मुलायम सिंह यादव की तुष्टिकरण की राजनीति पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं, जब वाराणसी से सौंपे गए ज्ञापन में उनकी 1990 के दशक की भर्तियों की सच्चाई उजागर हुई। खुद को ‘मुल्ला मुलायम’ के तौर पर पेश करने वाले मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम वोटों के लिए 5000 उर्दू अनुवादकों की भर्ती की थी। हिन्दू संगठन का कहना है कि इन अनुवादकों को मदरसों से लाकर पुलिस विभाग में तैनात किया गया, जबकि उर्दू का उपयोग विभाग में बेहद सीमित था। इसके बावजूद इन भर्ती किए गए अनुवादकों को सरकारी आवासों और तमाम सुविधाओं का लाभ मिला, और ये लोग अब एसपी ऑफिसों में भी अपना कब्जा जमा चुके हैं।
आज, जब तकनीक और AI के जरिए अनुवाद की समस्याओं का समाधान मिल चुका है, तब भी ये तुष्टिकरण की देन बनी भर्तियां पुलिस विभाग में बिना किसी काम के मौजूद हैं। राष्ट्रीय हिन्दू दल नामक एक हिन्दू संगठन ने इस स्थिति को लेकर पीएमओ में ज्ञापन सौंपा है, जिसमें मांग की गई है कि इन ‘तुष्टिकरण के ठेकेदारों’ को हटाकर पुलिस विभाग को मुक्त किया जाए।
मुलायम सिंह यादव की तुष्टिकरण की राजनीति और यूपी पुलिस में घुसपैठ का सच
हिंदू संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इस मुद्दे पर बात करते हुए हमसे बताया कि, “उत्तर प्रदेश पुलिस, जो आज शांति, न्याय और सुरक्षा का प्रतीक बन चुकी है, वह कभी मुलायम सिंह यादव की तुष्टिकरण की राजनीति के कारण गंभीर समस्याओं का सामना कर चुकी है।” उन्होंने आगे कहा, “1990 के दशक में, जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने उर्दू अनुवादकों की भारी संख्या में भर्ती की। ये अनुवादक मदरसों से लाकर सीधे थानों में तैनात किए गए, जबकि राज्य में उर्दू में लिखी जाने वाली शिकायतों का प्रतिशत महज 2% था। इस कदम ने न केवल सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया, बल्कि पुलिस विभाग की गोपनीयता को भी खतरे में डाल दिया। इस भर्ती के कारण कई बार थानों से मुखबिरी की घटनाएं सामने आईं, जिससे न केवल आम जनता, बल्कि पुलिसकर्मी भी मुश्किलों में फंसे।”
बातचीत के दौरान आगे उन्होंने बताया, “हमारे संगठन ने इन उर्दू अनुवादकों की गतिविधियों पर नजर रखी और पाया कि अधिकांश उर्दू अनुवादक अपनी तैनाती जगहों पर न रहकर, ताकतवर और संवेदनशील स्थानों पर कब्जा कर बैठे हैं। इनमें से कई लोग अवैध उगाही जैसे कार्यों में संलिप्त हैं और मोदी तथा योगी जैसे नेताओं के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। एक उदाहरण के रूप में, एटा जिले का उर्दू अनुवादक मोहम्मद हारुन लिया जा सकता है, जो अब एडिशनल एसपी का स्टेनो बन चुका है और एक पुलिस अधिकारी के मकान को अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। वह जिले में किसी भी अराजपत्रित अधिकारी से नहीं डरता, और उसकी शिकायत करने का कोई साहस नहीं करता।”
उन्होंने यह भी कहा, “अब समय आ गया है कि इन उर्दू अनुवादकों को संवेदनशील विभागों से हटा दिया जाए। आज के डिजिटल युग में, जब गूगल ट्रांसलेट जैसी तकनीक से किसी भी भाषा का अनुवाद आसानी से किया जा सकता है, तो इन मदरसों से प्रशिक्षित उर्दू अनुवादकों का पुलिस विभाग में क्या काम है?” उन्होंने यह भी जोड़ा, “हम यह भी मांग करते हैं कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए जो इन अनुवादकों को संरक्षण दे रहे हैं और मुलायम सिंह यादव की तुष्टिकरण की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।”
आखिरकार, उन्होंने यह कहा, “हम मांग करते हैं कि इन उर्दू अनुवादकों द्वारा कब्जाए गए सरकारी आवासों की सर्किल रेट से चक्रवृद्धि ब्याज जोड़कर राजस्व हानि की क्षतिपूर्ति की जाए। हम उत्तर प्रदेश की जनता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सपनों के समाज के निर्माण में किसी भी संवैधानिक उपाय से संघर्ष करने के लिए तैयार हैं।”