भारत के हर नागरिक के दिल में गहरी आस्था और धर्म का जुड़ाव है, जो पुण्य और संस्कारों से उसे जोड़े रखता है। यह आस्था जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर मिलती है, तो कुंभ मेले का अद्भुत नज़ारा बनता है। कुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन—में आयोजित होता है। यह (MahaKumbh 2025) सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, आर्थिक, और सामाजिक विरासत का प्रतीक भी है।
इस मेले में लाखों लोग पवित्र स्नान के लिए आते हैं, लेकिन यह सिर्फ एक मेला नहीं है। यह भारत की संस्कृति, अर्थव्यवस्था, और धार्मिक विरासत को जोड़ने वाला एक अद्वितीय संगम है। महाकुंभ मेला 144 वर्षों के बाद फिर से प्रयागराज में हो रहा है, जो 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलेगा, और इसका समापन शिवरात्रि के दिन होगा। लगभग 40 से 45 करोड़ लोग इस मेले में भाग लेंगे और पवित्र स्नान करेंगे। यह महासंगम गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर होता है, जहां तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैं। 2013 में प्रयागराज में हुए महाकुंभ(MahaKumbh 2025) ने उत्तर प्रदेश में लगभग 12,000 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न किया था और 6 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया था। 2019 के अर्धकुंभ से भी लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये का योगदान भारत की अर्थव्यवस्था में हुआ था।
2025 में प्रयागराज में महाकुंभ(MahaKumbh 2025) का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होगा, जिसका समापन शिवरात्रि के दिन होगा। अनुमान है कि इस बार लगभग 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए आएंगे। यह आयोजन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम पर होता है। भारत में तीर्थ स्थल केवल धार्मिक केंद्र नहीं हैं, बल्कि आर्थिक आधारस्तंभ भी हैं, जो स्थानीय व्यवसायों, होटलों, परिवहन और विभिन्न सेवाओं का समर्थन करते हैं।
ये स्थल केवल आस्था के केंद्र नहीं हैं; बल्कि ये आर्थिक शक्ति केंद्र हैं, जो अपने क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को आकार देते हैं। ये रोजगार के अवसर पैदा करते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं, जिससे इन स्थलों के आसपास रहने वाले लोगों की आजीविका का अभिन्न हिस्सा बनते हैं। धार्मिक और तीर्थ पर्यटन कुल घरेलू पर्यटन परिदृश्य का एक विशाल हिस्सा बनाता है, जो 60% तक योगदान करता है। यह आर्थिक दिग्गज, अपनी अपार शक्ति के साथ, 2022-23 में भारत की आर्थिक संरचना में लगभग ₹11 लाख करोड़ का योगदान देता है। जब व्यापक पर्यटन उद्योग को शामिल किया जाता है, तो यह योगदान ₹19 लाख करोड़ से अधिक हो जाता है, जो देश की वर्तमान कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 7% है।
आर्थिक प्रभाव और रोजगार सृजन
स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- 2013 के कुंभ मेले में उत्तर प्रदेश ने 12,000 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया और 6 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया। 2019 के अर्धकुंभ मेले ने 1.2 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक योगदान दिया। 2025 के महाकुंभ मेले से लगभग 25,000 करोड़ रुपये के राजस्व की उम्मीद की जा रही है, जबकि पर्यटन, स्थानीय बिक्री, और सेवाओं के माध्यम से कुल वित्तीय लेन-देन 2 से 3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
- राजस्व स्रोत: राजस्व के प्रमुख स्रोतों में जीएसटी शामिल है, जो होटल और रेस्टोरेंट में किए गए खर्च से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, भूमि और टेंट किराए से भी आय होती है, जिसे निजी कंपनियों और श्रद्धालु लीज पर लेते हैं। ट्रांसपोर्ट, पार्किंग, सफाई, और रखरखाव जैसी सेवाओं से भी महत्वपूर्ण राजस्व अर्जित किया जाता है। साथ ही, वेंडर्स और फूड स्टॉल्स के लिए जारी किए गए परमिट और लाइसेंस शुल्क भी राजस्व में योगदान करते हैं।
- पर्यटन और स्थानीय व्यापार: यह आयोजन स्थानीय दुकानदारों, शिल्पकारों, और स्ट्रीट वेंडर्स के लिए छह महीने की आमदनी के बराबर अवसर प्रदान करता है। साथ ही, यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 45,000 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराएगा।
- स्पिलओवर इफेक्ट: प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु अयोध्या, वाराणसी, और मथुरा जैसे अन्य धार्मिक स्थलों का भी दौरा करेंगे, जिससे इन क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ेंगी।
महाकुंभ 2025: निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास
सरकार और निजी क्षेत्र का योगदान
2025 के महाकुंभ(MahaKumbh 2025) के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने 6990 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जबकि 2019 के अर्धकुंभ में यह निवेश 3700 करोड़ रुपये था।
सुविधाएं और इंफ्रास्ट्रक्चर
- यातायात और परिवहन: मेले के लिए 13,000 विशेष ट्रेनों की शुरुआत की गई और गंगा पर छह लेन वाला पुल और रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण किया गया।
- स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण: स्वच्छ भारत अभियान के तहत कुंभ क्षेत्र में सीवर लाइन और ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए गए। साथ ही, सफाई सुनिश्चित करने के लिए 10,000 सफाई कर्मियों की नियुक्ति की गई। इसके साथ ही, कुंभ आयोजन ने प्रयागराज में स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया है, जिससे शहर की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है। इस बार विशेष ध्यान पर्यावरण और सस्टेनेबिलिटी पर दिया गया है, ताकि गंगा और यमुनाजी में कोई भी अवशिष्ट पानी न प्रवाहित हो। पहले जहां शौचालयों में गड्ढे खोद कर मल-मूत्र दबा दिया जाता था, अब पूरी प्रणाली को सीवर लाइनों से जोड़ दिया गया है और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं।
- रोजगार सृजन: कुंभ आयोजन ने छोटे और मध्यम व्यवसायों को प्रोत्साहन दिया है। साथ ही, स्वच्छता मित्रों को उद्यमी बनाने के उद्देश्य से लोन और सब्सिडी योजनाएं शुरू की गई हैं।स्वच्छता की दिशा में भी इस बार कई नवाचार किए गए हैं। प्रधानमंत्री जी ने भी स्वच्छ कुंभ पर जोर दिया, और इसकी सफलता को देखते हुए, भविष्य में और अधिक प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि कुंभ आयोजन पूरी दुनिया में एक आदर्श बन सके। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकार मिलकर स्वच्छता मित्रों को उद्यमी बनाने के लिए योजना बना रही हैं, ताकि उन्हें लोन और सब्सिडी मिल सके और वे आगे चलकर छोटे व्यवसाय चला सकें।
कुंभ मेला: ब्रांडिंग और विज्ञापन – 2025 के कुंभ मेले के प्रचार-प्रसार के लिए 5000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, जिसमें सरकारी और निजी क्षेत्र ने मिलकर ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर 3000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह आयोजन 40-45 करोड़ की विशाल जनसंख्या तक पहुंचने के लिए एक अद्वितीय मंच प्रदान करता है।
विदेशी पर्यटकों और वैश्विक आकर्षण का केंद्र
महाकुंभ(MahaKumbh 2025) विदेशी पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। अनुमान है कि विदेशी पर्यटकों से 2.2 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त होगा। यह आयोजन भारत की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
भविष्य पर प्रभाव
तीर्थ पर्यटन का आर्थिक प्रभाव केवल धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के समग्र आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे उत्पन्न आर्थिक प्रवाह पर्यटन, आतिथ्य और स्थानीय व्यवसायों से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रोजगार के अवसर प्रदान करता है, जो लाखों लोगों के लिए आजीविका का साधन बनता है। इसके अतिरिक्त, तीर्थ पर्यटन एक पृथक इकाई नहीं है; इसका प्रभाव पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र में लहरें उत्पन्न करता है। इसका आर्थिक लाभ होटलों, परिवहन, छोटे व्यवसायों और इन स्थलों के आसपास के स्थानीय बाजारों तक पहुंचता है। कुंभ मेला न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्थायी लाभ प्रदान करता है। प्रयागराज में स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण, पर्यटन में वृद्धि, और रोजगार सृजन इसके दीर्घकालिक लाभ हैं। कुंभ मेला भारत की आस्था और आर्थिक क्षमता का ऐसा संगम है, जो हर 12 साल में करोड़ों लोगों को जोड़ता है और देश की समृद्धि में अभूतपूर्व योगदान देता है। धार्मिक और तीर्थ पर्यटन से होने वाला भारी आर्थिक योगदान इसे भारत के आर्थिक ताने-बाने का एक अनिवार्य हिस्सा बनाता है। जैसे-जैसे देश प्रगति कर रहा है, इस आर्थिक शक्ति को पोषित करना, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय स्थिरता को संरक्षित करते हुए, सतत विकास के लिए एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है।