25 दिसंबर को क्रिसमस के रूप में जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस मनाया जाता है, जो दुनिया भर में धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है। लेकिन इस क्रिसमस के मौके पर हम यह भी बताएंगे कि किस तरह क्रिसमस के बहाने कट्टरता और बर्बरता को फैलाने की साजिशें होती हैं। क्रिसमस का यह त्यौहार जहां एक ओर प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इस अवसर का इस्तेमाल धर्मांतरण और अन्य आपत्तिजनक गतिविधियों के लिए करते हैं। इस क्रिसमस, हमें इस पक्ष पर भी विचार करना चाहिए कि कैसे जीसस क्राइस्ट के नाम का हवाला देकर समाज में नफरत और हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है।
18 दिसंबर, 2024 को, अमेरिका के केंटकी (लुइसविले) में सेंट स्टीफन मार्टायर कैथोलिक स्कूल के सातवीं और आठवीं कक्षा के ईसाई धर्म शिक्षक जॉर्डन ए. फाउट्ज़ ने बच्चों की पोर्नोग्राफी का वितरण और अश्लील सामग्री के प्रसार जैसे गंभीर अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने की बात स्वीकार की है। इसी प्रकार, 2023 और 2024 के दौरान 28 अन्य घटनाओं में चर्च के अधिकारियों पर बच्चों की अश्लील छवियों के उपयोग के माध्यम से अपराध करने का आरोप लगाया गया है।
भारत में भी ऐसी खबरें सामने आई हैं, जहां चर्चों के पादरियों और बिशपों ने पहले प्रलोभन देकर जबरन धर्म परिवर्तन करवाया और फिर शोषण किया। भयावह तो यह है कि इन घटनाओं में से एक में तो ईसाई मिशनरी के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तो एक नाबालिग पीड़िता का 5 महीने तक उत्पीड़न किया गया। ऐसे में बढ़ती मिशनरी गतिविधियाँ और जबरन धर्म परिवर्तन की कोशिशें भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना के लिए गंभीर खतरा बन चुकी हैं।
मिशनरियों द्वारा विशेषकर गरीब और आदिवासी समुदायों को निशाना बनाकर जबरन धर्म परिवर्तन करवाना भारत की विविधता और एकता पर हमला है। ये प्रयास धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देकर राष्ट्र की अखंडता और सुरक्षा को चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। यह समय की मांग है कि इस बढ़ते खतरे को गंभीरता से समझा जाए और इसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं ताकि भारत की सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय सुरक्षा को संरक्षित रखा जा सके।
भारत में मिशनरियों की घिनौनी करतूत
भारत में खासतौर पर मिशनरियों द्वारा गरीब और आदिवासी तबकों को निशाना बनाया जा रहा है। धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन, दबाव और जबरन तरीके अपनाए जा रहे हैं। मिशनरीज की ये घिनौनी करतूत सिर्फ धर्म परिवर्तन तक ही सीमित नहीं है बल्कि धर्म परिवर्तन के बाद चर्च ऑफिशल्स द्वारा उनके साथ कुकर्म भी किया जाता है.
25 फरवरी, 2022 को ऐसे ही एक मामला सामने आने से सनसनी मच गयी थी जहां पीड़िता की मां द्वारा की गई शिकायत पर सुनवाई करते हुए दिल्ली HC ने नोटिस जारी किया था। दरअसल पीड़िता की मां ने आरोप लगाया था कि इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया कमीशन ऑन रिलीफ और प्रयास नामक ईसाई मिशनरी संगठनों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनकी बच्ची को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दावा किया कि मिशनरी संगठनों ने उनकी बच्ची की जानकारी के बिना उसका धर्म परिवर्तन कर उसे हिंदू से ईसाई बना दिया। इसके बाद, एनजीओ द्वारा बच्ची का पांच महीने से अधिक समय तक शोषण किया गया।
मिशनरियों की इन करतूतों पर सरकार और प्रशासन को सख्ती से कार्रवाई करनी होगी। धर्म की आड़ में शोषण, जबरन धर्म परिवर्तन और समाज को बांटने की साजिश को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
ईसाई मिशनरीज का कट्टर और बर्बर इतिहास
भारत में मिशनरियों का इतिहास एक कट्टर और बर्बर दौर का प्रतीक रहा है, जिसमें मजहबी प्रचार के साथ-साथ सांस्कृतिक दमन और अत्याचार की अनेक घटनाएँ घटीं। दूसरी शताब्दी में सेंट थॉमस जीसस की शिक्षाओं को लेकर भारत आए और उन्होंने कुछ भारतीयों को ईसाई धर्म में दीक्षित किया। हालांकि, असल बर्बरता का दौर तब शुरू हुआ जब पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
वास्को डा गामा के 1498 में भारत आगमन के बाद मिशनरियों ने यहां अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं। शुरू में भारतीय ईसाइयों ने पुर्तगाली मिशनरियों को अपना सहयोगी माना, लेकिन जल्द ही उनकी बर्बर असलियत सामने आना शुरू हो गई। पुर्तगालियों ने जबरन लैटिन सिखाने, भारतीय रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगाने और बर्बर तरीके से धर्म परिवर्तन कराने की शुरुआत की। 1560 में गोवा में ‘इंक्विज़िशन’ की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य सिर्फ धर्म परिवर्तन था। इसके तहत, हिंदू, मुस्लिम, यहूदी और परिवर्तित ईसाइयों को कड़ी यातनाओं से गुजरना पड़ा। विशेष रूप से महिलाओं को शारीरिक और मानसिक शोषण का सामना करना पड़ा, जिनसे हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने के आरोप में बर्बर सजा दिलवाई गई। महिलाओं के स्तनों को ‘ब्रेस्ट रिपर’ नामक उपकरण से काटने जैसी घटनाएं सामने आईं, जो उस समय की बर्बरता को दर्शाती हैं।
मुगल साम्राज्य के दौरान भी मिशनरियों ने अपने प्रभाव को फैलाने की पूरी कोशिशें की। 1576 में, जब गोवा से आए जेसुइट पादरियों की शिकायत अकबर के दरबार तक पहुंची, तो यह घटना बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। दरअसल, इन पादरियों ने अकबर से यह शिकायत की थी कि पुर्तगाली टैक्स चोरी कर रहे हैं, जो उन्हें चौंका दिया। अकबर को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ईसाई मिशनरी अपने ही लोगों के खिलाफ इतनी ईमानदारी से शिकायत कर रहे थे। इस घटना के बाद अकबर ने अपने राजदूत अब्दुल्ला को भेजकर पादरियों को दरबार में बुलाया और उनसे उनकी धार्मिक किताबों, विशेषकर गॉस्पल, को लेकर चर्चा करने का आग्रह किया। अकबर ने कहा, “मैं अपने राजदूत अब्दुल्ला को आपके पास भेज रहा हूं, कृपया दो विद्वान पादरियों को अपनी मजहबी किताब के साथ दरबार में भेजें, ताकि मैं आपके मजहब के क़ानून से परिचित हो सकूं।”
पादरी दरबार में पहुंचे और एक मजहबी चर्चा का आयोजन हुआ, लेकिन चर्चा के चौथे दिन पादरियों द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी ने अकबर को गहरे रूप से आहत कर दिया और वह भड़क गए। इसके बावजूद, 1595 में अकबर ने चर्च बनाने की अनुमति दी, क्रिसमस और गुड फ्राइडे जैसे आयोजनों में भी भाग लिया। वहीं, जहांगीर ने भी अपने भांजे को ईसाई मजहब में बाप्टाइज किया। इसी बीच साल 1613 में मक्का की यात्रा करके वापस आ रहे यात्रियों के एक जहाज को पुर्तगालियों ने अपने कब्जे में ले लिया ये खबर जब जहांगीर तक गयी तो उन्होंने लाहौर और आगरा के कई चर्च खाली करवा लिए और जेसुइट पादरियों को भी कैद करवा दिया। दो दशक तक ये लोग कैद में रहे और बाद में शाहजहां ने उन्हें आजाद कर दिया। हालांकि इस दौरान उन्होंने भी आगरा का चर्च तुड़वा दिया जिसे साल अंदर ही फिर से बनवाया गया।
इसके बाद आक्रांता अहमद शाह अब्दाली ने पुनः इस चर्च को ध्वस्त किया जिसे बाद में अंग्रेजों के भारत आने के साथ ही पुनः निर्मित किया गया। अंग्रेजों ने मिशनरियों को फिर से संगठित किया और भारत में अपने साम्राज्य को मजबूत करने के लिए इनका उपयोग किया। भारत में मिशनरियों का यह कट्टर और बर्बर इतिहास सिर्फ धर्म के प्रचार का नहीं, बल्कि भारतीय समाज की विविधता और संस्कृति पर एक गहरे आघात का इतिहास भी रहा है। यह इतिहास आज भी हमारे समाज की यादों में गहरे पैठे हुए हैं और इसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।