राजनीति का अर्थ होता है राज्य के लिए नीति बनाने की प्रक्रिया। लेकिन, भारत में कुछ ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजनीति को अवसरवाद का पर्यायवाची बना दिया है। बिहार में एक ऐसा ही नाम आता है लालू यादव का, जिस व्यक्ति ने राजनीति की पिच पर अवसरवाद की ऐसी पारी खेली जिसकी इससे पहले शायद ही कोई मिसाल थी। शुक्रवार (24 जनवरी, 2025) जनवरी को जयंती है उस व्यक्ति की, जिसे बिहार ने ‘जननायक’ का ख़िताब दिया। ‘जननायक’ कर्पूरी ठाकुर। नाई, जिन्हें हजाम कहते हैं – वो बिहार में उसी जाति से आते थे। एक तरह से वो उस समय एक विवादित हस्ती भी रहे, क्योंकि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में बिहार पहला ऐसा राज्य बना जहाँ OBC आरक्षण लागू हुआ। उन्होंने ‘मुंगेरी लाल समिति’ की सिफारिशों को लागू किया।
इस तरह कर्पूरी ठाकुर को बिहार के पिछड़े समाज में ‘सामाजिक न्याय के मसीहा’ के रूप में भी जाना गया। वो तमगा जिसे कालांतर में लालू यादव ने छीन लिया। लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर के योगदानों को नेपथ्य में भेजने की पूरी कोशिश की, और ख़ुद को उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी बताया। लेकिन, आज हम आपको बताएँगे कि लालू यादव अपने कथित ‘राजनीतिक गुरु’ की कितनी इज्जत करते थे।
जिस लालू को टिकट दिलवाया, उसी लालू ने कर्पूरी ठाकुर को बताया ‘कपटी’
वो कर्पूरी ठाकुर ही थे जिन्होंने लालू यादव को 1977 में लोकसभा का टिकट दिलवाया और वो मात्र 29 वर्ष की उम्र में छपरा से जीत कर सांसद बने। उससे पहले वो छात्र नेता हुआ करते थे। कर्पूरी ठाकुर को भी बाद में समझ आ गया था कि लालू यादव क्या चीज हैं। शायद इसीलिए, वो लालू यादव को ‘लम्पट’ कहा करते थे। लम्पट, यानी असभ्य और उद्दंड व्यक्ति। इसी तरह, लालू यादव सार्वजनिक रूप से तो ख़ुद को कर्पूरी ठाकुर का शिष्य प्रदर्शित करते थे, लेकिन पीठ पीछे उन्हें ‘कपटी ठाकुर’ कहा करते थे। पिछड़े समाज के एक नेता को लेकर ये थे लालू यादव के विचार।
ये मैं यूँ ही नहीं कह रहा, बल्कि पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी पुस्तक ‘बंधु बिहारी‘ में इसका किस्सा सुनाया है। असल में समाजवादी व लोहियावादी नेता लक्ष्मी साहू उस दौरान कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव हुआ करते थे। उन्होंने ही ये किस्सा सुनाया था। कर्पूरी ठाकुर उस दौरान नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे और उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था। वो अपने घर पर आराम कर रहे थे। लेकिन, बीच में एक दिन विधानसभा में विपक्ष को उनकी ज़रूरत आन पड़ गई। कर्पूरी ठाकुर दोपहर के समय बहस में हिस्सा लेने के लिए तैयार हुए।
कहा जाता है कि कर्पूरी ठाकुर एकसम संयमित जीवन जीते थे और भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए उन्होंने धन का संचय नहीं किया था। उनके पास अपना कोई वाहन तक नहीं हुआ करता था। उन्होंने शिवनंदन पासवान के माध्यम से लालू यादव को सन्देश भिजवाया कि वो अपनी गाड़ी उनके लिए भेज दें। शिवनंदन पासवान लोकदल के नेता थे और वो कर्पूरी ठाकुर की सरकार में राजस्व मंत्री रहे थे। बिहार की प्रशासनिक सेवा से उन्होंने राजनीति में पदार्पण किया था और मुजफ्फरपुर के सकरा से 1977 में विधायक बने थे। तो, शिवनंदन पासवान ने लालू यादव को सूचित किया कि वो अपनी गाड़ी लेकर आएँ और कर्पूरी ठाकुर को विधानसभा लेकर जाएँ।
लालू यादव उस दौरान विल्स की सेकेण्ड हैण्ड जीप रखते थे और उसे ख़ुद ही ड्राइव करते थे। शिवनंदन पासवान को लगा कि लालू यादव अपने ‘गुरु’ के लिए जीप लेकर दौड़े चले आएँगे। खासकर तब, जब कर्पूरी ठाकुर बीमार थे। लेकिन, हुआ कुछ और। लेकिन, लालू यादव के जवाब ने उन्हें हैरान कर दिया। लालू यादव ने स्पष्ट कह दिया कि उनकी गाड़ी में पेट्रोल नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने पलट कर ये भी पूछ दिया कि कर्पूरी ठाकुर इतने बड़े नेता हैं तो अपने लिए कार क्यों नहीं ख़रीद लेते?
लालू यादव ख़ुद को बनाना चाहते थे कर्पूरी ठाकुर से बड़ा
तो ये था लालू यादव के लिए अपने ‘राजनीतिक गुरु’ के लिए सम्मान। वो ‘राजनीतिक गुरु’, जिन्होंने उन्हें पहली बार टिकट दिलवाया। संकर्षण ठाकुर ने ये भी लिखा है कि कैसे लालू यादव ने इसकी भी पूरी कोशिश की कि कर्पूरी ठाकुर को एक अदद स्मारक तक नसीब ना हो। कर्पूरी ठाकुर का निधन जहाँ हुआ था, पटना में उसे 1, देशरत्न मार्ग के नाम से जाना जाता है। वहाँ एक दीवार के अलावा लालू यादव ने कोई और निर्माण ही नहीं करवाया।
जब-जब कर्पूरी ठाकुर का स्मारक बनाए जाने की बात उठती थी, किसी न किसी बहाने से लालू यादव इसे टाल दिया करते थे। अपराध जगत में सक्रिय रहे बृजबिहारी प्रसाद का स्मारक बनवाने में तो लालू यादव ने तनिक भी समय नहीं लगाया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर का स्मारक बनाए जाने के बाद लालू यादव बिहार में पिछड़ों के सबसे बड़े नेता के रूप में कैसे जाने जाते? बताइए। तभी तो कर्पूरी ठाकुर के निधन के 1 वर्ष बाद ही लालू यादव उसी पद पर आसीन हो जाते हैं, जिस पर निधन के समय कर्पूरी ठाकुर थे – विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष। उसके बाद उनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी। दिल्ली में देवीलाल और VP सिंह के दरबार में चक्कर काट-काट कर उन्होंने अपना जुगाड़ सेट किया था।
कांग्रेस ने कर्पूरी ठाकुर को भिजवाया जेल, मोदी ने दिया ‘भारत रत्न’
आपने जाना कि कैसे लालू यादव, कर्पूरी ठाकुर को ‘कपटी ठाकुर’ कहते थे। आज राहुल गाँधी कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि दे रहे हैं सोशल मीडिया पर। इस दौरान वो ये क्यों नहीं बताते कि कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया था। आपातकाल के दौरान कांग्रेस की ही सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए दिन-रात एक कर दिया था। इस दौरान वो कई दिनों तक पश्चिम चम्पारण के बगहा में छिपे रहे। इसी कांग्रेस के कारण। फिर एक व्यक्ति ने साइकिल से उन्हें वाल्मीकिनगर पहुँचाया। फिर वहाँ से उन्हें नेपाल में छोड़ना पड़ा।
नेपाल में ही कर्पूरी ठाकुर के साथ रामविलास पासवान भी छिपे हुए थे। रोज रात को नदी पार कर के ये दोनों नेता भारत में आते थे, कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर के लौट जाते थे। कांग्रेसी पुलिस के डर से कुछ कार्यकर्ताओं को तैनात किया गया था कि खतरे की स्थिति में वो दूर से ही टॉर्च जला कर चेता दें। जिस पार्टी के राज में कर्पूरी ठाकुर को भारत छोड़ना पड़ा था, आज वही लोग किस मुँह से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं? कर्पूरी ठाकुर को हजारीबाग के सेन्ट्रल जेल में बंद करने वाले कौन लोग थे?
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी जन्म-जयंती पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। जननायक ने अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक न्याय के लिए समर्पित कर दिया और इस दिशा में अनेक प्रयास किए। उनका जीवन और आदर्श देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।
— Narendra Modi (@narendramodi) January 24, 2025
फिर ये सवाल उठता है कि कर्पूरी ठाकुर को सम्मान किसने दिया? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें 2024 में इसी मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ के सम्मान से नवाजा। उनके बेटे रामनरेश ठाकुर को केंद्र में मंत्री बनाया गया। कर्पूरी ठाकुर के बेटे रमनरेश ठाकुर मोदी सरकार में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री हैं। 2005 से 2010 तक नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA सरकार में भी उन्हें मंत्री बनाया गया था। यानी, जिस व्यक्ति के शिष्य ने ही उन्हें अपमानित किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें सम्मान मिला।