दीपक को गिरफ्तार किया गया और पुलिस उसे वहां ले गई जहां उसने पीड़िता के सिर को कुचलकर पत्थर को छिपा दिया था। पुलिस ने दीपक के पास से एक कंगन भी बरामद किया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट, डीएनए विश्लेषण रिपोर्ट और जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने दीपक के खिलाफ चार्जशीट दायर की। इसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने दीपक बघेल को दोषी करार देते हुए पॉक्सो ऐक्ट और आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मौत की सजा सुनाई थी।
ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए सीआरपीसी की धारा 366 के तहत मामले को उच्च न्यायालय में भेज दिया था। अपीलकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील भी दायर की थी।