आज हम भारत के महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की पुण्यतिथि मना रहे हैं। 30 दिसंबर 1971 को नींद के दौरान उनका निधन हो गया, लेकिन उनका योगदान आज भी हमारे दिलों में जीवित है। विज्ञान के क्षेत्र में उनके अद्वितीय कार्य को देखते हुए उन्हें 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मृत्योपरांत) जैसे सम्मान मिले। डॉ. विक्रम साराभाई का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम से हमेशा जुड़ा रहेगा। यह सच है कि उन्होंने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में एक अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, लेकिन उनके कार्यों का दायरा बहुत बड़ा था। वे केवल एक वैज्ञानिक नहीं थे, बल्कि वस्त्र उद्योग, भेषज और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे तमाम क्षेत्रों में भी अग्रणी थे।
उनकी जीवनगाथा केवल उनके वैज्ञानिक योगदानों तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनकी प्रेमकहानी भी किसी फिल्मी रोमांस से कम नहीं। एक ऐसी कहानी, जो उनके निजी जीवन को एक और खास मोड़ देती है। और उनके परिवार की क्रांतिकारी धारा, खासकर उनकी बहन मृदुला साराभाई का योगदान, आज भी हमें प्रेरित करता है। इस परिवार ने न केवल विज्ञान में, बल्कि समाज में भी अपनी छाप छोड़ी, जो आज भी हमें सामूहिक दृष्टिकोण और प्रेरणा देती है।
भारत को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुँचाने वाले वैज्ञानिक
विक्रम साराभाई, एक नाम जो भारतीय विज्ञान और अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। उनका जन्म 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में हुआ था, और उनकी यात्रा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को ऊंचाइयों तक ले जाने की थी। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से फिजिक्स में डिग्री प्राप्त करने के बाद, विक्रम ने 1947 में भारत लौटकर अपने देश के लिए कुछ बड़ा करने का सपना देखा। उनका दृष्टिकोण था कि भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी जगह बनानी चाहिए, और इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की।
1962 में जब उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की, तो यह कदम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए निर्णायक साबित हुआ। विक्रम की सोच और नेतृत्व में 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की नींव रखी गई, जिससे भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में एक नई दिशा मिली। विक्रम का सपना था कि भारत आत्मनिर्भर बने और अंतरिक्ष अनुसंधान में अपनी पहचान बनाए, और उन्होंने इसके लिए जीवनभर संघर्ष किया। 1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह “आर्यभट्ट” लॉन्च किया, जो सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत थी।
विक्रम साराभाई की कड़ी मेहनत और संकल्प ने भारत को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मानचित्र पर मजबूती से खड़ा किया। उन्हें उनके योगदान के लिए 1966 में पद्मभूषण और 1972 में पद्मविभूषण (मृत्योपरांत) से सम्मानित किया गया। 30 दिसंबर 1971 को विक्रम का निधन हुआ, लेकिन उनका योगदान और उनकी सोच आज भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में जीवित हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति की संकल्प शक्ति और दूरदृष्टि से राष्ट्र का भविष्य बदल सकता है।
विक्रम साराभाई और मृणालिनी स्वामीनाथन की रोमांटिक प्रेमकहानी
कैंब्रिज से वापस लौटने के बाद विक्रम साराभाई ने बंगलौर के ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस’ में अपनी शोध यात्रा जारी रखी, लेकिन उनके जीवन में एक और अनोखा मोड़ आया। यही वह समय था जब उनकी मुलाकात महान परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा से हुई, जिन्होंने उन्हें भारतीय नृत्यांगना मृणालिनी स्वामीनाथन से मिलवाया। मृणालिनी, जो अपनी कला और नृत्य के प्रति समर्पित थीं, विक्रम के लिए शुरू में कोई खास आकर्षण नहीं बन पाईं। दोनों की पहली मुलाकात किसी रोमांटिक फिल्म की शुरुआत जैसी नहीं थी—मृणालिनी ने टेनिस शॉर्ट्स पहने थे, और विक्रम को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया।
लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, एक साधारण मुलाकात धीरे-धीरे कुछ खास बन जाती है। मृणालिनी ने भरतनाट्यम में अपनी रुचि को बढ़ाया, और विक्रम को उनके साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा। दोनों का रिश्ता एक प्यारी सी दोस्ती से आगे बढ़ा, और वे एक-दूसरे के साथ भुट्टे खाते, बांगला गीतों का आनंद लेते, जो मृणालिनी ने शांति निकेतन में सीखे थे। विक्रम उन्हें कालिदास के उद्धरण बताते , और इन छोटी-छोटी बातों ने उनके रिश्ते में गहरी समझ और आत्मीयता पैदा की।
यहां तक कि जब दोनों ने शादी करने का निर्णय लिया, तो वह एक बेहद साधारण, लेकिन बेहद सुंदर समारोह था। मृणालिनी ने सफेद खद्दर की साड़ी पहनी थी, और उनके शरीर पर गहनों की जगह फूलों की माला सजी थी। विक्रम के अनुरोध पर मृणालिनी और उनकी दोस्त ने रामायण के हिरण वाले दृश्य पर एक भावपूर्ण नृत्य भी किया। शादी के बाद, विक्रम और मृणालिनी ने अपनी यात्रा शुरू की—लेकिन इस बार वे ट्रेन से अहमदाबाद जा रहे थे। यह भारत छोड़ो आंदोलन का समय था, और आंदोलनकारियों द्वारा पटरियों को उखाड़ने के कारण, जो सफर सामान्यतः 18 घंटे में पूरा होता, वह उन्हें 48 घंटे में करना पड़ा। इस अनूठे सफर ने उनके जीवन के पहले हनीमून को ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कूपे में बदल दिया—यह एक यात्रा नहीं, बल्कि एक अनमोल याद बन गई, जो हमेशा उनके दिलों में बसी रही।
विक्रम साराभाई और उनके परिवार की प्रेरणादायक यात्रा
विक्रम साराभाई का परिवार भारतीय समाज और विज्ञान का एक अद्वितीय उदाहरण है। उनके पिता, श्री अम्बालाल साराभाई, जो अहमदाबाद के प्रमुख कपड़ा मिल के मालिक थे, केवल एक उद्योगपति नहीं बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास रखने वाले इंसान थे। उनके रिश्ते महात्मा गांधी और क्रांतिकारी रविंद्रनाथ टैगोर से भी थे। एक बार जब टैगोर अहमदाबाद आए, तो उन्होंने विक्रम साराभाई को देखकर यह भविष्यवाणी की थी, “यह बच्चा एक दिन बहुत बड़े काम करेगा।” यह शब्द सच साबित हुए जब विक्रम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी कड़ी मेहनत और लगन से भारत को एक नई दिशा दी।
विक्रम के कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान भी टैगोर ने उनका मार्गदर्शन किया और उन्हें एक ‘रिकमेंडेशन लेटर’ दिया, जो उनके भविष्य के लिए एक प्रेरणा बना। विक्रम ने अपने जीवन में कई ऐसे बदलाव किए जिनसे भारत की तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति को अपार लाभ हुआ।
वहीं, विक्रम की बहन मृदुला साराभाई ने भी अपनी अद्वितीय साहसिकता से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। वह महात्मा गांधी के प्रेरणास्त्रोत से प्रभावित होकर सत्याग्रह और अन्य आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल हुईं। जेल यात्राओं के दौरान उनकी कड़ी परीक्षा हुई, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मृदुला का जज़्बा देखकर पंडित नेहरू ने उन्हें 1936 में कांग्रेस का महामंत्री नियुक्त किया, जो कांग्रेस के इतिहास में किसी महिला को दिया गया पहला बड़ा पद था।
हालांकि, मृदुला ने महिलाओं के साथ कांग्रेस कार्यसमिति के व्यवहार को लेकर विरोध जताया और अपने विचारों को साझा किया, जिस कारण उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। फिर भी, उनके साहसिक विचार और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान ने उन्हें हमेशा एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया।
विक्रम सरभाई का परिवार केवल विज्ञान और राजनीति में ही नहीं, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ गया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि परिवार का समर्थन, एकजुटता और विचारशीलता किसी भी समाज को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं।