आपने हर मंच पर ‘आप मुखिया’ अरविंद केजरीवाल या यूं कहे कि आम आदमी पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेताओं को केंद्र सरकार की बुराई करते, उनकी कमियां निकालते देखा, सुना होगा। ये एक तरह से आम आदमी पार्टी का केंद्रीय चरित्र बन गया है। दरअसल उनकी राजनीति केंद्र सरकार का विरोध कर के ही पनपी है। आम आदमी पार्टी के उदय के समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, उस वक्त केजरीवाल कांग्रेस के विरोध में बोलते थे। 2014 के बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी तो अब केजरीवाल की पूरी राजनीति बीजेपी के खिलाफ शुरू हो गई है। ये भी सच है कि केंद्र सरकार की मुखालफत की राजनीति का फल भी उन्हें मिला है । इसलिए 2025 के विधानसभा चुनाव(Delhi Elections 2025) में भी आप पार्टी का केंद्र बनाम दिल्ली सरकार का खेल जारी है।
अक्सर मीडिया की सुर्खियों में, राजनीतिक मंचों पर हमने आम आदमी पार्टी के नेताओं को चाहे वह दिल्ली के हैं या पंजाब के, यह कहते सुना और देखा है कि केंद्र पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकारों को बजट का पैसा नहीं देता है या सौतेलेपन के साथ व्यवहार करता है। क्या इन इल्जामों में वाकई सच्चाई है ? समरसता-समानता की बात रखने वाली भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार पर लगे यह इल्जाम सही हैं या इसके पीछे अरविंद केजरीवाल का कोई राजनीतिक खेल है? इसकी समीक्षा भी उतनी ही आवश्यक है।
दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री अतिशी मार्लेना सिंह ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 के अपने खर्चे पूरे करने के लिए राष्ट्रीय लघु बचत कोष (NSSF) यानी नेशनल स्मॉल सेविंग फंड से 10,000 करोड रुपए के उधार लेने के लिए एक प्रस्ताव भेजा। यह काफी चौकाने वाली बात थी, क्योंकि ये दिल्ली विधानसभा के पुनर्गठन के बाद 31 वर्षों में पहली बार प्रदेश सरकार के राजकोषीय घाटे की ओर बढ़ने का स्पष्ट प्रमाण था। यानी आज दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के पास राजकोष में इतना पैसा भी नहीं बचा है कि वह राज्य के खर्चों के साथ-साथ दिल्ली प्रदेश का विधानसभा चुनाव(Delhi Elections 2025) भी संपन्न करा सके।
2014 से 2024 तक एक चौंकाने वाला वाला सत्य यह भी है कि दिल्ली में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने वाली ‘आप’ सरकार ने दिल्ली राज्य के राजस्व पर इतना अधिक खर्च बढ़ा दिया कि मुफ्त की रेवड़ियों की सब्सिडी का बोझ आज 607 % तक बढ़ गया है । पिछले 10 वर्षों में सब्सिडी बिल 1,554.72 करोड़ से बढ़कर 10,995.34 करोड रुपए हो गए हैं। मुफ्त पानी,बिजली, महिलाओं के लिए फ्री बस यात्रा जैसी मुफ्त वाली योजनाओं के बोझ से सरकारी राजस्व बुरी तरह दबाव में है। अनुमान है कि 2025-26 के अंत तक दिल्ली सरकार का कुल खर्च कमाई से कहीं ज्यादा होगा, ऐसे में ये वादे कहां से पूरे किए जाएंगे?
कहां गया तेरा वादा?
शायद यही वजह है कि “कहां गया तेरा वादा” की तर्ज पर अरविंद केजरीवाल के बार-बार ज़ुबान देकर मुकरने की बात सामने आने लगी। वो कहते थे कि हमारे पास प्लान है और दिल्ली की कमाई से ही सब कुछ फ्री में भी देंगे साथ ही राज्य का खजाना भी भर देंगे। कहां गई वह बातें? न राजस्व बढ़ा और न ही राज्य की कमाई ? उल्टे राजकोषीय घाटा और कर्ज में भारी वृद्धि दर्ज की गई है।
पिछले 5 वर्षों में दिल्ली की वित्तीय सेहत कितनी खराब हुई है इसकी तस्वीर दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने विधानसभा सत्र 2022 में CAG यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में स्वयं पेश की थी। कैग की रिपोर्ट के अनुसार साल दिल्ली का 2015-16 में कर्ज 32,497.9 करोड़ था जो 2019-20 में बढ़कर 34,766.84 करोड़ हो गया । यानी 4 वर्षों में ही 6.98 % कर्ज की वृद्धि हुई । आज दिल्ली प्रदेश की जीडीपी 3.9 % पर पहुंच गई है । जो कि देश में सबसे कम है वहीं भारत की औसतन जीडीपी 27.5 % है। दिल्ली सरकार पर कर्ज 2024- 2025 में अधिक होने के अनुमान हैं इसी वजह से आम आदमी पार्टी की सरकार ने कैग CAG की रिपोर्ट को 2023- 24 में पेश भी नहीं किया जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी के 7 विधायकों को कोर्ट का रुख करना पड़ा। कोर्ट ने दिल्ली सरकार की आलोचना भी की। इस कैग रिपोर्ट में 14 विशेष मामलों पर खुलासा होने की संभावनाएं हैं ।
पिछले दिनों इस रिपोर्ट का कुछ अंश लीक हुआ, जिसमें नई शराब नीति के कारण दिल्ली सरकार दिल्ली प्रदेश को 2,026 करोड रुपए का वित्तीय नुकसान होने की बात सामने आई है। इसी वजह से दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की ईमानदारी पर और जवाबदेही पर प्रश्न उठने लगे हैं कि आखिर सीएजी की रिपोर्ट को विधानसभा सत्र में क्यों पेश नहीं किया गया? और आम आदमी पार्टी की सरकार इस पर चर्चा से क्यों बच रही है? कोर्ट में आप पार्टी की सरकार ने कहा कि विधानसभा का कार्यकाल पूर्ण हो रहा है इसके लिए इस रिपोर्ट को रखना कोई लाभकारी नहीं । किसी सरकार का यह जवाब उसकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह जरूर खड़ा करता है।
इस सारे विषय से यह जरूर समझ आ रहा है कि अरविंद केजरीवाल की नीतियों और प्लानिंग में केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता तो लेना है, लेकिन उसी से पैसा लेकर और केंद्र की मदद से मुफ्त की योजनाएं चला कर केंद्र सरकार का ही विरोध भी करना है और ये नैरेटिव बनाना है कि केंद्र सरकार दिल्ली के साथ सौतेला व्यवहार करती है।
केंद्र सरकार ने वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट की तरफ से दिल्ली को वन स्टॉप सेंटर के रख रखाव और सुचारू रूप से चलाने के लिए 12.19 लाख रुपए प्रति वन स्टॉप सेंटर के हिसाब से जारी किए। दिल्ली में कुल 11 वन स्टॉप सेंटर है, जिसके लिए कुल 1.34 करोड़ रुपए केंद्र द्वारा जारी किए गए, लेकिन दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने इसका इस्तेमाल ही नहीं किया। केवल 21% राशि का इस्तेमाल किया और 87% फंड केंद्र सरकार को वापस भेजना पड़ा ।
पूरे देश में करोड़ों कम आयवर्ग के लोगों को मोदी सरकार की आयुष्मान योजना का लाभ मिल रहा है, परंतु अरविंद केजरीवाल की नीति की वजह से दिल्ली की आम गरीब जनता केंद्र की इस आयुष्मान कार्ड योजना के लाभ से वंचित रह गई, क्योंकि दिल्ली सरकार ने इसे दिल्ली में लागू ही नहीं किया।
इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना को भी दिल्ली सरकार ने अपने एजेंडा में नहीं रखा और झोपड़पट्टी में रहने वाली दिल्ली की जनता केंद्र की इस योजना से भी वंचित रह गई। यहां तक किसान हितैषी होने का ढोंग करने वाली आम आदमी पार्टी के नेताओं का असली चेहरा तो तब सामने आया जब दिल्ली प्रदेश के किसान तंग होकर केंद्रीय कृषि मंत्री से मिलने चले गए, इसलिए क्योंकि- दिल्ली प्रदेश के किसानों को केंद्र द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से वंचित रखा गया। दिल्ली सरकार ने उन्हें केंद्र द्वारा दिए जाने वाले लाभ नहीं पहुंचाए। क्या इसे न्याय संगत कहा जाना चाहिए?
दिल्ली प्रदेश में केंद्र की तरफ से वर्किंग वूमेन हॉस्टल के लिए फंड दिया गया , जमीन अलॉट हो गई पर आज तक उस वर्किंग वूमेन हॉस्टल की एक ईंट तक नहीं रखी गई। इन सब तथ्यों को देखते हुए यह बात सिद्ध होती है कि कहीं केंद्र सरकार की अच्छी नीतियों का लाभ दिल्ली प्रदेश की जनता को मिल गया तो अरविंद केजरीवाल के केंद्र को विलेन बनाने वाले, दिल्ली के साथ सौतेला व्यवहार करने वाला, खुद को बेचारा, आम आदमी और बीजेपी नेताओं को तानाशाह बताने वाला नैरेटिव गलत साबित हो जाएगा। लेकिन हर झूठ की तरह केजरीवाल के इस प्लान से भी पर्दा उठ गया। झूठ और फरेब के आधार पर की राजनीति लंबे समय तक नहीं चलती और शायद अरविंद केजरीवाल ये समझने से चूक गए।