सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (12 दिसंबर, 2024) को वर्शिप एक्ट 1991 से जुड़े मामले की सुनवाई शुरू हो गई है। CJI संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि इस मामले में सुनवाई तक देश में पूजा स्थलों के खिलाफ कोई और नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है ना ही इसमें कार्यवाही से जुड़ा नया आदेश जारी किया जा सकता है। एससी ने कहा कि इससे जुड़े लंबित मुकदमों में अदालतें कोई प्रभावी आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेंगी।
मामले की सुनवाई के दौरान एक वकील ने कोर्ट ने कहा कि जिन जगहों पर इससे जुड़े मुकदमे दायर किए गए हैं वहां पर सर्वे रोक दिया जाए। इस पर CJI खन्ना ने कहा कि मुझे तो केवल मथुरा और काशी के दो मामलों की ही जानकारी है। जिसके जवाब में वकील ने बताया कि ऐसी 10 जगह हैं।
इस मामले में मुख्य याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय ने 2020 में दायर की थी जिसके बाद कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। हालांकि, कोर्ट ने अभी तक इस मामले में अपना जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया है।
क्या है उपासना स्थल कानून 1991
दरअसल, 1990 में राममंदिर आंदोलन के चरम पर पहुँचने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण में डूबी कांग्रेस की सरकार ने एक कानून लाया था, जिसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 यानी उपासना स्थल कानून 1991 कहा जाता है। 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा यह एक्ट पारित किया गया था।
तब तत्कालीन गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने इस अधिनियम को पारित करते हुए कहा था, “पूजा स्थलों के रूपांतरण के संबंध में समय-समय पर उठने वाले विवादों के मद्देनजर इन उपायों को अपनाना आवश्यक समझा जाता है, जो सांप्रदायिक माहौल को खराब करते हैं…इस विधेयक को अपनाने से किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण के संबंध में किसी भी नए विवाद को प्रभावी रूप से रोका जा सकेगा।”
इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 तक अगर किसी धर्म का कोई पूजास्थल है तो उसे दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता। कानून में इसके लिए एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना का प्रावधान किया गया है।
इस कानून की धारा-2 में कहा गया है कि अगर 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव को लेकर अगर किसी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण में कोई याचिका लंबित है तो उसे रद्द किया जाएगा। कानून की धारा-3 में कहा गया है कि किसी पूजास्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता है।
वहीं, इस कानून के धारा-4(1) में कहा गया है कि किसी भी पूजास्थल का चरित्र देश की स्वतंत्रता के दिन का वाला ही रखना होगा। इस कानून का धारा-4(2) उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाहियों पर रोक लगाता है, जो उपासना स्थल कानून के लागू होने की तिथि पर लंबित थे।