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डॉ आंबेडकर ने लिखा – इस्लाम जहाँ भी गया उसने बौद्ध धर्म को नष्ट कर दिया: नालंदा से लेकर बामियान तक, इतिहास बताता है बौद्ध किनके दुश्मन

मौलाना मुहम्मद उमर ने उलेमाओं की सलाह के बाद आदेश जारी किया कि मुल्क में जितनी भी मूर्तियाँ या गैर-इस्लामी संरचनाएँ हैं उन सभी को तबाह कर दिया जाए। इसके बाद बामियान में स्थित 2 बुद्ध प्रतिमाओं के खिलाफ भी 'जिहाद' का ऐलान कर दिया गया।

Anupam K Singh द्वारा Anupam K Singh
7 December 2024
in इतिहास, ज्ञान
बामियान के बुद्ध, नालंदा यूनिवर्सिटी

बामियान के बुद्ध को किसने उड़ाया? नालंदा को किसने जलाया?

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हमने अपने पिछले लेख में बताया था कि कैसे महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ दूसरी शताब्दी से पहले बनती ही नहीं थीं। मथुरा की शिल्पकला में वो सारे तत्व पहले से मौजूद थे, जो बुद्ध की प्रतिमा बनाए जाने के लिए ज़रूरी थी। हिन्दू तपस्वी और चक्रवर्ती राजा – इन दोनों की छवियों को मिला कर बुद्ध की छवि गढ़ी गई। उससे पूर्व बुद्ध की पूजा सिर्फ स्तूप और पदचिह्न के रूप में हुआ करती थी। मथुरा के जुनसुटी गाँव से कृष्ण-बलराम की प्राचीन प्रतिमा मिली है, जो बुद्ध की पहली मूर्ति बनने से भी काफी पुरानी है। यानी, ये प्रपंच झूठा है कि मंदिरों के नीचे बुद्ध गड़े पड़े हैं। हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त कर उन्हें मस्जिदों में परिवर्तित किए जाने वाले इतिहास को ढँकने के लिए ऐसे प्रयास हो रहे हैं।

अब हम आपको बताते हैं कि बुद्ध के असली दुश्मन कौन लोग हैं, आखिर वो कौन हैं जिन्होंने बौद्ध विहारों, मंदिरों और शैक्षिक संस्थानों को तबाह किया। आइए, नालंदा से शुरू करते हैं। लेकिन, उससे पहले डॉ भीमराव अंबेडकर ने क्या लिखा है, वो देखते हैं। बाबासाहब ने लिखा था, “बूत शब्द की उत्पत्ति से संकेत मिलता है कि मुस्लिमों की मानसिकता में बौद्ध धर्म के साथ पहचाना जाने लगा था। मुस्लिमों के लिए दोनों एक ही चीज थी। इस तरह से मूर्तियों को खंडित करने का मिशन बौद्ध धर्म को नष्ट करने का मिशन बन गया। सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि इस्लाम जहाँ भी गया वहाँ उसने बौद्ध धर्म को तबाह कर दिया। बैक्ट्रिया, पार्थिया, अफ़गानिस्तान, गांधार और चीनी तुर्किस्तान – इन सभी देशों में इस्लाम ने बौद्ध धर्म को नष्ट कर दिया। मुस्लिम आक्रांताओं ने नालंदा में बौद्ध विश्वविद्यालय को तबाह कर दिया। उन्होंने देश भर में फैले बौद्ध मठों को जमींदोज कर दिया। हजारों की संख्या में भिक्षुओं को पलायन करना पड़ा। मुस्लिम आक्रांताओं ने बड़ी संख्या में लोगों को मारा।”

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राम मंदिर के समर्थन पर पिता हुए थे बहिष्कृत, किताब के लिए नहीं मिले थे प्रकाशक; कहानी मीनाक्षी जैन के संघर्ष की

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बौद्ध विहारों की किनलोगों ने नष्ट किया? – पढ़िए डॉ भीमराव आंबेडकर का बयान

आपको ये जान कर हैरानी होगी कि जिस नालंदा विश्वविद्यालय को लेकर आंबेडकर ने ऐसा लिखा, उसे लेकर भी अफवाह फैलाई गई की इसे ब्राह्मणों ने जला दिया था। एक समय नालंदा में 20,000 छात्र और 2000 आचार्य रहते थे। एक इतिहासकार हैं, DN झा नाम के। बिना अयोध्या गए इन्होंने अपने साथी वामपंथी इतिहासकारों के साथ मिल कर एक पूरी पोथी लिख दी थी कि अयोध्या में राम मंदिर था ही नहीं। वो अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी फटकार लगाईं कि उलटे पाँव भागे। DN झा लिखते हैं कि नालंदा को जलाने के लिए ‘धर्मांध हिन्दू’ जिम्मेदार हैं। सोचिए, धर्मांध हिन्दू। ये साबित करने के लिए उन्होंने ‘पाग सम जॉन ज़ांग’ नामक पुस्तक का हवाला दिया, जिसे सुम्पा खान-पा येचे पाल जोर नामक लेखक ने लिखा है।

नालंदा विश्वविद्यालय किसने जलाया? ऐसे रची गई ‘मनोहर कहानी’

विडम्बना देखिए कि ये किताब नालंदा को जलाए जाने के 500 वर्ष बाद लिखी गई थी। अब हम आपको बताते हैं कि नालंदा को किसने जलाया। 13वीं शताब्दी में लिखी गई ‘तबकात-ए-नासिरी’ नामक फ़ारसी पुस्तक में मिन्हाज-ए सिराज ने स्पष्ट लिखा है कि नालंदा को बख्तियार खिलजी ने जलाया। वही बख्तियार खिलजी, जिसके नाम पर नालंदा में आज भी बख्तियारपुर नाम की जगह है। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ विदेश से आकर इस देश को जलाने वालों को सम्मान दिया जाता है? कभी आपने इजरायल में किसी हमास कमांडर के नाम पर कोई जगह देखी है, या फिर कभी अमेरिका में किसी अलकायदा आतंकी के नाम पर कोई जगह देखी है?

खैर, हम बात कर रहे थे नालंदा की। DN झा की एक ‘मनोहर कहानी’ सुनिए। वो लिखते हैं कि 2 युवा भिक्षुओं ने 2 भिखारियों पर पानी के छींटे मार दिए थे, जिस कारण उन दोनों भिखारियों ने नालंदा विश्वविद्यालय के 9 मंजिले पुस्तकालय ‘रत्नोदधि’ को आग के हवाले कर दिया। अफगानिस्तान होकर भारत में घुसने वाले इस्लामी आक्रांता उत्तर-पश्चिम से आए और रास्ते में पड़ने वाले सभी बौद्ध विहारों को तोड़ते चले गए। सन् 1200 ईस्वी के ही इस्लामी इतिहास में ही दर्ज है कि बख्तियार खिलजी मात्र 200 घुड़सवारों के साथ नालंदा आया था और उसे लगा कि नालंदा विश्वविद्यालय कोई किला है, इसीलिए उसने इस पर हमला बोल दिया। ‘तबकात-ए-नासिरी’ में लिखा है कि वहाँ रहने वाले लोगों में अधिकतर ब्राह्मण थे, उन्होंने बाल मुँडा रखे थे, उन सभी को मार डाला गया। साफ़ है, इस्लामी मानसिकता में बौद्ध भिक्षु और ब्राह्मण एक ही थे। ठीक वैसे ही, जैसे आज बांग्लादेश में हिन्दुओं का नरसंहार करते समय ये नहीं देखा जाता कि वो किस जाति का है। उनके लिए सारे हिन्दू ‘काफिर’ हैं।

जबकि DN झा की ‘मनोहर कहानी’ क्या कहती है? उस ‘मनोहर कहानी’ में एक शिक्षक की हत्या हो जाती है, फिर उसका खून जो है वो दूध में बदल जाता है, शरीर से फूल निकल कर आकाश में उड़ने लगते हैं, 2 भिखारी गड्ढे में बैठ कर 12 वर्ष साधना करते हैं, फिर आग की राख को भिक्षुओं पर फेंक कर मारते हैं, इससे यूनिवर्सिटी जल जाती है, फिर कुछ किताबों से जल की धारा निकलती है, इससे कुछ शास्त्र बच जाते हैं। सोचिए, यही इतिहास है जो वामपंथी इतिहासकारों ने हमें न केवल पढ़ाया, बल्कि हमारी कई पीढ़ियों के मन में भी बिठा दिया। इन लोगों के लिए रामायण और महाभारत तो काल्पनिक कहानियाँ हैं, लेकिन आश्चर्य नहीं कि कल को ये लोग इस्लामी आक्रांताओं के महिमामंडन के लिए हैरी पॉटर की किताबें पढ़ कर उसके कंटेंट को इतिहास बताने लगें।

‘तबकात-ए-नासिरी’ में नालंदा की तबाही का जिक्र

 

 

हाँ, अब कुछ लोग यहाँ पूछेंगे कि नालंदा तो बौद्ध विश्वविद्यालय था तो फिर उसका क्रेडिट हिन्दू क्यों लेते हैं? हिन्दू क्यों उस पर गर्व करते हैं। इसके 2 जवाब हैं। पहला, बौद्ध दर्शन भी सनातन धर्म का ही हिस्सा है। दूसरा, भारत विरोधी विदेशी इतिहासकार ऑड्रे ट्रश्के तक लिखती हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की प्रकृति स्वाभाविक रूप से हिन्दू ही थी, लेकिन बौद्ध परंपरा भी उसका हिस्सा था। हालाँकि, ये लिखने के पीछे ऑड्रे ट्रश्के की मंशा ये दिखाने की थी कि इस्लामी आक्रांताओं ने भारत में बौद्ध मठों को छुआ तक नहीं, किसी बौद्ध को एक थप्पड़ तक नहीं मारा। भिक्षु धर्मस्वामिन, जो नालंदा के ध्वस्त होने के कुछ दशक बाद वहाँ गए थे, उन्होंने लिखा है कि उस खँडहर में राहुल श्रीभद्र 70 छात्रों को पढ़ा रहे थे। वो ये भी लिखते हैं कि एक समृद्ध ब्राह्मण जयदेव उस स्थिति में भी नालंदा विश्वविद्यालय को धन मुहैया कराते रहे।

अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं को डायनामाइट से उड़ाया

क्या आज जो लोग नवबौद्ध बने फिर रहे हैं वो ये जवाब देंगे कि नालंदा के बौद्ध महाविहार को जलाने वाले कौन थे? चलिए, अब आगे चलते हैं और आधुनिक इतिहास की ही एक घटना को लेते हैं। अफगानिस्तान में एक जगह है – बामियान। वहाँ महात्मा बुद्ध की 2 विशाल मूर्तियाँ हुआ करती थीं। फरवरी 2001 में तालिबान के मुखिया मौलाना मुहम्मद उमर ने उलेमाओं की सलाह के बाद आदेश जारी किया कि मुल्क में जितनी भी मूर्तियाँ या गैर-इस्लामी संरचनाएँ हैं उन सभी को तबाह कर दिया जाए। इसके बाद बामियान में स्थित 2 बुद्ध प्रतिमाओं के खिलाफ भी ‘जिहाद’ का ऐलान कर दिया गया। इनमें से एक मूर्ति 38 मीटर लंबी थी तो एक 55 मीटर। तब तालिबान के प्रवक्ता ने कहा था कि हमारे लोग काफी मेहनत कर रहे हैं, दोनों मूर्तियों के खिलाफ सारे उपलब्ध हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ने के लिए ये तालिबानी इतने बेचैन थे कि रॉकेट से लेकर टैंक शेल तक लाए गए। आखिरकार डायनामाइट का इस्तेमाल कर के उन मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। क्या आज तक अपने किसी हिन्दू को बुद्ध की मूर्ति तोड़ते हुए देखा है? क्या आपने आज तक किसी हिन्दू को बुद्ध की मूर्ति बम से उड़ाते हुए देखा है? लेकिन फिर भी, कुछ प्रपंचियों की नज़र में वो हिन्दू बुद्ध के दुश्मन हैं जो विष्णु के अवतार के रूप में उन्हें पूजते हैं, उनके दर्शन में विश्वास रखते हैं और उन्हें महात्मा कहते हैं।

बामियान की बुद्ध मूर्तियों को तोड़ने के लिए उस पर कई दिनों तक गोलियाँ बरसाई गईं। जब तलबानी थक-हार गए तब उन्होंने अपनी सरकार से कहा कि ये मूर्तियाँ पहाड़ से लगी हुई हैं, ऐसे में उन्हें ध्वस्त करना इतना आसान नहीं है। पहले बुद्ध की मूर्तियों पर गोलियाँ बरसा-बरसा कर उनमें छेद किए गए, फिर उनमें डायनामाइट भर दिया गया। अंत में जब बुद्ध का सिर बच गया था तो एक रॉकेट को लॉन्च कर के सिर में छेद किया गया। इस ध्वस्तीकरण की कार्रवाई में सिर्फ तालिबान ही शामिल नहीं था, बल्कि पाकिस्तान और अरब से इंजीनियर बुलाए गए थे। आज कुछ लोग बौद्ध धर्म के नष्ट होने का ठीकरा हिन्दुओं पर फोड़ रहे हैं और जो असली गुनहगार हैं उन्हें बचाया जा रहा है।

बौद्ध धर्म के असली दुश्मन कौन हैं?

सीताराम गोयल ने अपनी पुस्तक ‘Hindu Temples: What Happened to Them’ नामक पुस्तक में लिखते हैं कि देश भर में जिन स्थलों को ‘क़दम शरीफ’ बताया जाता है, वो बुद्ध के पदचिह्न ही हैं जिनकी सदियों पहले पूजा की जाती थी। आइए, अब पश्चिम बंगाल के मालदा में स्थित ‘अदीना मस्जिद’ को देखते हैं। जोसेफ डेविड बेगलर जैसे इतिहासकारों का कहना है कि इसे हिन्दू एवं बौद्ध धर्मस्थलों के ऊपर बनाया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला मिश्रित है। लेकिन, इस इतिहास पर कोई बात नहीं करता। क्या बौद्ध और हिन्दू धर्मस्थल सह-अस्तित्व के साथ विकसित नहीं हो सकते? बोधगया इसका उदाहरण है।

थोड़ा और पीछे चल लेते हैं। हम सबको पता है कि भारत में पहला इस्लामी आक्रमण मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमले के साथ किया था। उस दौरान अफगानिस्तान के बल्ख में कुतैबाह बिन मुस्लिम अल-बहिली नामक इस्लामी आक्रांता ने एक बड़े बौद्ध विहार को नष्ट कर दिया था। इस तरह हमने देखा कि बौद्धों के असली दुश्मन कौन हैं और किन्हें बचाने के लिए हिन्दुओं या फिर ब्राह्मणों को इसका दोष दिया जाता है।

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