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विदेश नीति के मोर्चे पर भारत के लिए कैसा रहा 2024?

2025 में कनाडा और बांग्लादेश भारत की विदेश नीति के सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर नज़र आ रहे हैं

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
31 December 2024
in राजनीति, विश्व
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर

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2024 की शुरुआत भारत के विदेश मोर्चे के लिए एक कठिन परीक्षा की तरह हुई थी। दिसंबर 2023 में कतर में 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों की फांसी की सज़ा को घटाकर अलग-अलग लोगों के लिए 3 साल से लेकर 25 साल तक की सज़ा सुना दी गई थी। भारत के लोग और पूर्व नौसैनिकों के परिवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की जोड़ी की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे थे। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन औवेसी ने सरकार को चैलेंज देते हुए कह दिया था कि अगर हिम्मत है तो कतर से पूर्व नौसैनिकों को वापस लाकर दिखाइए।

इन सबके बीच जयशंकर ने इन पूर्व नौसैनिकों की पत्नी से दिल्ली में मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि वे कुछ भी करके इन पूर्व नौसैनिकों को वापस लाएंगे। जयशंकर का यह आश्वासन कोई कोरा सरकारी आश्वासन नहीं था बल्कि विदेश मंत्रालय की एक पूरी टीम इस काम में जुटी हुई थी। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया और लोगों को स्मृतियों में यह मामला धुंधला पड़ने लगा इस बीच 12 फरवरी 2024 की अल सुबह विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज़ जारी करते हुए बताया कि इन पूर्व नौसैनिकों की सज़ा माफ कर दी गई है और 8 में से 7 पूर्व नौसैनिक भारत लौट आए हैं।

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यूएन में भारत का प्रहार: पाकिस्तान की असफलता और भारत की मजबूती का खुलासा

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कुछ ही समय बाद कतर से लौटे इन पूर्व नौसैनिकों के मुस्कुराते चेहरे भारत की हर टीवी स्क्रीन पर थे। विदेश मंत्री जयशंकर ने इनकी पत्नियों से किया अपना वादा पूरा कर दिया था। यह भारत की एक बड़ी डिप्लोमैटिक जीत थी। बीते कुछ समय में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सर्जिकल और एयर स्ट्राइक ने मज़बूत होते भारत की ताकत दिखाई थी जबकि कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान ज़रूरतमंदों को वैक्सीन भेजकर, जी20 में अफ्रीकी संघ को शामिल कराकर और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन व वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन जैसी पहलों के ज़रिए भारत ने दिखा दिया था कि देश संकल्प और सहानुभूति के साथ विश्व का नेतृत्व कर सकता है। 2024 बीत गया और इस लेख में हम जानेंगे कि इस साल विदेश नीति के मोर्चे पर भारत की उपलब्धियां क्या-क्या रहीं?

रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति का साथी भारत

रूस और यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए करीब 3 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन दोनों देशों के बीच स्थाई शांति की तलाश अभी भी जारी है। इस युद्ध को लेकर दुनिया दो धड़ों में बटी हुई है। कुछ देश रूस पर यूक्रेन पर हमला करने का आरोप लगा रहे हैं जबकि कुछ इसे NATO के खिलाफ रूस की आत्मरक्षा बता रहे हैं। ऐसे में दुनिया में भारत ही एक देश है जो रूस और यूक्रेन दोनों से बातचीत कर रहा है और युद्ध की समाप्ति करने का आह्वान कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत का रुख ‘यह युद्ध का समय नहीं है’ पूरी दुनिया के लिए शांति के एक नए संदेश की तरह उभरकर सामने आया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी दुनिया के कई मंचों पर इस युद्ध के स्थाई समाधान और शांति की वकालत की है। सितंबर में जयशंकर ने कहा था कि रूस और यूक्रेन के बीच भारत सूचनाएं साझा कर रहा है जिससे शांति के प्रयासों को बल मिल सके।

पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने भी संभावना जताई थी कि युद्ध में शांति स्थापित करने में भारत की भूमिका अहम हो सकती है। 2024 के मध्य में पीएम मोदी ने रूस की यात्रा की थी और वहां उन्होंने इस युद्ध के स्थाई समाधान ढूंढने की चर्चा की थी और इसके कुछ ही समय बाद पीएम मोदी, यूक्रेन दौरे पर पहुंचे थे और वहां उन्होंने शांति बहाल करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए भारत की इच्छा व्यक्त की थी। भारत, रूस से फ्यूल खरीद रहा है और ऐसे समय में भी यूक्रेन का उस पर भरोसा बनाए रखना भारत की विदेश नीति की महत्ता का प्रतीक है।

यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की (बाएं) और रूस के राष्ट्रपति पुतिन (दाएं) के साथ पीएम मोदी (फोटो: रॉयटर्स)

LAC पर भारत–चीन समझौता

जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों की बीच हुई झड़प के बाद के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव की स्थिति बन गई थी जो लंबे वक्त तक जारी रही। 2014 के बाद से ही LAC के सीमवर्ती क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रचर की विकास तेज़ गति से शुरू हो गया था। जब दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आया तो भारत ने बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती LAC पर कर दी और भारत, चीन को किसी भी स्थिति में पूरी टक्कर देने के लिए तैयार था। हालांकि, दोनों देशों के बीच उच्च स्तर पर राजनयिक बातचीत चल रही थी और कुछ दिनों पहले दोनों देश एक समझौते पर पहुंच गए।

इसके साथ ही, करीब 4 वर्ष से चल रहा सैन्य गतिरोध समाप्त हुआ और भारत व चीन ने LAC पर पीछे हटने तथा डेपसांग मैदानों और डेमचोक क्षेत्रों में गश्त फिर से शुरू करने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता किया। इस समझौते के चलते मई 2020 में तनाव से पहले की स्थिति बहाल हो गई। इस समझौते के बाद अक्टूबर 2024 में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की BRICS सम्मेलन से इतर रूस के कज़ान में द्विपक्षीय वार्ता भी हुई और यह दोनों देशों के बीच संबंधों की नई सिरे से शुरुआत थी।

रूस में पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग

‘बैस्टिल डे’ से ‘रिपब्लिक डे’ तक

26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस के मौके पर आयोजित परेड में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मुख्य अतिथि बनकर भारत आए थे। राजस्थान में पीएम मोदी और मैंक्रों ने राजस्थान में एक खुली जीप में करीब डेढ़ किलोमीटर लंबा रोड शो किया और यह दोनों देशों के रिश्तों की प्रगाढ़ता का एक परिचायक था। 2023 में पीएम मोदी, फ्रांस में आयोजित हुए ‘बैस्टिल डे’ समारोह में ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के तौर पर शामिल हुए थे।

रिपब्लिक डे परेड में राष्ट्रपति मुर्मु और मैंक्रों का स्वागत करते पीएम मोदी

नौसैनिकों की रिहाई और UAE में पहला हिंदू मंदिर

कतर ने भारत सरकार के प्रयासों से भारत के 8 पूर्व नौसैनिकों की सज़ा माफ कर 12 फ़रवरी 2024 को उन्हें रिहा कर दिया था। यह खबर पीएम मोदी की संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की यात्रा (13-14 फ़रवरी) से ठीक पहले ही आई थी और विदेश मंत्रालय ने इसके बाद बताया की पीएम 15 फ़रवरी को कतर भी जाएंगे। पीएम मोदी की UAE की यात्रा का एक अहम उद्देश्य UAE के पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन करना था। दुबई में एक हिंदू मंदिर का उद्घाटन ना केवल राजनयिक बल्कि संस्कृति के उभार के तौर पर भारत की मज़बूती का संकेत था। साथ ही, पीएम मोदी कतर भी पहुंचे और बीजेपी की एक नेता के बयान के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आई खटास को दूर कर मज़बूती के साथ दोनों देशों के संबंध आगे बढ़े।

UAE में मंदिर के उद्घाटन में पीएम मोदी

तल्खी के बीच जयशंकर की पाक यात्रा, भारत ने रोका रावी का पानी

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी लंबे वक्त से जारी है। इसी तल्खी के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 और 16 अक्टूबर को पाकिस्तान का दौरा किया था। जयशंकर एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए पाकिस्तान पहुंचे थे और उनका यह दौरा ‘लो प्रोफाइल’ ही रहा। इस साल की शुरुआत में भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाले रावी नदी के पानी को रोककर सख्ती दिखाई थी। सिंधु जल संधि के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदी के पानी पर भारत का पूरा अधिकार था जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब नदी के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। हालांकि, कोई बांध ना होने से रावी का पानी पाकिस्तान को जा रहा था और इस वर्ष सरकार ने बांध का काम पूरा कर वहां जाने वाले पानी को पूरी तरह रोक दिया है।

पाकिस्तान में एस जयशंकर

मालदीव के साथ सुधरते रिश्ते

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मालदीव के मंत्रियों द्वारा की गईं टिप्पणियों के बाद दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए थे। चीन के समर्थक माने जाने वाले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अक्टूबर में भारत दौरे पर आए थे और इसके बाद दोनों देशों के संबंध पटरी पर आने लगे हैं। मुइज्जू नंवबर 2023 में मालदीव के राष्ट्रपति बने थे और उन्होंने अपने कैंपेन में ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था। इसके बाद दोनों देशों के संबंधों में खटास आने की उम्मीद थी और वैसा हुआ भी। दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट अपने न्यूनतम स्तर तक चली गई थी और ऐसी कोई उम्मीद नहीं लग रही थी कि मुइज्जू इस वर्ष भारत का दौरा कर सकते हैं। कूटनीति के खेल में माहिर भारत ने अपनी चालें चलीं और अक्टूबर में द्विपक्षीय वार्ता के लिए मुइज्जू भारत में थे। जून 2024 में पीएम मोदी के शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए भी मुइज्जू भारत आए थे।

अपनी पत्नी के साथ भारत में मुइज्जू

श्रीलंका के साथ संबंधों में आई मज़बूती

श्रीलंका में 2022 के आर्थिक संकट के बाद से ही भारत जिस तरह श्रीलंका के साथ खड़ा हुआ है उससे दोनों देशों के संबंध में एक नई जान आ गई है। विदेश नीति में एक-दूसरे के लिए दोनों देशों का बहुत अहम स्थान है और दोनों देश अपने कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों में तरजीह देते रहे हैं। इस वर्ष सितंबर में श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने जीत दर्ज की थी।

दिसानायके के वामपंथी झुकाव को लेकर उनके चीन के साथ जाने का भी अनुमान लग रहा था लेकिन उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनकर यह साफ कर दिया कि भारत के साथ श्रीलंका मजबूत साझेदारी चाहता है। आर्थिक संकट और लोन रिस्ट्रक्चरिंग में जिस तरह भारत ने श्रीलंका को मदद की उसकी सराहना दिसानायके ने भी की थी और कहा था कि श्रीलंका की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा।

Image
दिसानायके और पीएम मोदी

कनाडा और बांग्लादेश की चुनौती

भारत की विदेश नीति में कनाडा और बांग्लादेश दोनों देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन दोनों देशों से जुड़ी चुनौतियां आने वाले समय में भारतीय कूटनीति के लिए परीक्षा की घड़ी होने जा रही हैं।

कनाडा से भारत के राजनयिक संबंध अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रहे हैं। सिख अलगाववादियों की सक्रियता और खालिस्तानी आंदोलन के समर्थकों को संरक्षण देने के कारण कनाडा और भारत के बीच विवाद बढ़ गया है। कनाडा ने एक डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन में कनाडा में भारत के उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और अन्य भारतीय राजनयिकों पर जून 2023 में खालिस्तानी आंतकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में जुडे़ होने का आरोप लगाया था।

इसके बाद भारत ने कड़ा रूख अपनाते हुए कनाडा से अपने राजनयिक वापस बुला लिए और भारत में मौजूद कनाडा के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। कनाडा ने भारत पर जो भी आरोप लगाए हैं उन्हें लेकर कोई सबूत नहीं दिया है जिससे भारत की नाराज़गी अपने चरम पर है। कनाडा में हिंदू मंदिरों पर होने वाले हमलों को लेकर भी भारत ने सख्त रुख अपनाया है। आने वाले वक्त में दोनों देशों के संबंध और कूटनीति का परीक्षण होना है।

पीएम मोदी और जस्टिन ट्रूडो

भारत का बांग्लादेश के साथ भारत का संबंध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से मजबूत है लेकिन बांग्लादेश में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति, नदी जल बंटवारे, और सीमा पर अवैध प्रवासन जैसी समस्याएं भारतीय नीति के लिए चुनौतीपूर्ण रही हैं। हाल के वर्षों में, शेख हसीना की सरकार ने भारत के साथ संबंधों को सुधारने और उन्हें मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस वर्ष हिंसक आंदोलन के बाद बांग्लादेश में शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया और वे भारत में शरण लेकर रह रही हैं। इस घटनाक्रम के बाद दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ने का अनुमान है। मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली नई सरकार आने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर जारी हिंसक हमलों ने इन संबंधों में और ज़्यादा खटास डालने का काम किया है और आने वाले समय में हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर भी दोनों देशों के बीच तनातनी बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है।

शेख हसीना के साथ पीएम मोदी

IMEC और चाबहार बंदरगाह

2023 में भारत, अमेरिका, यूएई, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ ने वैश्विक व्यापार को बढ़ाने और चीन की बेल्ट ऐंड रोड का मुकाबला करने के लिए भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारा (IMEC) की शुरुआत की थी। इस कड़ी में फरवरी 2024 में भारत और UAE ने IMEC कॉरिडोर के विकास पर पहला औपचारिक समझौता किया था। उसी महीने प्रधानमंत्री मोदी की यूनान यात्रा के दौरान यूनान के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोटाकिस ने कहा कि गाजा और मध्य पूर्व में उथल-पुथल से अस्थिरता पैदा हो रही है लेकिन इससे IMEC के पीछे की मजबूत भावना को कम नहीं किया जाना चाहिए।

भारत ने इस वर्ष मई में ईरान के साथ चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए समझौता किया है। 10 वर्षों के लिए हुआ यह समझौता भारत की इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ईरान के बीच हुआ है। इस समझौते के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड करीब $120 मिलियन का निवेश करेगी और $250 मिलियन की अतिरिक्त वित्तीय मदद की जाएगी। चाबहार पोर्ट, चीन के समर्थन वाले ग्वादार पार्ट से 170 किलोमीटर की दूरी पर है और ऐसे में यह हिंद महासागर में BRI के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने के लिए रणनीतिक दांव है। चाबहार पोर्ट आर्थिक रूप से भारत को मध्य एशिया तक सीधी पहुंच मुहैया करवाता है और यह विदेश नीति के लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ है।

मानवीय सहायता अभियान

ऑपरेशन इंद्रावती: भारत सरकार ने अपने नागरिकों को हैती से डोमिनिकन गणराज्य में सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने के लिए ‘ऑपरेशन इंद्रावती’ नामक एक विशेष अभियान शुरू किया। हैती में हिंसा और असुरक्षा के जवाब में भारतीय नागरिकों की सुरक्षित निकासी की सुविधा के लिए एक नियंत्रण कक्ष बनाया गया था। विदेश मंत्रालय ने बताया था कि हैती में 75-90 भारतीय रहते हैं और इस ऑपरेशन के पहले चरण में 12 लोगों को डोमिनिकन गणराज्य भेजा गया था।

ऑपरेशन सद्भाव: भारत ने लाओस, म्यांमार और वियतनाम देशों को मानवीय सहायता और आपदा राहत (HDAR) प्रदान करने के उद्देश्य से “ऑपरेशन सद्भाव” का संचालन किया। ये देश यागी टाइफून से प्रभावित थे। भारत ने राशन, कपड़े और दवाओं सहित 10 टन सहायता पर म्यांमार भेजी थी, 10 टन राहत सामग्री लाओस और 35 टन सहायता वियतनाम भेजी गई थी। यह ऑपरेशन भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के अनुरूप शुरू किया गया था।

सीरिया से भारतीयों की वापसी: दिसंबर में सीरिया में संकट के बीच भारत सराकर ने वहां फंसे 75 भारतीय नागरिकों को सीरिया से बाहर निकाला था। इन लोगों में जम्मू और कश्मीर के 44 ज़ायरीन शामिल थे, जो कि सैदा जैनब में फंसें हुए थे। इन लोगों को लेबनान पहुंचाया गया जहां से वे नियमित उड़ानों के ज़रिए भारत लौटे थे।

2024 में भारत की विदेश नीति ने कई अहम मौकों और चुनौतियों का सामना किया। दुनिया भर में जयशंकर की छवि आक्रामक तरीके से भारत का पक्ष रखने वाले नेता की बनी है। दुनिया के कई प्रमुख लोग उनकी स्पष्टता के लिए उनके मुरीद हैं। जयशंकर के नेतृत्व में भारत की लगातार ताकतवर होती विदेश नीति ने दुनिया पर अपना प्रभाव पैदा किया है। दुनिया के कई देश भारत को एक अहम साझीदार के रूप में देख रहे हैं और भारत से नेतृत्व की उम्मीद लगाए हैं। 2025 में भारत के सामने चुनौती है कि वो अपने इस कूटनीतिक प्रभाव को बरकरार रख सके और पड़ोस के साथ-साथ दुनिया में पैदा हो रहे संकटों से निपट सके।

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