पिछले साल अजमेर शरीफ दरगाह पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे करवाने की मांग वाली याचिका दाखिल करने वाले विष्णु गुप्ता की कार पर दो अज्ञात हमलावरों ने गोलीबारी की। यह घटना शनिवार तड़के की है, जब अजमेर दरगाह केस के वादी विष्णु गुप्ता अजमेर से दिल्ली लौट रहे थे। विष्णु गुप्ता ने हाल ही में हिंदू संस्कृति और ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा के लिए अपनी आवाज बुलंद की थी, जिसके बाद उन्हें कई बार धमकियां भी मिल चुकी थीं। लेकिन गुप्ता ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ऐसी घटनाओं से डरने वाले नहीं हैं।
मैं डरने वाला नहीं – विष्णु गुप्ता
जानलेवा हमले में बाल-बाल बचे हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने घटना का ब्योरा देते हुए कहा, “शनिवार सुबह मैं अजमेर से दिल्ली के लिए निकल रहा था। होटल छोड़ने के बाद जैसे ही मेरी गाड़ी हाईवे पर पहुंची, अचानक गोली चलने की आवाज आई और कार में गोली लगने का एहसास हुआ। मैंने शीशे से पीछे देखा तो एक बाइक पर दो लोग सवार थे, जो हमारा पीछा कर रहे थे। चूंकि मुझे पहले ही जान से मारने की धमकियां मिल चुकी थीं, मैंने तुरंत ड्राइवर से गाड़ी तेज भगाने को कहा। कुछ दूर तक उन्होंने हमारा पीछा किया, लेकिन बाद में बाइक मोड़कर वापस भाग गए।”
विष्णु गुप्ता ने इसे डराने और धमकाने की साजिश करार दिया। उन्होंने कहा, “ये हमला मुझे चेतावनी देने के लिए किया गया है कि अगर मैं दोबारा अजमेर आया, तो मुझे जान से मार दिया जाएगा। इससे पहले भी मुझे ऐसी धमकियां दी गई थीं। लेकिन मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं इन हमलों या धमकियों से डरने वाला नहीं हूं। मैं संकट मोचन महादेव मंदिर के लिए लड़ाई जारी रखूंगा। हर कोर्ट केस की तारीख पर यहां आऊंगा, चाहे गोली चले या बम फेंके। अजमेर दरगाह की सच्चाई देश के सामने आकर रहेगी, क्योंकि वो असल में संकट मोचन महादेव मंदिर है, अजमेर दरगाह नहीं।”
गुप्ता का यह बयान हमलावरों के मंसूबों को नाकाम करने की उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है। उनका कहना है कि सत्य के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।
निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ता केस
अजमेर दरगाह को लेकर चल रहा विवाद अब निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रहा है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को शिव मंदिर बताने के दावे ने ऐतिहासिक और धार्मिक सच्चाई को उजागर करने का मुद्दा फिर से उठाया है।
शुक्रवार को अजमेर सिविल न्यायालय में हुई सुनवाई के दौरान वादी पक्ष ने ऐतिहासिक साक्ष्यों और दस्तावेजों के साथ यह दावा किया कि यह दरगाह असल में संकट मोचन शिव मंदिर था, जिसे पृथ्वीराज चौहान के समय तोड़कर मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। वादी पक्ष ने अपने तर्कों को प्रमाणित करने के लिए ऐतिहासिक ग्रंथों और शोधकार्यों का हवाला दिया।
दरगाह कमेटी और अल्पसंख्यक विभाग ने इन तर्कों का जवाब देने के लिए समय मांगा है, और अब इस केस की अगली सुनवाई 1 मार्च को निर्धारित की गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में पक्षकार बनने के लिए अब तक 11 अर्जियां दाखिल हो चुकी हैं, जिनमें से 6 अर्जियां हाल ही में पेश की गईं। इन पर भी आगामी सुनवाई में बहस होगी।